नोटबंदी की तबाही का 42 वां दिन कतारों में देश, बचत पर डकैती
नोटबंदी की तबाही का 42 वां दिन कतारों में देश, बचत पर डकैती
नोटबंदी की तबाही का 42 वां दिन कतारों में देश, बचत पर डकैती
बचत पर डकैती, मरे हुए चार करोड़ शुतुरमुर्गों, मेहनतकशों पर कुठाराघात
पीएफ सूद में कटौती, दस फीसद शेयर बाजार में
रेलवे में व्यापक छंटनी की तैयारी
पलाश विश्वास
पीएफ का सूद घटा दिया गया है। बधाई।
नौकरीपेशा शुतुरमुर्ग प्रजाति विलुप्तप्राय है।
मेरे देश के महान शुतुरमुर्गों, आपको गैंडों की खाल मुबारक हो।
मेरे देश के महान शुतुरमुर्गों, आपको रेगिस्तान की तेज आंधी मुबारक हो।
मेरे देश के महान शुतुरमुर्गों आपको तेल युद्ध का अरब वसंत मुबारक हो।
मेरे देश के महान शुतुरमुर्गों, आपको अमेरिका इजराइल मुबारक हो।
मेरे देश के महान शुतुरमुर्गो, आपको राममंदिर का रामराज्य मुबारक हो।
मेरे देश के महान शुतुरमुर्गों , आपको नोटबंदी की कयामती फिजां मुबारक हो।
मेरे देश के महान डिजिटल कैशलैस शुतुरमुर्गों, आपको पिघलते ग्लेशियर, मरी नदियां, रेडियोएक्टिव समुंदर, परमाणु भट्टी मुबारक हो।
मेरे देश के महान डिजिटल कैशलैस शुतुरमुर्गों, आपको भारत पाक युद्ध, चीन के साथ छायायुद्ध, बांग्लादेश विजय मुबारक हो।
मेरे देश के महान शुतुरमुर्गों, आपको अपने प्यारे बच्चों के कटे हुए हाथ पांव, लहूलुहान दिलोदिमाग मुबारक हो। आम जनता का कत्लेआम मुबारक हो।
मेरे देश के महान शुतुरमुर्गों आपको अपनी महाकालनिद्रा मुबारक हो।
मेरे देश के महान शुतुरमुर्गों, आपकी नींद में करीब ढाई दशकों से खलल डालने का अपराधी हूं। फिर फिर यह अपराध कर रहा हूं। मेरे खिलाफ गुस्सा भी मुबारक हो।
शुतुरमुर्गों, मुबारक हो कि रेलवे कर्मचारियों की संख्या 19 लाख से घटकर 13 लाख तक पहुंच गयी है। अब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने देश का पहला मिलाजुला आम व रेल बजट पेश करने से कुछ सप्ताह पूर्व रेलवे के गैर प्रमुख कामकाज मसलन आतिथ्य सेवाओं की आउटसोर्सिंग पर जोर दिया है।
रेलवे की ज्यादातर सेवाओं का पहले ही निजीकरण हो चुका है और अब व्यापक छंटनी की तैयारी है।
झोला छाप अर्थशास्त्रियों का करिश्मा नोटबंदी है, फ्रंटलाइन की नोटबंद कुंजी पर हस्तक्षेप पर विस्तार से पढ़ लें।
अभी आरएसी के टिकट पर कंफर्म सीट न देने का फतवा है और आगे बगुला भगत अर्थशास्त्रियों के सुझाव मुताबिक रेलवे में सिर्फ चार लाख कर्मचारी होंगे।
रेलवे रिफॉर्म पर दिल्ली में हुए सेमिनार के दौरान वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि आने वाले दिनों में रेलवे को हाइवे और एयरलाइन सेक्टर से कड़ी चुनौती मिलने वाली है। उन्होंने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि नोटबंदी के बावजूद एयर ट्रैफिक में खासी बढ़ोतरी दिख रही है।
रेलवे रिफॉर्म पर बात करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि रेलवे को ट्रैक पर लाने की तैयारी की जा रही है।
