नए साल के जश्न में सज गया समुद्र तट का बाज़ार !
नए साल के जश्न में सज गया समुद्र तट का बाज़ार !

आलीशान फार्म हाउस : समुद्र तट पर नए खतरे
महाबलीपुरम, 1 जनवरी 2014. नए साल के जश्न में समुद्र तट का बाजार भी सज गया है। चेन्नई से करीब साठ किलोमीटर दूर महाबलीपुरम का रास्ता समुन्द्र के किनारे किनारे जाता है। बीती रात यह पूरा रास्ता जगमगा रहा था और सैलानियों की भीड़ समुद्र तट पर जमा थी। रास्ते भर समुद्र तट को बेचने वाले विज्ञापन सिर्फ दिख ही नहीं रहे थे बल्कि जगह जगह बिकने के बाद आलीशान फार्म हाउस में बदल चुके भी नजर आ रहे थे। जिसे देखते हुए समुद्र तट पर मंडरा रहे नए खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है।
हाल में आये तूफ़ान से लोगों को तो बचा लिया गया पर लाखों के घर उजड़ गये। आंध्र प्रदेश से लेकर ओड़िसा और बंगाल तक तटीय इलाकों में तबाही हुयी। इस तबाही की मुख्य वजह समुंद्र तटों के किनारे के जंगल यानी मैनग्रोव का सफाया किया जाना है। यह समुद्र का वह पर्दा है जो तटीय इलाकों में लोगों की प्राकृतिक आपदा खासकर तूफ़ान आदि से रक्षा करता है। अब इस रास्ते पर यह साफ़ हो गया है।
समुद्र तट पर ताज़े पानी और खारे पानी के संगम की तलछ्ट की दलदली मिट्टी पर जो वनस्पति पैदा होती है वह तटीय इलाकों के लिये एक रक्षा कवच का भी निर्माण करती है। वनस्पति विशेषज्ञों के मुतबिक इन पेड़ पौधों की जड़ें पानी में कुछ फीट डूबी रहती हैं जबकि कुछ जड़ें तो हवा में। यह फैलती जाती है और घने समुद्री जंगल में बदल जाती है। जिसकी वजह से इसके पीछे रहने वाले समुद्र के से बच जाते थे।
विश्व का सबसे बड़ा मैनग्रोव यानी समुद्री जंगल सुंदरवन में है। इसकी जैव विविधिता देखने वाली है और आज भी जंगली जानवरों का यह बड़ा आशियाना बना हुआ है।
इस क्षेत्र में बहुतायत से मिलने वाले सुंदरी प्रजाति के पेड़ों के नाम पर इसका नाम सुंदरबन पड़ा था और यह बंगला देश तक फैला हुआ है। जबकि केरल महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश से लेकर तमिलनाडु समेत सभी तटीय प्रदेशों में मैनग्रोव बड़े क्षेत्रफल पर फैले हुये थे। पर अंधाधुंध विकास, उद्योग, बिजली परियोजनाओं और पर्यटन उद्योग के फैलाव के चलते इनका बड़े पैमाने पर सफाया कर दिया गया है। समुद्र तटों खासकर मशहूर सैलानी स्थलों में इन जंगलों को काट कर सैरगाह बना दिये गये हैं। जिसे केरल के कोवलम समुद्र तट से लेकर तमिलनाडु के महाबलीपुरम तक देखा जा सकता है।
महाबलीपुरम तक काट दिया जंगल
पिछले बीस सालों में चेन्नई से महाबलीपुरम तक समुद्र तट के किनारे कैशुरिना के घने जंगल होते थे, जिन्हें काटा जा चुका है। इस अंचल में बंगाल की खाड़ी के समुद्र तट पर मैनग्रोव के परम्परागत पेड़ पौधों की बजाय नारियल के साथ कैशुरिना के घने और लम्बे दरख्त हुआ करते थे। तमिलनाडु के गाँधीवादी कार्यकर्त्ता और जयप्रकाश नारायण के निकट सहयोगी शोभाकांत दास के मुताबिक सत्तर और अस्सी के दशक में तबके मद्रास से पांडिचेरी तक समुद्र के किनारे बहुत ही घने जंगल थे। तब लोग समुद्र के किनारे पाँच सौ मीटर तक निर्माण करने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। पर अब सब बदल गया है। तटीय कानून को ताक पर रख कर निर्माण किया जा रहा है। महाबलीपुरम से चेन्नई तक के रास्ते में तट के किनारे लगभग समूची जगह निर्माण हो चुका है जो गोल्डन बीच रिसॉर्ट से ही शुरू हो जाता है। इसमें केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग के रिसॉर्ट तो शामिल ही है, ज्यादा संख्या निजी रिसॉर्ट की है।
महाबलीपुरम जो पहले मछुवारों का गाँव था अब एक बड़े सैरगाह के रूप में बदल चुका है। पर इस बदलाव के चलते नारियल और कैशुरिना के जंगल बुरी तरह काट दिये गये। अब तूफ़ान आने पर आसपास के गाँवों के लोग बुरी तरह प्रभावित होते हैं।
खास बात यह है कि दक्षिण में समुद्र के किनारे कई जगह इस तरह समुद्री जंगल काट कर रिसॉर्ट और आवासीय परिसर बनाये जा रहे हैं। सी व्यू एपार्टमेंट के नाम से समुद्र तट पर बसे हर शहर में आवासीय परिसर देखा जा सकता है। मुंबई, गोवा, चेन्नई, तिरुअनंतपुरम जैसे बड़े शहरों को छोड़ दीजिये। अब यह छोटे छोटे शहरों और कस्बों में फ़ैल रहा है और इसके लिये समुद्र किनारे के जंगल और बाग़ बगीचे काटे जा रहे हैं। कोवलम से लेकर महाबलीपुरम तक में समुद्र तट से पाँच सौ मीटर दूर निर्माण करने के नियम को ठेंगा दिखाया जा चुका है और अब दस मीटर तक निर्माण किया जा रहा है। ऐसे में बड़ा तूफ़ान आने पर खामियाजा भुगतना पड़ेगा तट के किनारे बसे गाँव में रहने वाले मछुवारों को।
वैसे भी समुद्र तट पर जंगल के काटे जाने और बढ़ती निर्माण गतिविधियों का असर समुद्र के पानी पर पड़ चुका है। बेतरतीब निर्माण और होटल उद्योग के बढ़ते कारोबार की वजह से इनका कचरा सीधे समुद्र में बहा दिया जा रहा है। जिसके चलते समुद्री जीव खासकर मछलियों पर ज्यादा संकट आ गया है। महाबलीपुरम के आस पास के मछुवारों को अब मछली के लिये समुद्र में ज्यादा दूर तक जाना पड़ रहा है और बहुत सी प्रजातियाँ ख़त्म भी होती जा रही है।
समुद्र तट पर बढ़ते अतिक्रमण को लेकर जल्द कोई ठोस पहल नहीं की गयी तो हालात बहुत ख़राब हो सकते हैं। हाल ही में दक्षिण के एक कद्दावर केन्द्रीय मंत्री ने जब महाबलीपुरम के पास तट के किनारे जमीन पर कब्ज़ा करने का प्रयास किया तो आसपास के लोगों ने इसका विरोध कर उनके निर्माण की दीवार तोड़ दी। इससे अतिक्रमण के खिलाफ लोगों के बढ़ते गुस्से का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। (जनादेश)
अंबरीश कुमार, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। छात्र राजनीति के दौर से ही जनसरोकारों के पक्षधर रहे हैं। मीडिया संस्थानों में पत्रकारों के अधिकारों के लिए लड़ते रहे हैं।


