सी.पी.आई. का वादा- संयुक्त वाम ब्लॉक धन्नासेठों के खजाने से पैसा निकाल कर आम जनता के लिए खुशहाली लाएगा
बिहार विधान सभा चुनाव में मतदाताओं से सी.पी.आई. की अपील
वाम को अवसर दे अवाम तो अगले पांच साल में बिहार की तसवीर बदल जाएगी
पटना। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने कहा है कि कांग्रेस ने 40 साल बिहार पर राज किया। वह विफल रही तो जनता ने उसको ठुकरा दिया। उसकी हालत यह हो गयी कि वह अब जदयू और राजद की बैशाखी के सहारे चल रही है। 25 साल से जनता राजद-जदयू का राज देख रही हैं। वे भी बिहार को गरीबी, पिछड़ेपन, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अपराध आदि व्याधियों से छुटकारा दिलाने में फेल हो गये हैं।
भाकपा ने कहा है कि सी.पी.आई. और संयुक्त वाम ब्लॉक बदलाव के लिए चुनाव लड़ रहा है, इसलिए संयुक्त वाम ब्लॉक को चुनें।
मतदाताओं के नामजारी एक अपील में पार्टी ने कहा है कि पिछले लोक सभा चुनाव में बडे-बडे लुभावने वादे करके भाजपा गठबंधन जीत गया और इसने केन्द्र में सरकार बनायी। उन वादों का क्या हुआ ?‘ अच्छे दिन’ नहीं आये। गरीबों को लाखपति बनाने का वादा किया था। कहा था कि विदेशों से कालाधन लाकर गरीबों के खाते में 15-15 लाख रुपया जमा कर देंगे। न कालाधन आया, न गरीबों के खाते में जमा हुआ। पूछने पर वे कहते हैं कि ये वादे तो महज ‘चुनावी जुमले’ थे! इस विधान चुनाव में भी वे ऐसे ‘चुनावी जुमले’ खूब उडा रहे हैं। इसलिए सावधान हो जाइए। वामपंथ ही सही विकल्प है।
भाकपा की पूरी अपील इस प्रकार है-
मतदाता बहनो और भाइयो,
बिहार विधान सभा के लिए चुनाव सामने है। एक बार फिर हमारे सूबे का भविष्य दांव पर लगा है। आप के वोट से इस गरीब और पिछडे राज्य की भावी दशा-दिशा तय होगी। बताने की जरूरत नहीं है कि आप का एक-एक वोट कितना कीमती है।
इस चुनाव में तीन गठबंधनों के बीच टक्कर है। एक ओर राज्य के शासक दलों का गठबंधन जदयू-राजद-कांग्रेस गठबंधन है। दूसरी ओर केन्द्र सरकार के शासक दलों का गठबंधन भाजपा-लोजपा-रालोसपा गठबंधन है। तीसरी ओर छह विपक्षी वामपंथी दलों का गठबंधन संयुक्त वाम ब्लॉक है जिसमें शामिल हैं सी॰ पी॰ आई॰, सी.पी.आई. (एम), सी.पी.आई. (एमएल), अखिल हिन्द फारवर्ड ब्लॉक, आर॰ एस॰ पी॰ और एस॰ यू॰ सी॰ आई॰(सी)। आपको इन तीनो गठबंधनों में से एक को चुनना है। हम आप से अपील करते हैं कि संयुक्त वाम ब्लॉक को ही चुनिये।
चुनावी जुमलों से होशियार
