नोटबंदी की हकीकत! ‘काले पैसे’ के बहाने देश की जनता पर हमला
साथियों,

मोदी सरकार द्वारा 8 नवम्बर 2016 की मध्यरात्रि से 500 और 1000 रुपए के नोट को प्रचलन से बाहर कर दिया गया। नोटबंदी की इस घोषणा के चलते चारों तरफ अफरा-तफरी का आलम है, बैंकों के बाहर सुबह से रात तक लम्बी-लम्बी कतारें लगीं हैं, सारे काम छोड़कर लोग अपनी ही मेहनत और बचत के पैसे पाने के लिए धक्के खा रहे हैं।

अस्पतालों में मरीजों का इलाज नहीं हो पा रहा है, बाज़ार बन्द पड़े हैं, कामगारों को मज़दूरी नहीं मिल पा रही है, आम लोग रोज़मर्रा की मामूली ज़रूरतें तक पूरी नहीं कर पा रही हैं।

नोटबंदी के चलते देश मे करीब 70 लोगों की जान जा चुकी हैं। दिलचस्प बात यह है कि देश के बड़े पूँजीपतियों, व्यापारियों, अफसरों-नेताओं, फिल्मी हस्तियों और तमाम महा-अमीरों में इस फैसले से न कोई बेचैनी या खलबली दिखायी दे रही है और ना ही कोई भी बैंकों की कतारों में धक्के खाते दिख रहा है। जबकि इनके पास काला धन होने की सबसे ज़्यादा सम्भावना है। उल्टे वे सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं! आखिर माज़रा क्या है?
आखिर ये काला धन है क्या ?
दोस्तों, जिस देश और समाज में मेहनत की लूट को कानूनी जामा पहना दिया जाए, जहाँ पूँजीपतियों को कानूनन यह छूट हो कि वह मेहनतकशों के खून-पसीने को निचोड़कर अपनी तिजोरियाँ भर सकें, वहाँ “गैर-कानूनी” काला धन पैदा होगा ही।

यह एक स्थापित तथ्य है कि मौजूदा आर्थिक व्यवस्था और शासन प्रणाली ही काला धन पैदा करती है जिसका अम्बानी, अडानी, माल्या जैसे धनकुबेरों के साथ गठजोड़ है।

हाल में ही प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार आज देश की कुल संपत्ति का 84 फीसदी हिस्सा महज 20 फीसदी अमीर लोगों के पास है, और इस कुल संपत्ति में भी आधे से अधिक (58%) प्रतिशत सम्पत्ति महज एक फीसदी महाअमीर लोगों के पास है। यह देश के लोगों की मेहनत और प्राकृतिक संसाधनों की बेतहाशा लूट से ही सम्भव हुआ है।

मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इसमें लगातार बढ़ोतरी हुई है।

साथियों, गए जमाने जब काला धन बक्सों या तकियों के कवर में या जमीन में गाड़कर रखा जाता था।

आज ज्यादातर काला धन भी सफेद धन की तरह बाजार में घूमता रहता है और इसका मालिक उसे लगातार बढ़ाने की फिराक में रहता है।
कालाधन घरों में नहीं बल्कि बाजार में लगा हुआ है।
पूँजीवादी व्यवस्था में धन-सम्पदा नोटों के रूप में नहीं बल्कि ज़मीन-मकान, जंगल, खदान, कारख़ाने, सोना-चाँदी, हीरे-मोती, जैसे दिखायी देने वाले रूपों से भी ज़्यादा देशी-विदेशी कम्पजनियों के शेयरों-बॉन्डों, देशी-विदेशी बैंक खातों, पनामा-स्विस-सिंगापुर-मॉरीशस जैसे टैक्स चोरी के ठिकानों में स्थापित काग़ज़ी कम्पनियों और बैंक खातों में जटिल रूपों में रहती है।

एक आधिकारिक अध्ययन के अनुसार देश में काले धन का 80 प्रतिशत हिस्सा बैंकों के माध्यम से पनामा, स्विस और सिंगापुर के बैंकों में पहुँच जाता है। शेष 20 प्रतिशत काले धन का एक बड़ा हिस्सा जमीनों और बिल्डिंगों, सोना, कम्पनियों के शेयरों, नशीली दवाओं की तस्करी आदि के रूप में देश के अन्दर जमा है।

