नवउदारवादी नीतियों के समर्थक भीड़ हत्याएं नहीं रोक सकते
नवउदारवादी नीतियों के समर्थक भीड़ हत्याएं नहीं रोक सकते
डॉ. प्रेम सिंह
जंतर-मंतर पर सात दिन का सत्याग्रह उपवास समाप्त हो गया. आखिरी दिन सामाजिक-राजनितिक-शैक्षणिक-धार्मिक संगठनों से, किसान-मजदूर-छात्र संगठनों से और स्वतंत्र रूप से काफी संख्या में लोग आये. सभी ने समस्या को लेकर अपनी संजीदगी और एकजुटता दिखाई. युवाओं की उपस्थिति सातवें दिन भी बड़ी संख्या में लगातार बनी रही. दिल्ली के आस-पास के शहरों से भी कई नवयुवक सोशल मीडिया पर खबर पढ़ कर पहुंचे.
रेणु गंभीर, प्रो. गोपेश्वर सिंह और मंजु मोहन ने जी उपवास की समाप्ति के लिए जूस पिलाया. आशा बनी है कि सरकार द्वारा संवैधानिक व्यवस्था और सभ्यता को दरकिनार करके जो भीड़तंत्र चलाया जा रहा है, उसे रोकने के लिए समाज हर स्तर पर अविलम्ब कार्रवाई करेगा.
लोहिया जी को उपवास पसंद नहीं था. स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सेदारी के चलते उनके पास जेल जाने का लम्बा अनुभव और हौसला था. हमारे पास वह नहीं है. वैसे भी लगता है आगे जिंदगी जेल में ही कटनी है, अगर भीड़ से बचे रहे. भीड़तंत्र इसी तरह बढ़ता रहा तो राजनैतिक कार्यकर्ताओं को भी निशाना बनाया जायेगा, जैसे कुछ लेखकों और बुद्धिजीवियों को बनाया जा चुका है. सरकारें दूर खड़ी रहेंगी. जैसे अब तक खड़ी रही हैं.
मौजूदा सरकार देश के सार्वजानिक-सामाजिक-राष्ट्रीय संसाधनों को देशी-विदेशी कार्पोरेट घरानों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संपत्ति में तब्दील करने का काम कर रही है. उसने आते ही सेना में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दे दी. पिछली सरकार के दौरान 1894 से चले आ रहे भूमि अधिग्रण कानून में ज़मीन के मालिक किसानों के हित में थोड़ा बदलाव हुआ था. यह सरकार आते ही उस कानून पर अध्यादेश ले आई. सार्वजानिक क्षेत्र की नवरत्न ईकाइयों का निजीकरण कर रही है. रेलवे स्टेशनों को बेच रही है. इस जघन्य राष्ट्रीय अपराध से लोगों का ध्यान हटाए रखने के लिए उन्हें आपस में लड़वाती है.
नवउदारवादी नीतियों के समर्थक, चाहे वे नेता हों या सिविल सोसाइटी एक्टिविस्ट, भीड़ हत्याएं नहीं रोक सकते. साम्प्रदायिकता शुरू से ही पूंजीवादी कब्जे का कारगर औजार रही है. उसी के चलते देश का विभाजन हो गया. अब फिर देश को तोड़ा जा रहा है. लिहाज़ा, इस दिशा में नवउदारवाद समर्थकों की इच्छा और प्रयास अधूरे होने को अभिशप्त हैं.
उपवास के अनुभव से हमें भीड़तंत्र को रोकने की दिशा में आगे काम करने की प्रेरणा मिली है. बहुत से साथियों ने साथ मिल कर काम करने का संकल्प लिया है. काम जारी रहेगा. हमें अकलियतों, खास कर नौजवानों, से कहना है कि भारत पर सबका बराबर का हक़ है और रहेगा. वे डरें नहीं, और भटकें नहीं.