यह ट्रैक आउटसोर्सिंग और व्यापक छंटनी का ट्रैक है।
पहली दफा जब शेयर बाजार में पीएफ फंड से पांच फीसद बाजार में डालने का फैसला हुआ, तब हम इंडियन एक्सप्रेस समूह के जनसत्ता के संपादकीय में नौकरी में थे। हमने जो लिखा सो लिखा, सभाओं, सम्मेलनों और दफ्तरों में जा जाकर कर्मचारियों को समझाने की कोशिशें की कि नीतिगत निर्णय के लिए संसदीय हरी झंडी के लिए सिर्फ पांच फीसद बाजार में जा रहा है फिलहाल।
बैंक, बीमा समेत सरकारी उपक्रमों के निजीकरण की शुरुआत हमेशा पांच फीसद विनिवेश से होता है, जिसे आहिस्ते आहिस्ते 49 फीसद तक बढ़ा दिया जाता है। ऐसा हर सेक्टर में हुआ है।
इसी बीच उद्योग मंडलों और निर्यातक संगठनों के प्रतिनिधियों ने शनिवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ बजट पूर्व चर्चा कर ली है।
इस बैठक में सरकार को सरकारी कंपनियों (पीएसयू) में विनिवेश तेज करने, कॉरपोरेट टैक्स को घटाकर 18 प्रतिशत करने और मैट में कमी का सुझाव भी दिया गया है। आम जनता का चाहे जो हो, उद्योग जगत के ये सुझाव मान लिये जाने के आसार बहुत ज्यादा हैं।
इसका सीधा मतलब यह हुआ कि विनिवेश के रास्ते निजीकरण और तेज होगा और उसी हिसाब से तेज होगी छंटनी और रोजगार सृजन के बजाय बेरोजगारी बढ़ेगी।
पीएफ का सूद घटा दिया गया है। बधाई।
नौकरीपेशा शुतुरमुर्ग प्रजाति विलुप्तप्राय है।
मेरे देश के महान शुतुरमुर्गों, आपको गैंडों की खाल मुबारक हो।
मेरे देश के महान शुतुरमुर्गों, आपको नोटबंदी की कयामती फिजां मुबारक हो।
मेरे देश के महान शुतुरमुर्गों, आपको अपने प्यारे बच्चों के कटे हुए हाथ पांव, लहूलुहान दिलोदिमाग मुबारक हो। आम जनता का कत्लेआम मुबारक हो।
मेरे देश के महान शुतुरमुर्गों आपको अपनी महाकालनिद्रा मुबारक हो।
मेरे देश के महान शुतुरमुर्गों, आपकी नींद में करीब ढाई दशकों से खलल डालने का अपराधी हूं। फिर फिर यह अपराध कर रहा हूं। मेरे खिलाफ गुस्सा भी मुबारक हो।
जिस शेयर बाजार को अर्थव्यवस्था की सेहत माना जाता है उत्पादन के दहशतगर्द आंकड़ों के विपरीत, नोटबंदी के आलम में उसका हाल बवाल है।
बैंकिंग, मेटल, फार्मा, ऑटो और ऑयल एंड गैस शेयरों में बिकवाली बढ़ने से बाजार पर दबाव बना है।
कारोबार और उद्योग जगत में खलबली मची हुई है।
अब भी सबसे निश्चिंत नौकरीपेशा लोग हैं।
नोटबंदी के बचाव में नया शगूफा यह है कि लगभग 200 सालों तक गुलाम बनाकर रखने वाले ब्रिटेन को भारत की अर्थव्यवस्था ने पीछे छोड़ दिया है।
करीब सौ सालों में पहली बार ऐसा मौका आया है जब ब्रिटेन के गुलाम रहे किसी देश ने ऐसी उपलब्धि हासिल की हो।
दरअसल आजादी के पहले तक भारत के उद्योग-धंधे तबाह कर यहां के कच्चे माल के दम पर पूरी दुनिया में व्यापार करने वाले ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था की हालत खराब हो चुकी है।
यूरोपीय संघ से हटने के बाद से उसकी मुद्रा पाउंड की कीमत पिछले 12 महीनों में काफी गिर गई है।
