नोटबंदी-आयकर खत्म करके पूंजीपतियों का सारा कालाधन सफेद बनाने की तैयारी
पेटीएम का कल्कि जलवा अब वित्तीय प्रबंधन और अर्थव्यवस्था दोनों हैं

दो हजार के नोट के रदद करने के साथ लेनदेन टैक्स का समाजवाद हिंदुत्व एजंडा का लक्ष्य

पलाश विश्वास

भारतीय बैंकिंग प्रणाली के दिवालिया हो जाने से देश के खेत खलिहाल, कल कारखाने और खुदरा बाजार मरघट में तब्दील हैं।

भारतीय बैंकिंग प्रणाली के दिवालिया हो जाने से देश के खेत खलिहाल, कल कारखाने और खुदरा बाजार मरघट में तब्दील हैं।

जो अरबपति नहीं हैं, करोड़पति नहीं हैं, उनपर भी उनके बराबर टैक्स

#Daulatabadsedelhi

#Currencyspeechhindutvaagenda

#Bloodlessgenocide

#Digitalnondigitalddivide

पांच सौ और एक हजार के पुराने नोट बंद किए जाने के प्रधानमंत्री के फैसले से पूरे देश में हलचल है। देश में आर्थिक क्रांति के जनक कहे जाने वाले अनिल बोकिल की टीम ने प्रधानमंत्री के इस कदम को सही ठहराते हुए दावा किया है कि जल्द ही देश में अधिकांश कारोबार कार्ड व चेक से किए जाने लगेंगे।

हम शुरू से लिख रहे थे कि कालाधन निकालना नहीं, इस नोटबंदी का असल मकसद कैसलैस सोसाइटी बनाना है, जिससे उत्पादक जनसंख्या को अर्थव्यवस्था और बाजार से बाहर फेंककर बहुराष्ट्रीय कंपिनयों का एकाधिकार कायम कर सके देशभक्तों की यह सरकार।
यह अभूतपूर्व नरसंहारी अश्वमेध अभियान है।
दवितीय विश्वयुद्ध के दौरान कोलकाता में दो चार बम गिरने के अलावा पूरे बंगाल में कहीं बम नहीं गिरा लेकिन लाखों लोग भुखमरी के शिकार हो गये और लोगों के काम धंधे चौपट हो गये, अभूतपूर्व कृषि संकट की वजह से।

अब हरित क्रांति के बाद खेती के लिए लगातार नकदी चाहिए लेकिन वह नकदी किसानों को नहीं मिल रही है तो समझ लीजिये अब बंगाल की भुखमरी पूरे देश की नियति है।

दूसरी ओर, इस कयामती फिजां में भी अंध राष्ट्रवाद का जो कीर्तन जारी है और नये नोट पर प्रधानमंत्री के भाषण का जो हिंदुत्व एजंडा है, उसके तिलिस्म में कैद आम लोगों को मालूम भी नहीं है कि कैसे पूरा देश अब गैस चैंबर में तब्दील है और कैसे वे भोपाल गेस त्रासदी के शिंकजे में हैं।

बंगाल में नोटबंदी के आलम में सबसे लोकप्रिय अखबार के पहले पेज पर दो हजार रुपये के नये नोट जल्द ही वापस किये जाने की प्रधानमंत्री की नई योजना को लेकर अफरा तफरी मच गयी है।

कालाधन निकालने के लिए अभी-अभी जारी दो हजार रुपये के नोट भी रद्द होने वाले हैं जबकि 24 नवंबर के बाद पुरना पांच सौ और एक हजार के नोट बैंकों में जमा नहीं होंगे।
सौ के नोट पहले दो तीन दिन में ही खत्म हो गये। बैंकों से दस, बीस और पचास के नोट भी नहीं मिल रहे हैं।
फिलहाल एटीएम और बैंकों से बूंद-बूंद जो कैश निकल रहा है, वह इकलौता दोहजार रुपल्ली का नोट है। उसे खुदरा बाजार में चलाना मुश्किल है तो बैंको से निकाले गये ये रुपये फिर बदलने के लिए लाइन लगानी होगी, इस आशंका से एटीएम पर लाइनें सिकुड़ गयी हैं।