बाकी दोनों गठबंधनों के सारे दलों को आप आजमा चुके हैं। कांग्रेस ने 40 साल बिहार पर राज किया। वह विफल रही तो आपने उसको ठुकरा दिया। उसकी हालत यह हो गयी कि वह अब जदयू और राजद की बैशाखी के सहारे चल रही है। 25 साल से आप राजद-जदयू का राज देख रहे हैं। वे भी बिहार को गरीबी, पिछडेपन, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अपराध आदि व्याधियों से छुटकारा दिलाने में फेल हो गये। इसलिए हम आप से अपील करते हैं कि इनको बदलिए। सी.पी.आई. और संयुक्त वाम ब्लॉक बदलाव के लिए चुनाव लड़ रहा है।
दूसरी ओर भाजपा का गठबंधन भी आप से बदलाव की ही अपील कर रहा है। इस गठबंधन के दलों को भी आप आजमा चुके हैं। इनको भी आप कई बार ठुकरा चुके हैं। पिछले लोक सभा चुनाव में बडे-बडे लुभावने वादे करके यह गठबंधन जीत गया और इसने केन्द्र में सरकार बनायी। उन वादों का क्या हुआ ?‘ अच्छे दिन’ नहीं आये। गरीबों को लाखपति बनाने का वादा किया था। कहा था कि विदेशो से कालाधन लाकर गरीबों के खाते में 15-15 लाख रुपया जमा कर देंगे। न कालाधन आया, न गरीबों के खाते में जमा हुआ। पूछने पर वे कहते हैं कि ये वादे तो महज ‘चुनावी जुमले’ थे! इस विधान चुनाव में भी वे ऐसे ‘चुनावी जुमले’ खूब उडा रहे हैं। सावधान हो जाइए।
वामपंथ ही सही विकल्प
इन दोनों के मुकाबले संयुक्त वाम ब्लॉक एक नया विकल्प है। छह वामपंथी दलों के इस नये गठबंधन ने बिहार के विकास का एक नया एजेन्डा आपके सामने पेश किया है। इस एजेन्डा में जनता की सभी समस्याओं के समाधान के उपाय बताये गये हैं। लेकिन सबसे ज्यादा जोर रोजगार पर दिया गया है। सबको राजगार देने के दूरगामी लक्ष्य की शुरूआत में सभी परिवार में कम से कम एक स्थायी रोजगार देने का वादा किया गया है। संयुक्त वाम ब्लॉक की समझ है कि सबको रोजगार राज्य की अनेक समस्याओं के समाधान की कुन्जी है। इसलिए हम आप से अपील करते हैं कि आप सी.पी.आई. और संयुक्त वाम ब्लॉक को ही चुनें।
बदलाव की दिशा क्या हो!
इस तरह दो गठबंधन बदलाव के लिए लड़ रहे हैं। भाजपा गटबंधन दक्षिणपंथी बदलाव के लिए लड रहा है और संयुक्त वाम ब्लॉक वामपंथी बदलाव के लिए। दोनों के बदलाव के अन्तर को समझना जरूरी है। किसके लिए बदलाव ? भाजपा का गठबंधन धन्नासेठों का खजाना भरने के लिए बदलाव चाहता है। यह दक्षिणपंथी बदलाव है। सी.पी.आई. और संयुक्त वाम ब्लॉक मजदूरों, किसानों, सभी मेहनतकश जनता और आम गरीबों की जिन्दगी में खुशहाली लाने के लिए बदलाव चाहती है। यह वामपंथी बदलाव है। भाजपा का गठबंधन आम जनता की जेब काट कर धनासेटों की तिजोरी भरता है। सी.पी.आई. और संयुक्त वाम ब्लॉक धन्नासेठों के खजाने से पैसा निकाल कर आम जनता के लिए खुशहाली लाएगा।