हाल ही में ‘खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय संघ’ (International Consortium of Investigative Journalists) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक महाअमीर भारतीयों द्वारा 130 लाख करोड़ रुपए अवैध रूप से विदेशी बैंकों में जमा कराये गए है जो कि लगभग देश के वार्षिक राष्ट्रीय उत्पाद यानी जीडीपी (2 ट्रिलियन डॉलर) के बराबर है।

यदि यह धन ही वापस आ जाए तो हर भारतीय को दस लाख रुपये मिल सकते हैं।

अब आप ही अंदाजा लगाइए कि असली काला धन कहाँ है?
नकली नोटों का सच…
अब नकली नोटों के सवाल पर आते हैं।

‘द हिन्दू’ और ‘हिन्दुस्तान टाईम्स’ (11 नवंबर 2016) की रिपोर्ट के अनुसार NIA जैसी केन्द्रीय एजेंसियों और भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता (ISI) के अनुसार हर वर्ष 70 करोड़ रुपये के नकली नोट प्रचलन में आते हैं और किसी एक समय देश में कुल नकली करेंसी की मात्रा 400 करोड़ रुपये होती है जो कि कुल चलित करेंसी का मात्र 0.002 प्रतिशत है।

अब इसको ख़त्म करने के लिये पूरी करेंसी को बदलने पर 15-20 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करना अगर मूर्खता भी नहीं तो अविवेकी फ़ैसला तो कहा ही जायेगा, जैसे सड़क पर चींटी मारने के लिये रोड रोलर चलाना!

देश की कुल मुद्रा मूल्य का 86.4 प्रतिशत हिस्सा 500 और 1000 रूपए की शक्ल में है, जिसे एक झटके में प्रचलन से बाहर कर दिया गया है, मगर रोजमर्रा के लेनदेन के लिए कम मूल्य के नोटों से इसकी भरपाई करने का कोई इन्तजाम नहीं किया गया है। इसके कारण जनता की खरीदने की क्षमता खत्म हो गई है।

पैसे की इस कमी का विनाशकारी परिणाम यह है कि सभी तरह की उत्पादक गतिविधियां पूरी तरह ठप्प पड़ गई हैं, जिसमें कृषि, खुदरा व्यापार, परम्परागत ग्रामीण रोजगार आदि शामिल हैं।

चूंकि भारत में करीब 95 प्रतिशत आबादी अनौपचारिक और असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है, जहां पूरा आर्थिक कारोबार नगदी में होता है, वहां नोटबंदी के इस कदम के कारण नगदी की भारी कमी हो गई है और शुरुआती दो हफ्ते के भीतर ही देश की विकास दर आधी रह गई है।

कम मूल्य के नोटों की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति करने के बजाय, जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी, 2000 रुपए के नोटों की अग्रिम छपाई कार्पोरेट अरबपतियों को खुश करने के लिए है।
साथ ही, यह आम जनता के जले पर नमक छिड़कने जैसा है।
जहाँ तक पाकिस्तान द्वारा नये नकली नोट ना बना पाने का सवाल है तो दोनों देश एक ही कम्पनी की मशीन, काग़ज़, स्याही ही नहीं, नम्बरों का भी एक ही डिज़ाइन इस्तेमाल करते हैं। आगे आप स्वयं सोचें।

जनता की गाढ़ी कमाई से कार्पोरेट घरानों की मौज…

साथियो, मोदी सरकार की नोटबंदी जनता के लिए वास्तव में एक और धोखा, छल-कपट और लूट के अलावा कुछ नहीं है।

इस बिकाऊ फासीवादी प्रचार तंत्र पर कान देने की बजाय जरा गंभीरता से सोचिए कि आज बैंकों और एटीएम पर लंबी कतारों में कौन लोग खड़े हैं? क्या उसमें टाटा, बिड़ला, अंबानी, अडानी या कोई मोदी और अमित शाह या कोई बड़ा अफसर खड़ा है?

