सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु--कातिल में है?

  • बिस्मिल

आज हमारा देश बड़े ही नाजुक दौर से गुजर रहा है। केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों के कारण देश गर्त में गिरता जा रहा है। जब देश के प्रगतिशील पत्रकार, छात्र, अध्यापक, मजदूर-किसान इन नीतियों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, तो सत्ता की पुलिस और फासिस्ट हिंदुत्ववादी ताकतें आवाज दबाने के लिए दमन का रास्ता अपना रही हैं।

फासिस्ट ताकतें शिक्षण संस्थानों में उठने वाली प्रत्येक उस आवाज को ख़ामोश कर देना चाहती हैं, जो उनके कुकर्मो के खिलाफ उठ रही है।

इन धार्मिक आंतकवादियों के हाथ और मुँह महात्मा गांधी से लेकर डॉ. दाभोलकर, का० पानसरे, प्रो. कलबुर्गी, अख़लाक़, रोहित वेमूला व कितने ही कलाकारों, लेखकों के खून से सने हुए हैं।

आज सत्ता में बैठे अंधराष्ट्रवादी व उनके अंध समर्थक बार-बार प्रगतिशील पत्रकारों, बुद्विजीवियों, लेखकों, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों, फिल्मकारों और कम्युनिस्टों पर उनके प्रगतिशील विचारों के कारण हमला कर रहे हैं, उनको पाकिस्तान भेजने की धमकी दे रहे हैं।

आज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीनी जा रही है। अपहृत JNU छात्र नजीब आज तक लापता है।

देशभक्ति का लबादा ओढ़े इन धार्मिक आंतकवादियों के चेहरे से छद्म देशभक्ति का नकाब उतारा जाये और इसलिये आज ये बहस भी जरूरी बनती है कि ये देश क्या उन धार्मिक आंतकवादियो का है, जिन्होंने सदा मेहनतकश जनता के साथ गद्दारी की या ये जमीन उन मेहनतकश इंसानों की है जिन्होंने अपने खून से इस मिट्टी को सींचा है। इसलिए सवाल ये है कि ये देश है किसका.....

ये देश न हिन्दुओ का है, न सिखों का है और न ही मुस्लिम, बौद्ध और जैनियो का। ये देश उन सभी मेहनतकश इंसानो का है जो अपनी मेहनत के बूते इस देश को यहाँ तक लेकर आये हैं।

ये देश उन महान क्रांतिकारी इंसानो का है, जिन्होंने 1857 की क्रांति से बहुत पहले से ही अंग्रेज सरकार और सामन्ती राजाओ के खिलाफ आजादी के लिए जंग लड़ी। देश को साम्राज्यवादी अंग्रेज सरकार से आजाद करवाने के लिये 1857 की महान क्रांतिकारी लड़ाई से देश की स्वंतन्त्रता 15 अगस्त 1947 तक जिन महान क्रान्तिकारियो ने कुर्बानियां दी। इस लड़ाई में लाखों इंसानों ने अपनी जान कुर्बान की व लाखों क्रान्तिकारियों ने जेल की यातनायें सहीं और 1947 के बाद भी तेलंगाना, तेभागा, वारली, नक्सलबाड़ी से लेकर बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्रा के वो महान क्रांतिकारी, जिन्होंने "जल, जंगल और जमीन" के लिए भारत के काले अंग्रेजों से लड़ते हुए अपनी जान कुर्बान की और जो आज भी मजबूती से काले और गोरे अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहे हैं।

इस आजादी की लड़ाई में थोड़ा और पीछे जायें तो आपको महान शिक्षक शम्बूक मिलेगा जो संसार की सबसे बड़ी लड़ाई उन मेहनतकश इंसानों के लिए लड़ रहा है, जो मानव जाति का सबसे बड़ा और सबसे मेहनतकश तबका है। लेकिन शिक्षित न होने के कारण वो लुटेरे ब्राह्मण, क्षत्रीय और वैश्य की लुटेरी सत्ता के गुलाम बना हुआ है।

आजादी के लिए शिक्षा जरूरी है और शिक्षा हासिल करने के लिए उस सत्ता के खिलाफ लड़ रहा है महान क्रांतिकारी शुद्र ऋषि शम्बूक। लेकिन उस समय के महान छल-कपटी निरंकुश राजा ने शम्बूक का धर्म की आड़ लेकर कत्ल कर दिया। लेकिन वो आजादी की चिंगारी कभी बुझी नहीं। लुटेरी सत्ता के खिलाफ मेहनतकश इंसान ने लड़ाई जारी रखी।

आगे आपको मिलेगा खून से लथपथ महान धनुषधर "एकलव्य" जिसका अंगूठा सत्ता के महान राजकुमारों और उनके शिक्षक द्रोण ने सिर्फ इसलिए काट लिया क्योकि वो शूद्र है और उनका धार्मिक कानून शूद्र को शिक्षा हासिल करने का अधिकार नहीं देता है। उसने उनके मानवता विरोधी कानून को तोड़ा तो उसको ये सजा मिली।

