भारत में वामपंथ को बचाना है तो छीन लेंगे लालझंडा बेशर्म नेतृत्व से, मुखर होने लगा वक्त का तकाजा!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
भारत में वामपंथ को बचाना है तो छीन लेंगे लालझंडा बेशर्म नेतृत्व से, वक्त का तकाजा मुखर होने लगा! जबकि पश्चिम बंगाल और केरल विधानसभा चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद और लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के जमीनी हकीकत को सिरे से नजरअंदाज करते हुये माकपा ने नेतृत्व में किसी बदलाव की सम्भावना से लगातार इनकार किया है। माकपा नेतृत्व संकट से जूझ रहा है। माकपा में 35 वर्षो से विधायक मंत्री रहे अब्दुर्रज्जाक मोल्ला ने कहा है कि पार्टी में नेता व कैडर नहीं हैं बल्कि अब मैनेजर व कुछ कर्मचारी रह गये हैं।
जिस बंगाल लाइन के मनुस्मृति राज की बहाली के लिए भारतीय वामपंथ को तिलांजलि देदी वाम नेतृत्व ने, उस बंगाल में चहुंदिसा में वाम कार्यकर्ता नेता पिटते-पिटते केसरिया हुआ जाये क्योंकि तीसरे विकल्प के झूठ का पर्दाफाश होने, सच्चर रपट से मुसलमानों के खिलाफ साजिशाना धोखाधड़ी धर्मनिरपेक्षता के नाम अब खुल्ला तमाशा है और मुसलिम वोट बैंक के भरोसे, बिना विचारधारा महज सत्तासमीकरणी वोट बैंक साधो राजकाज के जरिये बिना कुछ किये 35 साल तक सत्ता में रहने के बाद ढपोरशंखी वाम सत्ता बाहर है।
दो लोकसभा सीटों में सिमट जाने के बाद वाम जनाधार गुब्बारे की तरह हवा हवाई है और नेतृत्व पर वर्ण वर्चस्व नस्ली वर्चस्व बेनकाब है। यूपीए की जनसंहारी नीतियों को जारी रखने के खेल में जल जंगल जमीन की लड़ाई में कहीं नहीं थे कामरेड। सत्ता की राजनीति करते हुये शूद्र ज्योति बसु को प्रधाननमंत्री बनने से रोकने वाले नेतृत्व ने भारत अमेरिकी परमाणु संधि का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के बाद जनपधधर धर्मनिरपेक्ष पाखंड का मुलम्मा बचाने के लिए विचारधारा की दुहाई देकर सोमनाथ चटर्जी की बलि दे दी, तो पार्टी की शर्मनाक हार के लिए पार्टी नेतृत्व से पदत्याग और संगठन में सभी वर्गों, तबकों प्रतिनिधित्व देने की माँग करने वाले किसान सभा के राष्ट्रीय नेता रज्जाक मोल्ला समेत हर आवाज उठाने वाले शख्स को बाहर का दरवाजा दिखा दिया।
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद अब गली-गली शोर है कि कामरेड चोर है। गली गली नारे लगने लगे कि पार्टी हमारी है, पार्टी तुम्हारी है, पार्टी किसी के बाप की नहीं है। नेताओं को भगाओ और वामपंथ को बचाओ। पार्टी जिला महकमा दफ्तरं से लेकर फेसबुक तक पोस्टरबाजी होने लगी तो आत्मालोचना के बजाय कामरेडों ने बहिष्कार निष्कासन का खेल जारी रखा और बेशर्मी से विचारधारा बखानते रहे। प्रकाश कारत, सीताराम येचुरी के इस्तीफे के साथ साथ बंगाल के राज्य नेतृत्व को बदलने के लिए बंगाल माकपा मुख्यालय में जुलूस निकलने लगा तो भी कामरेडों को होश नहीं आया।
अब मदहोश माकपा नेतृत्व पर गाज गिर ही रही है। लाल झंडा बेशर्म कबंधों से छीनने का चाकचौबंद इंतजाम होने लगा है।
कामरेड प्रकाश कारत, कामरेड सीताराम येचुरी और कामरेड माणिक सरकार की मौजूदगी में राज्य कमिटी के अधिकांश सदस्यों ने खुली बगावत करते हुये राज्य और पोलित ब्यूरो तक में नेतृत्व परिवर्तन की माँग कर दी है और साफ साफ बता दिया कि धर्मनिरपेक्ष तीसरा विकल्प झूठ और प्रपंच की सत्ता सौदागरी के अलावा कुछ भी नहीं है।
वामपंथ के दुर्भेद्य गढ़ कहे जाने वाले पश्चिम बंगाल में 34 साल के शासन का अन्त और फिर 16वीं लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार। यही वजह है कि अब मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर विरोधी सुर तेज होने लगे हैं। कोलकाता में माकपा की राज्य कमेटी की बैठक के दौरान कमेटी के सदस्यों ने नेतृत्व परिवर्तन की माँग की।
इतना ही नहीं, माकपा नेताओं ने लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के लिए पार्टी महासचिव प्रकाश करात के गलत राजनीतिक फैसलों को जिम्मेदार बताया।