क्या देश का सारा काला धन 5,000 से 15,000 रुपये कमाने वाले मजदूर और आम जनता के पास है?

आज असली भ्रष्टाचार श्रम की लूट के अलावा सरकार द्वारा ज़मीनों और प्राकृतिक सम्पदा को औने-पौने दामों पर पूँजीपतियों को बेचकर कर रही है। साथ ही बड़ी कम्पनियों द्वारा कम या अधिक के फर्जी बिलों के माध्यम से लाभ को कम दिखाकर टैक्स चोरी की जा रही है।

इन कार्पोरेट कंपनियों द्वारा कारोबार के लिए पहले बड़े पैमाने पर कर्ज लिया जाता है, फिर सरकार और बैंको की मिलीभगत से इन कर्जों को नॉन परफ़ार्मिंग सम्पत्ति (NPA) घोषित करवाकर हड़प लिया जाता है।

पूँजीपतियों द्वारा हड़पा गया यह पैसा विदेशी बैंकों में जमा होता है और फिर वहाँ से देशी और विदेशी बाज़ारों में लगता है।
हालाँकि इस भ्रष्टाचार में काले धन का एक हिस्सा छोटे व्यापारियों और अफसरों को भी जाता है लेकिन यह कुल काले धन के अनुपात में बहुत छोटा है।
हाल ही 22 नवंबर को केंद्र के वित्त राज्यमंत्री द्वारा राज्यसभा में दी गई जानकारी के अनुसार इस वर्ष जून, 2016 तक 50 करोड़ रुपये से ज़्यादा कर्ज़ा लेने वाले 2,071 उद्योगपतियों के लगभग 3,90,000 करोड़ रुपये का कर्ज़ को नॉन परफ़ार्मिंग सम्पत्ति घोषित किया गया।

यह गंभीरता से सोचने का विषय है कि चार या पांच लाख करोड़ की राशि जमा करने के लिए करोड़ों भारतीयों को दिनों तक लाइन में लगना पड़ेगा, अकथनीय कष्ट झेलना पड़ेगा।

इस प्रकार नॉन परफ़ार्मिंग सम्पत्ति बता कर बैंको के डूबे हुए पैसे (बैड लोन) की वसूली अब आम जनता से की जा रही है।

क्या हुआ तेरा वादा…

ढाई साल पहले प्रधानमंत्री पद पर बैठने के समय मोदी ने वायदा किया था कि वे 100 दिन के अन्दर इस काले धन को वापस लायेंगे और प्रत्येक भारतीय नागरिक के खाते में 15 लाख रुपए जमा करेंगे।

इस मामले में कोई कदम उठाने के बजाय, वे काले धन के मालिकों को संरक्षण प्रदान करते रहे।

मोदी सरकार के काले धन की नौटंकी का पर्दा इसी से साफ हो जाता है जब मई 2014 में सत्ता में आने के बाद जून 2014 में ही विदेशों में भेजे जाने वाले पैसे की प्रतिव्यक्ति सीमा 75,000 डॉलर से बढ़ाकर 1,25,000 डॉलर कर दिया और जो अब 2,50,000 डॉलर है। केवल इसी से पिछले 11 महीनों में 30,000 करोड़ रुपए विदेशों में भेजा गया है।

विदेशों से काला धन वापस लाने की बात करने और भ्रष्टाचारियों को दो दिन में जेल भेजने वाली मोदी सरकार के दो साल बीत जाने के बाद भी आलम यह है कि एक व्यक्ति भी जेल नहीं भेजा गया। क्योंकि इस सूची में मोदी के चहेते अंबानी, अडानी से लेकर अमित शाह, स्मृति ईरानी और भाजपा के कई नेताओं के नाम हैं।

क्या हम इन तथाकथित देशभक्तों की असलियत को नहीं जानते जो हर दिन सेना का नाम तो लेते हैं पर सेना के ताबूत में भी इन्होंने ही घोटाला कर दिया था? क्या मध्यप्रदेश का व्यापम घोटाला, हम भूल चुके हैं?