थोड़ा सा और आगे आओगे तो आपको चार्वाक, महात्मा बुद्ध, गुरु नानक, रविदास, कबीर, दादू, मीरा और सूफी सन्त मिलेंगे, जो धार्मिक अन्धविश्वास के खिलाफ, अन्याय के खिलाफ और मानवता की समानता के लिए लड़ रहे हैं।

लेकिन 1857 की लड़ाई में जब अंग्रेज सरकार ने सभी धर्मों के इंसानों को देश के लिए अंग्रेज सरकार के खिलाफ लड़ते देखा तो अंग्रेजों ने भारत के अवाम की ताकत को तोड़ने के लिए "फूट डालो और राज करो" की नीति का उपयोग किया।

उसी नीति के तहत अंग्रेजों ने धार्मिक लोगों को हवा देनी शुरू कर दी इसके बाद ही आगे चलकर फासिस्ट हिंदुत्ववादी और मुस्लिमवादी धार्मिक संगठनों का गठन हुआ। इन धार्मिक संगठनों का काम ही आजादी के आंदोलन को तोड़ना और मेहनतकश किसान मजदूर का ध्यान उसकी मुख्य लड़ाई से भटका कर धर्म के नाम पर उलझाये रखना था, जो आज भी बखूबी ये धार्मिक संगठन अपना ये काम कर रहे हैं।

आज भी साम्राज्यवादी देश अपनी लूट को जारी रखने के लिए फूट डालो-राज करो की नीति अपना रहे हैं। इराक, अफगानिस्तान, सीरिया, लीबिया, पाकिस्तान जैसे देशों की प्राकृतिक धन सम्पदा को लूटने के लिए पूंजीवादी देश इन देशों में धर्म के नाम पर झगड़े कराये हुए हैं, ताकि आम जनता उनकी लूट पर बात करने की बजाए आपस में ही लड़ती रहे। उसी नीति के तहत साम्राज्यवादी देश और भारत की सता भी भारत में काम कर रहे हैं।

आज भारत की सत्ता चाहती है कि देश की जनता धर्म-जाति के नाम पर आपस में लड़ मरे और उनकी लूट जारी रहे।

आज देश का किसान आत्महत्या कर रहा है। मजदूर बहुत ही बुरे हालात में जी रहा है। शिक्षा-स्वास्थ्य को सरकार सार्वजनिक क्षेत्र से पूंजीपतियों के हवाले कर रही है ताकि वो अपनी मनमर्जी लूट मचा सके।

भारत की सत्ता देश की "जल जंगल और जमीन" को आम जनता से छिन कर बड़े-बड़े कारपोरेट घरानों को दे रही है। विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को देश के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने की खुली छूट दी जा रही है। इस लूट के खिलाफ लड़ने वाले आदिवासियों को माओवादी बताकर जेल में डाला जा रहा है, उनको फर्जी मुठभेड़ में मारा जा रहा है और इस लूट के खिलाफ लिखने वाले प्रगतिशील बुद्धिजीवियों, पत्रकारों पर सत्ता फर्जी मुकदमे बना रही है। धार्मिक आंतकवादियों द्वारा बुद्विजीवियों का कत्ल किया जा रहा है।

इस लूट पर लोगों का ध्यान ही न जाये इसके लिए सत्ता और सत्ता से जुड़े हजारो जातीय व धार्मिक संगठन देश में वो ही नीति "फूट डालो राज करो" पर काम कर रहे हैं।

इसी रणनीति के तहत ये धार्मिक संगठन लव जेहाद, घर वापसी, बीफ, अयोध्या में मन्दिर निर्माण, रोमियो स्क्वाड और आरक्षण जैसे छद्म मुद्दों पर लोगो को आपस में लड़ा रहे है। इस छद्म लड़ाई में हिंदुत्ववादी मुस्लिमवादी और सवर्ण, दलित व् पिछड़ी जातीय संगठन आपस में खाद - पानी एक दूसरे को देने का काम कर रहे हैं।

लेकिन देश की मेहनतकश व प्रगतिशील जनता जाति, धर्म, इलाका के नाम पर बाँटने वाली इन ताकतों को मुँह तोड़ जवाब देगी और मानवता की आजादी के लिए लड़े उन असंख्य क्रान्तिकारियों के सपनों को मंजिल तक लेकर जायेगी। ये देश न हिंदुत्ववादियों न मुस्लिमवादियों का है। मेरे मेहनतकश साथियों ये देश ही नही ये पूरी दुनियां तुम्हारी है। इसलिए इकठ्ठा होकर इन फासिस्ट ताकतों को मुँहतोड़ जवाब दो। आज मानवता, इंसानियत को बचाने के लिए इस जहरीले सांप का फन को कुचलना जरूरी है।

इसी के साथ मेरा आप सभी को क्रांतिकारी सलाम।।

फासिस्ट धार्मिक आंतकवादियों.......

You Can Kill A Man,

But You Can't Kill An idea.

Medgar Ever

इंक़लाब जिंदाबाद

UDay Che