अभी तक माना जा रहा था कि भारत 2020 तक ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ देगा।
इसके विपरीत हकीकत यह है कि नोटबंदी का सबसे बुरा असर असंगठित क्षेत्र पर ही पड़ा है। सभी छोटे और मझोले उद्योग और कारोबार कैश की किल्लत से जूझ रहे हैं। व्यापार सिकुड़ता जा रहा है और अब इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय माना जा रहा है।
एसोचैम का आकलन है कि नोटबंदी का सबसे बुरा असर सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्योगों पर पड़ा है। नोटबंदी की वजह से असंगठित क्षेत्र में रोज़गार के अवसर तेज़ी से घट रहे हैं।
शुतुरमुर्गों, नकदी संकट जस का तस है, जिसके साल भर में सुलझने के आसार नहीं है। अब मीडिया के मुताबिक भारत में वृहद स्तर पर बैंकों के पास पूंजी की कमी की समस्या अभी बनी रहेगी और इससे जूझती रहेगी।
शुतुरमुर्गों, एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के बैंकिंग सिस्टम को अगले तीन साल में 1.2 लाख करोड़ रुपए या 18 अरब डॉलर की अतिरिक्त पूंजी की जरूरत होगी।
हमने विनिवेश आयोग की सिफारिशों और विनिवेश परिषद की कार्ययोजना के तमाम दस्तावेज अटल जमाने से लगातार शेयर किये हैं।
हमारे ब्लागों में वे दस्तावेज चाहे तो अबभी आप देख सकते है।
हमने लगातार कहा है कि देश के संसाधन विदेशी पूंजी के हवाले करने का यह कार्यक्रम है।
विनिवश का मतलब बिक्री है या शटर डाउन है। इसका सीधा मतलब छंटनी है।
शुतुरमुर्गों को भरोसा रहा है कि पीएफ से छेड़छाड़ नहीं होगी।
शुतुरमुर्ग मानते ही नहीं थे कि उनके साथ कुछ बुरा हो सकता है।
मसलन एअर इंडिया या इंडियन एअर लाइंस के सबसे सुखी, सबसे संपन्न शुतुरमुर्ग तो किसी भी तरह के संकट से सीधे इंकार कर रहे थे।
इसी तरह रेलवे और बैंकिंग के महान शुतुरमुर्गों और शुतुरमुर्गों के पेशेवर नेताओं और य़ूनियनों को घमंड है कि उनका सरकार कभी बुरा कर ही नहीं सकती। वे जब चाहे तब हड़ताल कर सकते हैं.सेवा ठप करके मांगे मनवा सकते हैं। वेतन भत्ते अवकाश में इजाफा कर सकते हैं। करते भी रहे हैं।
लेकिन ये शुतुरमुर्ग भी अपनी नौकरी बचा भी लें तो साथियों की नौकरी बचा नहीं सकते या बचाना ही नहीं चाहते।
खास तौर पर केंद्र सरकार के कर्मचारी अपने को खुदा से कम नहीं समझते। इन सुर्खाब के परों वाले शुतुरमुर्गों का खुदा ही अब उनका मालिक है।
सबसे चित्र विचित्र गरीब राज्य सरकारों के मातहत काम कर रहे पार्टीबद्ध शुतुरमुर्गों का है।
वेतनमान लागू हो जाता है, जो कभी पूरा नहीं मिलता है। वेतन मिलता है तो भत्ता नहीं मिलता। कमाने खाने की छूट वफादारी पर निर्भर है। कमाते भी हैं। खाते भी हैं। खिलाते भी हैं।
इन शुतुरमुर्गों को अपना बेशकीमती सर छुपाने के लिए रेत भी नसीब नहीं है। चोट कहीं भी हो, इन शुतुरमुर्गों को चूं तक की इजाजत नहीं है।
अब ईपीएफ फंड से दस फीसद शेयर बाजार में डालने का फैसला संसद सत्र के अवसान के बाद हुआ है। इसके लिए संसद की मंजूरी जरुरी नहीं है।