1960 के दशक से चुनाव मैदान में आई माकपा का प्रदर्शन इस लोकसभा चुनाव में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। जिसके चलते पिछले कुछ दिनों से अयोग्य नेतृत्व को बदलने की माँग तेज होने लगी है।
राज्य कमेटी के नेताओं ने पार्टी के बड़े नेताओं प्रकाश करात, प्रदेश सचिव विमान बोस, पोलित ब्यूरो के सदस्य व पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और प्रदेश में विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्रा पर चुनाव के दौरान बेहतर नेतृत्व नहीं दे पाने का आरोप लगाया। इस बैठक में करात के साथ-साथ त्रिपुरा के मुख्यमंत्री मानिक सरकार और पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी भी मौजूद थे।
पश्चिम बंगाल में 2011 में तृणमूल कांग्रेस ने वाम मोर्चा के 34 साल के शासन का अन्त किया था। जिसके बाद इस लोकसभा चुनाव में 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा सिर्फ दो सीटें ही जीतने में कामयाब हो पाई। जबकि 2009 में हुये लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 15 में से 9 सीटों पर जीत हासिल की थी। राज्य समिति के एक नेता ने कहा कि क्षेत्रीय दलों के साथ मिल कर बने तीसरे मोर्चे ने 2009 की तरह कोई कमाल नहीं दिखाया। उन्होंने कहा कि शीर्ष नेतृत्व की गलत नीतियों की वजह से ही तीसरा मोर्चा यूपीए सरकार के विकल्प के रूप में अपने आप को साबित नहीं कर पाई।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में माकपा के निराशाजनक प्रदर्शन की पृष्ठभूमि में पार्टी के पूर्व दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी ने सबसे पहले कहा कि पार्टी नेतृत्व में तत्काल बदलाव होना चाहिए।
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि माकपा का मौजूदा नेतृत्व लम्बे समय से है और इसे तत्काल हट जाना चाहिए। उन्होंने साफ-साफ कहा कि पार्टी दिग्गज वामपंथी नेता ज्योति बसु की उस सलाह का अनुसरण करने में विफल रही है, जिसमें उन्होंने कहा था कि पार्टी को हमेशा जनता के साथ सम्पर्क में रहना चाहिए।
चटर्जी ने कहा कि ज्योति बसु अक्सर पार्टी नेताओं से कहा करते थे कि वे जनता के साथ निरन्तर सम्पर्क में रहें, लेकिन माकपा नेतृत्व लोगों से दूर हो गये और ज्वलनशील मुद्दों पर कोई एक आंदोलन भी नहीं खड़ा कर पाये। इस लोकसभा चुनाव में भाजपा के शानदार प्रदर्शन के पीछे की एक वजह यह भी है कि वाम पक्ष ने देश में ज्वलनशील मुद्दों पर आवाज बुलन्द नहीं की। साल 2008 में संसद के भीतर भारत-अमेरिका परमाणु करार को लेकर विश्वास मत प्रस्ताव पर मतदान के बाद माकपा ने श्री चटर्जी को निष्कासित कर दिया था। उस वक्त सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे।
मालूम हो कि जुलाई 2013 में ही तृणमूल कांग्रेस पर पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव के तीसरे चरण में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुये माकपा नेता अब्दुर रज्जाक मुल्ला ने अपनी पार्टी के नेतृत्व के पुनर्गठन का आह्वान किया। लेकिन पार्टी नेतृत्व ने नेतृत्व परिवर्तन की माँग से आजिज आकर आखिरकार मोल्ला को पार्टी से बाहर निकाल दिया।
तभी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के कार्यकर्ताओं और लाल झंडे की गैरहाजिरी के बारे में पूछे जाने पर मोल्ला ने सत्ता में आने के लिए पार्टी को पुन: संगठित और पुनर्गठित किए जाने का आह्वान किया। मोल्ला ने कहा था कि नेतृत्व को पुन:संगठित और पुनर्गठित किए जाने की जरूरत है, केवल ऐसा करने पर ही पार्टी अपनी लहर को वापस पा सकती है।
पूर्व की वाम मोर्चा सरकार में भूमि सुधार मंत्री रहे मुल्ला पार्टी नेतृत्व के एक धड़े का असमय विरोध करने के कारण राजनीतिक गलियारे में ढुलमुल माने जाते रहे हैं। उनके निशाने पर खास तौर से पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और पूर्व उद्योग मंत्री निरुपम सेन रहे हैं।
गौरतलब है कि अपने मंत्रित्व काल में मोल्ला ने हुगली जिले के सिंगूर में टाटा मोटर्स के नैनो कार संयंत्र के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया का खुलकर विरोध किया था।