दोनों के बीच के अन्तर को समझने के लिए, मिसाल के तौर पर, इस आंकडे पर गौर कीजिए। देश की 125 करोड की आबादी में 60 करोड किसान हैं। भारत सरकार ने पिछले दस सालों में कृषि पर दो लाख पचास हजार करोड रुपया खर्च किया, यानी एक किसान पर हर साल मात्र 416 रुपया। इसलिए कृषि संकट में है और लाखों किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। दूसरी ओर सरकार ने इन्हीं दस सालों में धन्नासेठों को 42 लाख करोड रुपये की करों में छूट का तोहफा दिया ! अगर देश में वामपंथी सरकार होती तो करों की इस भारी रकम को उगाह कर ग्रामीण विकास पर खर्च करती जिससे गरीबी हमेशा के लिए खत्म हो जाती। भाजपा धन्नासेठों की पार्टी है और उनका खजाना भरने के लिए बिहार में बदलाव चाहती है।
साम्प्रदायिक ताकतो को शिकस्त दें
इसके अलावा भाजपा साम्प्रदायिक आर एस एस-संघ परिवार का राजनीतिक मुखौटा है। विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, शिव सेना, श्रीराम सेना आदि अनेक उग्र साम्प्रदायिक संगठन इसके सहयोगी हैं। इन्हीं ताकतों ने आजादी की लडाई के नेता महात्मा गांधी की हत्या की। आज भी वे अंधविश्वास के खिलाफ प्रचार करनेवालों की हत्या कर रहे हैं। अगस्त 2013 में पुणे में नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या, फरवरी 2015 में कोल्हापुर में भेटरन कम्युनिस्ट और मजदूर नेता गोविन्द पानसरे की हत्या और अभी 30 अगस्त 2015 को कर्नाटक के धारवाड में कन्नड के विद्वान और हम्पी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो एम एम कलबुर्गी की हत्या इसका प्रमाण है।
इतना ही नहीं, वे आज भी वर्ण व्यवस्था को दुनिया की सबसे अच्छी समाज व्यवस्था मानते हैं। उनके शंकराचार्य आज भी महिलाओं को वेद पाठ का अधिकार देने को तैयार नहीं हैं। वे लोकतंत्र को भी विदेशी अवधारणा मानते हैं और‘ मूक बहुमत पर प्रबुद्ध अल्पमत’ की तानाशाही की वकालत करते हैं। आप खुद सोचें कि ऐसी ताकतों के हाथों में बिहार को जाने देना कितना खतरनाक हो सकता है। इसलिए हम आपसे अपील करते हैं कि भाजपा गठबंधन को करारी शिकस्त दें।
विकास के झूठे दावे
जदयू-राजद-कांग्रेस गठबंधन का विकास का दावा कागजी विकास का खोखला दावा हैं। मिसाल के लिए इन आॅकडों पर गौर कीजिए। बिहार में प्रति व्यक्ति सालाना आय मात्र 16801 रुपया है जबकि देश में यह रकम 74193 रुपया है। गरीबी के सरकारी आंॅकडे के मुताबिक बिहार में 34 फीसद आबादी गरीबी रेखा के नीचे है जबकि देश में सिर्फ 22 फीसद है। बिहार में 52 फीसद कच्चा मकन है जबकि देश में मात्र 40 फीसद। बिहार में 77 फीसद घरों में शौचालय नहीं है जबकि देश में 53 फीसद घरों में। बिहार में 84 फीसद घरों में बिजली नहीं है जबकि देश में 67 फीसद घरों में। मातृ मृत्यु दर बिहार में 219 है जबकि देश में 178। इसके अलावा, राज्य में 88 फीसद बच्चे खून की कमी के शिकार हैं और 40 फीसद बच्चे पैदा ही कम वजन के होते हैं। यह कैसा विकास है ?