इस तरह 49 फीसद तक पीएफ शेयर बाजार में आहिस्ते आहिस्ते चले जाना है। शेयर बाजार से नत्थी होने के बाद बीमा का प्रीमियम तक अब करोड़ों लोगों को वापस नहीं हो रहा है।
शेयर बाजार में उतार चढ़ावे के बाद जो लाखों करोड़ का नुकसान छोटे निवेशकों को होते हैं, वे सरकारी निवेश हैं। यानी हमारी जमा पूंजी का सरकारी बंटाधार।
शुतुरमुर्गों, हमारे बचत और बीमा के खातों से हमारी जानकारी और इजाजत के बिना सरकारी निवेश है। पीएफ और बीमा इसके दायरे में है।
शुतुरमुर्गों, पीएफ का सूद पहले कभी करीब 14 फीसद रहा है जो अब घटते घटते 8.65 प्रतिशत तक हो गया है। कम से कम पांच फीसद का नुकसान अब तक हो गया है। फिर भी शुतुरमुर्गों का सर रेत के ढेर में गढ़ा है, मरुस्थल हो, न हो। गैंडों की खाल सही सलामत है और किसी सूरत में किसी की चीख पुकार से कालनिद्रा में खलल नहीं पड़ी है।
कुंभकर्ण की निद्रा भी इन शुतुरमुर्गों की नींद के आगे तुच्छ है।
हमने निजीकरण, उदारीकरण और ग्लोबीकरण के मुक्तबाजार में आम जनता और खासकर जाति व्यवस्था के तहत और भौगोलिक नस्ली अस्पृश्यता के तहत नरसंहारी अश्वमेध अभियान के शिकार निनानब्वे फीसद जनता को चौबीसों घंटे जानकारी देने के सिवाय कुछ भी नहीं किया है पिछले 25 सालों के दौरान।
हम देश भर में हर सेक्टर के कर्मचारियों को विनिवेश का फंडा समझाने की कोशिशें लगातार जारी रखी है। नतीजा इसीलिए हमारे लिए तबाही का सबब है।
शुतुरमुर्गों, नवउदारवाद की दस्तक शुरु होने से पहले हमने अमेरिका से सावधान पहले खाड़ी युद्ध के दौरान लिखना शुरु करके देश को साम्राज्यवादियों का उपनिवेश बनाकर रंगभेदी मनुस्मृति शासन लागू करने के खिलाफ लगातार चेतावनी दी है।
हमारे लोग सावधान नहीं हुए। हम कारपोरेट मीडिया और संपन्न मौकापरस्त मेधा के सत्तावर्ग की काली सूची में आ गये।
शुतुरमुर्गों, लगातार बड़े अखबारों के संपादकीय में रहकर 36 सालों से दैनिक संस्करणों के संपादन प्रकाशन में लगे रहने के बावजूद मुझे दूध में से मक्खी की तरह निकाल बाहर कर दिया गया है। जिसका मुझे अफसोस नहीं है।
हमने लगभग पूरे देश की यात्राएं इस दौरान कर ली और लगभग हर सूबे में सभाओं और सम्मेलनों में सत्ता वर्ग के नरसंहार कार्यक्रम के बारे में चेतावनी दी है।
अभिव्यक्ति के हम माध्यम से हम और हमारे तमाम साथी लगातार मुक्तबाजार के विध्वंस के बारे में चेताते रहे हैं।
आम लोग अर्थशास्त्र नहीं समझते लेकिन पढ़े लिखे लोग अर्थशास्त्र और विज्ञान, राजनीति और गणित जरुर जानते होंगे, ऐसी हमारी उम्मीद थी। वे कितना समझते हैं, कितना नहीं समझते हम नहीं जानते , लेकिन पानी सर के ऊपर हो जाने के बावजूद वे कमसकम खुद को बचाने के लिए कोई हरकत नहीं कर रहे हैं।
देश में अमन चैन है।
सारे शुतुरमुर्ग चुप हैं।
बाबासाहेब ने इन्ही शुतुरमुर्गों के बारे में कहा था कि पढ़े लिखे लोगों ने उन्हें धोखा दिया है।