बैंकों में इस नोटबंदी संकट से निपटने के लिए पुराने कर्मचारियों को अस्थाई तौर पर वापस बुलाया जा रहा है, लेकिन संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में लाखों नौकरियां यकबयक खत्म हैं और करोड़ों लागों का न सिर्फ रोजगार छिना है वे हमेशा से अपने धंधे और बाजार से बाहर चले गये हैं।

इसे हमने पहले ही रक्तहीन नरसंहार भोपाल गैस त्रासदी लिखा है।

खेती के लिए किसानों के पास नोट नहीं है तो इस नोटबंदी से आगे भुखमरी का भारी संकट है।

किसानों को राहत देने का राजनीतिक दावं जितना है, खेती के लिए संकट के मुकाबले की कोई तैयारी है नहीं।

हरित क्रांति के बाद खेती बैंकिंग के सहारे चल रही है।

भारतीय बैंकिंग प्रणाली के दिवालिया हो जाने से देश के खेत खलिहाल, कल कारखाने और खुदरा बाजार मरघट में तब्दील हैं।
देश सिर्फ कैशलैस नहीं हो रहा है। बल्कि आयकर खत्म करके पूंजीपतियों का सारा कालाधन सफेद बनाने की तैयारी है।
आम जनता का जो भी पैसा जमा है या जो उन्हें वेतन, भत्ता, जमा, पेंशन, ग्रेच्युटी बीमा के रुप में मिला है और जो बैंकों में जमा है, उस पर आयकर लगा है, स्रोत से ही कट गया है।

अब अपने इस सफेद धन की लेनदेन पर उन पर ट्रांजक्शन टैक्स लगना है। कायदे से उन्हें, खासकर सेवानिवृत्त और बैरोदगार लोगों पर टैक्स लगना नहीं है। उन सारे लोगों पर टैक्स लगेगा। जबकि अरबपतियों को भी उसी दर से लेनदेन टैक्स देना होगा। राजा भोज और गंगू तेली लेन देन के लिए समान दर से टैक्स अदा करेंगे।

अरबपति करोड़पति कालाधन वालों का पैसा सफेद तो हो ही गया है और अब उनकी नकदी पर गरीबों के बराबर टैक्स लगेगा।

कल्कि महाराज के राजकाज में समता और सामाजिक न्याय के बिना यह समाजवादी राजकाज है।

अब पहले की तरह एटीएम से जब चाहे तब रुपये निकलने की आजादी भी खत्म हो रही है। फिलहाल नोटबंदी के आलम में जो एटीएम से पैसा निकालने पर पाबंदी है, यह पाबंदी आगे भी जारी रहनी है। यानी जबर्दस्ती कैशलैस बनाने का इंतजाम है। इसका नजारा भी खूब है। कैश लेन-देन के लिए सरकार लगभग तीन हजार तक की सीमा तय कर सकती है।
गौर करें कि पेटीएम के सुपरमाडल कौन हैं।
अपने ब्रांड की कामयाबी के लिए उनने देश की अर्थव्यवस्था ही नहीं, आम जनता की रोजमर्रे की जिंदगी बंधक बना दी है।

अभी बीसियों लोग इस नोटबंदी में मारे गये हैं।

छह महीने तक हालात सामान्य हो जाये तो भी नकदी मिलने वाली नहीं है और इस कैशलैस एजेंडा के करेंसी स्पीच को भक्तगण क्रांति बता रहे हैं।
कल्कि महारज को कार्ल मार्क्स कहा जा रहा है। देश में गरीबी अमीरी के अलावा डिजिटल विभाजन के हालात है।
जिनके पास तकनीक है और पैसा भी है, उनके लिए मजे ही मजे, जिनके पास न तकनीक है और न पैसा, उनके लिए मौत और खुदकशी के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

हालत यह है कि नोटबंदी के बाद कैश में लेन-देन और खरीददारी पर तो समझिए बैन लग गया है। जाहिर है कि जमाना 4 घंटे में डिजिटल हो गया और अब इसका सबसे बड़ा फायदा पेटीएम को होता नजर आ रहा है।

संसद के प्रति इस सरकार की कोई जबावदेही नहीं है।

नोटबंदी पर संसद में हंगामा चल रहा है लेकिन अब तक प्रधानमंत्री ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है। वे किसी तानाशाह की तरह सीधे जनता को संबोधित कर रहे हैं और तमाम लोकतांत्रिक संस्तानों यहां तक की भारत की संसद को ठेंगे पर रख रहे हैं।