क्या हम नहीं जानते कि विजय माल्या और ललित मोदी जैसे लोग हजारों करोड़ धन लेकर विदेश में हैं और यह इन्हीं की सरकार में हुआ।

आज देश में 99 फीसदी काला धन इसी रूप में है और हम साफ-साफ जानते हैं कि इसमें देश के नेता-मंत्रियों और कारपोरेट घरानों की ही हिस्सेदारी है।

फिर यह फैसला क्यों…

देश में मंदी और पूँजीपतियों द्वारा बैंकों के कर्जे को हड़प जाने (नॉन परफ़ार्मिंग सम्पत्ति के रूप में) और डूबे हुए कर्ज़ (बैड लोन) के बाद जनता की गाढ़ी कमाई का जो पैसा बैंकों में जमा होगा उससे पूँजीपतियों को फिर मुनाफा पीटने के लिए पैसा दिया जा सकेगा। पूँजीपतियों द्वारा तमाम बड़े लोन बैंकों से लिए गए हैं और उनको चुकाया नहीं गया है।

आज सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक 6 लाख करोड़ रुपए की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं।

पूँजीपतियों को फिर ऋण चाहिए और सरकार अब जनता के पैसे की डाकेजनी कर बैंकों को भर रही है जिससे इनको ऋण दिया जाएगा, जिसमें 1 लाख 25 हजार करोड़ रिलायंस और 1 लाख 3 हजार करोड़ वेदांता को दिये जाने हैं। इस कतार में कई और बड़े पूंजीपति भी शामिल हैं।

चूंकि नियंत्रण रेखा पर कथित ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ का पासा उल्टा पड़ गया है और कश्मीर के हालात बदतर होते जा रहे हैं, ऐसी स्थिति में मोदी सरकार ने यह नाटकीय कदम उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि राज्यों के विधानसभा चुनाव में भुनाने की नियत से उठाया है।

काले धन पर लगाम कसने के साधन के रूप में नोटबंदी के पीछे कोई आर्थिक तर्क नहीं है। इसलिए, मोदी सरकार ने ‘देशभक्ति’ की आड़ लेकर यह जन-विरोधी कदम उठाया है।

मोदी सरकार ने सहकारी बैंकों, कृषि क्रेडिट सोसाइटियों, हाउसिंग सोसाइटियों आदि में किसानों और आम जनता की मेहनत की कमाई से जमा रुपए पर रोक लगाने का काम किया है।

इन सब बातों से यह साफ पता चलता है कि कारपोरेट की अगुवाई में यह हमला काले धन के खात्मे के लिए नहीं है, बल्कि यह आम जनता के थोड़ी-बहुत बचत को बैंक प्रणाली के जरिए कारपोरेट अरबपतियों की तिजोरी में पहुंचाने की कलाबाजी है।

साथियो, हमें इन जुमलेबाजों की असलियत को समझना होगा। आज जब फरेबी, नौटंकीबाज मोदी सरकार जनता के व्यापक हिस्से को रोजगार, शिक्षा और चिकित्सा देने में असफल साबित हुई है और इसके अच्छे दिनों की सच्चाई लोगों के सामने आ गयी है तो यह 500 और 1000 के नोटों को बंद करके एक जनविरोधी कार्रवाई कर काले धन को समाप्त करने की नौटंकी कर रही है। इसका जवाब जनता की व्यापक एकजुटता से देना होगा।

अगर सरकार सचमुच देश की आम जनता के लिए काम कर रही है तो हम मांग करते हैं कि नोटबंदी का नाटक बंद करे और ये कदम उठाए -

देश और विदेश में जमा सभी काला धन जब्त करो !

सबको शिक्षा, स्वास्थ्य, घर उपलब्ध कराओ !

प्रत्येक भारतीय के खाते में 15 लाख जमा करो !

नोटबंदी, काले धन, देश की अर्थव्यवस्था और राजनीति पर और जानकारी व बातचीत के लिए

11 दिसंबर को दोपहर 3 बजे यादगारे-शाहजहानी पार्क

में आयोजित सभा में शामिल हों।

विकल्प सांस्कृतिक मंच, भोपाल

7024148240, 9981773205, 9993705564