विकास का मतलव है राज्य के नागरिकों को शिक्षित, स्वस्थ, कुशल और कार्यरत बनाना। यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है न कि ‘बाजार’ की। इस मामले में राज्य के शासक पूरी तरह विफल रहे हैं। उन्होंने इन कामों को प्राइवेट बाजार के हवाले कर दिया है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा चैपट हो गयी है। मिसाल के लिए, राज्य में डाक्टरों का स्वीकृत पर 15000 है लेकिन कार्यरत हैं सिर्फ 3100। डाक्टरों के अभाव में कम्पाउन्डर यानी पारा मेडिक मरीजों का इलाज करते हैं। इसी तरह स्कूलों-कालेजों में शिक्षकों का घोर अभाव है। विद्यार्थियों को पारा टीचर पढाते हैं। रोजगार तो शासकों के एजेन्डा पर है ही नहीं। इसलिए राज्य से छात्रों और मजदूरों का पलायन हो रहा है।
जाहिर है , जदयू-राजद-कांग्रेस को बहुत मौका मिला पर वे बुरी तरह विफल हुए। इस लिए हम आप से अपील करते हैं कि उनको और मौका मत दीजिए और इस बार सीपीआई और संयुक्त वाम ब्लॉक को मौका देकर देखिए।
भ्रष्टाचार और अपराध
ये दोनों जुडवां भाई हैं और एक दूसरे के सहयक भी। इस मामले में दोनों शासक गठबंधनों में कोई मौलिक अन्तर नहीं है। भाजपा के केन्द्र सरकार की विदेश मंत्री और इसी पार्टी की राजस्थान सरकार की मुख्यमंत्री ल्लितगेट घोटाले में फंॅसी हैं, इसी पार्टी के मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री व्यापम घोटाला में और छतीसगढ के मुख्यमंत्री नान घोटाला में। बिहार में भ्रष्टाचार और अपराध का वर्णन करना जरूरी नहीं है। आप खुद भुक्तभोगी हैं और सब जानते हैं। राज्य सचिवालय से ग्राम पंचायत तक पूरी शासन व्यवस्था भ्रष्टाचार में डूबी है।
साबित हो चुका है कि इन दो व्याधियों का इलाज दोनों शासक गठबंधनों के पास नहीं है। इसका कारण भी आपको मालूम है। इन दोनों गठबंधनों के दल पैसे की राजनीति करते हैं। उनकी राजनीति के लिए पैसा भ्रष्टाचार से ही आता है। कालाधन के सहारे चुनाव जीतने वाले भ्रष्टाचार नहीं रोक सकते। बाहुबलियों को पालने वाले और अपराध का राजनीतिकरण तथा राजनीति का अपराधीकरण करने वाले अपराध नहीं रोक सकते। इन व्याधियों का इलाज सिर्फ वामपंथी दल ही कर सकते हैं क्योंकि वे पैसे की नहीं बल्कि जनता की राजनीति करते हैं। इसलिए इन व्याधियों से छुटकारा के लिए भी हम आप से अपील करते हैं कि इस बार सीपीआई और संयुक्त वाम ब्लॉक को जिताइए।
सामाजिक न्याय एवं महिला सशक्तिकरण के लिए वोट
अफसोस की बात है कि आजादी के 68 साल बाद भी पिछड़ों-दलितों-महिलाओं-अल्पसंख्यकों को सामाजिक अत्याचार और उत्पीड़न झेलना पड़ रहा है। सी.पी.आई. इनको सामाजिक न्याय दिलाने और महिला सषक्तिकरण के लिए अनवरत संघर्ष करती रही है। हम आपसे वादा करते हैं कि अगर आपने हमें मौका दिया हम जल्द से जल्द इन तबकों को सामाजिक न्याय तो और आर्थिक समानता का अधिकार निष्चय ही दिलावाएंगे।
जाति-धर्म के आधार पर भेदभाव के खिलाफ
हमारे देश के संविधान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी नागरिक के साथ जाति,धर्म, लिंग आदि के नाम पर भेदभाव नहीं किया जायेगा। लेकिन व्यवहार में देखा जा रहा है कि आज भी समाज के कमजोर वर्गों -दलित, अल्पसंख्यक और महिला के साथ जाति धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव हो रहा है। पुरानी वर्णवादी सामंती समाज व्यवस्था कानूनी रूप से समाप्त हो गई है, कि लेकिन दलितों के साथ जाति के आधार पर वर्णवादी और सामंती संस्कार अपना घिनौना चरित्र अभी नहीं छोड़ रहा है। धार्मिक स्थलों ओर पूजा-पाठ जैसे अवसरों पर दलितों के साथ जातिय भेदभाव किया जाता है। इसे हम समाप्त करने की लड़ाई लड़ते आ रहे हैं और आगे भी लडे़गें।
उसी तरह मुसलमानों के साथ भी सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति वाले नागरिकों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव हो रहा है। इसका क्या औचित्या है कि धोवी, मेहतर, नर आदि गैर मुस्लिम है तो उसका नाम अनुसूचित जातियों की सूची में है और उसे विषेष सरकारी सहुलियतें प्राप्त हैं। लेकिन अगर वह मुस्लिम है तो उस जाति का नाम अनुसूचित जातियों की सूची में नहीं है उसका नाम पिछड़ा वर्ग (एनेक्सर-1) में है। उसको वे सहुलियतें नहीं मिलती जो अन्य धर्म के मानने वालों को मिलती है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ऐसे धार्मिक भेदभाव को मिटाने के लिए संघर्ष करती रही है और आगे भी करती रहेगी।
महिलाओं के साथ भी लिंग आधार पर भेदभाव होता है। एक ही काम के लिए महिलाओं को पुरूषों से कम मजदूरी दी जाती है। ऐसे अनेक भेदभाव के उदाहरण हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव को मिटायेगी।
आम जनता की समस्या ही हमारा एजेंडा
संयुक्त वाम ब्लॉक ने आम आदमी को केन्द्र में रख कर अपना सामाजिक-आर्थिक एजेन्डा आप के सामने रखा है। कृषि सुधार संयुक्त वाम ब्लॉक का पहला एजेन्डा होगा। बेघर भूमिहीनों को 10 डिसमिल वास की जमीन, पर्चाधारियों को कब्जा और कब्जाधारियों को पर्चा , सभी भूमिहीनों को जोत की जमीन, सीमांत और छोटे-मझोले किसानों को निःशुल्क बिजली और आधे दाम पर खाद, बीज आदि कृषि आदान। बाढ-सुखाड-बिजली संकट का स्थायी समाधान। तमाम विकास और कल्याणकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार का अंत। सबको समान शिक्षा और सब के लिए समान स्वास्थ्य सेवा। तकनीकी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना। पिछडों-दलितों-महिलाओ-अल्पसंख्यकों पर सामाजिक अत्याचार का अंत और उनको विकसित करके मुख्य धारा में लाने के लिए विशेष कार्यक्रम। ये उसकी कुछ मुख्य बातें हैं।
न सम्प्रदायवाद, न जातिवाद
बिहार को चाहिए वामपंथी सेकुलर जनवाद
मतदाता भाइयो-बहनो,
खुद आपका अनुभव बताता है कि दोनों शासक गठबंधनों के दल चुनाव में पैसा बिछा कर चुनाव जीतते हैं और जीतने के बाद पैसा देने वाले धन्नासेठों के लिए काम करते हैं, आप के लिए नहीं। फिर भी आपने उनको बार-बार मौका दिया। हम आप से अपील करते हैं कि इस बार आप बिहार की तकदीर बदलने के लिए खुद को बदलिए। दोनों शासक गठबंधनों को ठुकराइए और सी.पी.आई. संयुक्त वाम ब्लॉक को एक मौका दीजिए। हम आप से वादा करते हैं कि अगर सी.पी.आई. संयुक्त वाम ब्लॉक नयी विधान सभा में कारगर हस्तक्षेप करने वाली ताकत बन कर जाएगा तो अगले पांच साल में बिहार की तसवीर बदल जाएगी। हम बिहार को प्रगति, शांति और समाजवाद की दिशा में ले जाना चाहते हैं।
आखिर में हम आप से निवेदन करना चाहते हैं कि केवल सीपीआई और संयुक्त वाम ब्लॉक ही बिहार में सचमुच जनपक्षी, किसान-मजदूरपक्षी, गरीबपक्षी बदलाव ला सकता है। लेकिन वह चुनाव में पैसे का प्रदर्शन नहीं कर सकता। हम आप से अपील करते हैं कि पैसे की राजनीति करने वालों को ठुकराइए और एक नया, विकसित, खुशहाल बिहार बनाने के लिए जनता की राजनीति करने वाली सीपीआई और संयुक्त वाम ब्लॉक के उम्मीदवारों को अपना कीमती वोट देकर भारी मतों से विजयी बनाइए।
निवेदक
बिहार राज्य परिषद
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी