नोटबंदी - ये वही ख़ुदा की ज़मीन है, ये वही बुतों का निज़ाम है।
DB LIVE | 2 DEC 2016 #GHUMTA_HUA_AAINA #CURRENT_AFFAIRS | Rajeev R. Srivastava| #Demonetization

नोटबंदी के विरोध में जिस तरह पूरा विपक्ष संसद में एक सुर में बोल रहा था, उससे ऐसा लगा कि ढाई साल बाद ही सही, लेकिन अब संसद में विपक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। परन्तु संसद परिसर से बाहर जब इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन की बारी आई तो विपक्ष भाजपा के बड़े नोट के सामने चिल्हर पार्टी की तरह बिखरता दिखाई दिया।
यूं देश में बड़े नोट के बदले खुले पैसे की बहुत मांग है, लेकिन राजनीति की जरूरत इसके विपरीत है। अभी विपक्षियों के सामने एकजुट होने की चुनौती है, जिसे वे पूरा नहीं कर पा रहे हैं।
सोमवार 28 नवंबर को नोटबंदी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने का फैसला विपक्षी दलों ने लिया। जिस पर चुटकी लेते हुए प्रधानमंत्री ने कुशीनगर की चुनावी रैली में कहा कि हम भ्रष्टाचार बंद करने में लगे हैं, वे भारत बंद करने में लगे हैं।

देश की जनता के बीच यह संदेश गया कि सोमवार को भारत बंद होगा, लेकिन विरोध कर रहे तमाम दलों ने अपनी-अपनी ओर से स्पषट किया कि वे भारत बंद नहीं कर रहे हैं।
कांग्रेस ने इसे जनआक्रोश दिवस बताया।
इधर वामदलों ने सप्ताह भर के प्रदर्शन की बात कही।
23 नवंबर को जारी सीपीएम की वेबसाइट पर एक प्रेस रिलीज में साफ कहा गया है कि 6 लेफ्ट दलों ने तय किया है कि एक सप्ताह का विरोध प्रदर्शन होगा। प्रेस रिलीज में भारत बंद शब्द ही नहीं है।
आम आदमी पार्टी ने भी साफ कर दिया कि उनकी तरफ से भारत बंद की अपील नहीं हुई है और ऐसा ही मायावती ने भी कहा।

ममता बनर्जी ने प.बंगाल में मोर्चा निकाला जबकि त्रिपुरा और केरल में सीपीएम ने बंद किया।
इस तरह भारत बंद के भ्रम के बीच नोटबंदी पर देश में विरोध का आयोजन कांग्रेस, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और वामदलों ने किया, जिसका मिला-जुला असर ही रहा।
कहीं लोग स्वत:स्र्फूत इन पार्टियों के साथ आए, तो कहीं इनके कार्यकर्ताओं ने मोर्चा संभाला।
दूसरी ओर, भाजपा ने भी नोटबंदी के पक्ष में जनता के प्रति आभार प्रकट करने का रास्ता अपनाया।
कहीं भाजपा समर्थित दुकानदारों ने दो घंटे अधिक दुकान खोली, तो कहीं गुलाब के फूल और मिठाइयां बांटी गईं।
विपक्ष के बिखराव के बाद भी अगर बंद का असर जगह-जगह दिखा, तो सोचिए अगर ये छह-सात दल एक साथ विरोध करते तो उसका असर कितना व्यापक होता। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा, क्योंकि सभी दलों के अपने राजनीतिक एजेंडे हैं, स्वार्थ हैं।

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा के चुनावों में सब आपस में प्रतिद्वंद्वी हैं।
सपा और बसपा साथ नहीं आ सकते।
वामदल और तृणमूल कांग्रेस एक मंच पर नहीं होते। कांग्रेस अब तक असमंजस में है कि कहां किसका साथ दे और कहां विरोध में खड़े रहे।
ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और मायावती नोटबंदी के फैसले को वापस लेने की मांग करते हैं, तो कांग्रेस को इसके क्रियान्वयन के तरीके पर आपत्ति है।
समाजवादी पार्टी इसमें जनता की तकलीफें कम करवाने के नाम पर ढील चाहती है।
अरविंद केजरीवाल इसमें बड़ा घोटाला देखते हैं।
लेकिन एक भी दल ने जनता के सामने भ्रषटाचार दूर करने का ठोस विकल्प नहीं रखा है, लिहाजा भाजपा इस पशोपेश की स्थिति का लाभ उठा रही है।
हालांकि नोटबंदी से भी भ्रष्टाचार दूर नहीं होगा, लेकिन देश को कुछ दिनों तक सम्मोहित तो कर ही लिया गया है।
विपक्ष की एकता में दरार में रही-सही कसर नीतीश कुमार और अमर सिंह जैसे राजनेताओं ने पूरी कर दी है।
नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी का फैसला अचानक लिया। संसद में अन्य दलों को भरोसे में लेना जरूरी नहीं समझा और अब तक उन्होंने इस मुद्दे पर संसद के भीतर बोलने की तकलीफ भी नहीं उठाई।

बहुमत के नाम पर यह मनमर्जी वे इसलिए कर पा रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि विपक्ष की एकता फिलहाल पानी में उठते बुलबुले की तरह है, जो जरा से छींटे शांत हो जाएंगे।
अब उन्होंने एक नया दांव चला है।
भाजपा संसदीय दल की बैठक में नरेन्द्र मोदी ने भाजपा के सभी सांसदों, विधायकों से कहा कि वे 8 नवंबर से 31 दिसंबर के बीच अपने बैंक खातों के लेन-देन का ब्यौरा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को सौंप दें।
इधर, अमित शाह ने पार्टी सांसदों से कहा है, कि वे अपने-अपने क्षेत्र के पंचायतों, नगर पालिकाओं एवं अन्य स्थानीय निकायों के कारोबारियों को नकदविहीन लेनदेन अपनाने को प्रेरित करें।
भाजपा के इस नए पैंतरे की विपक्षी आलोचना कर रहे हैं।
कांग्रेस, सपा आदि पार्टियों का कहना है कि नवंबर से क्यों, पिछले तीन महीनों का हिसाब भाजपा सांसद दें और उनके रिश्तेदारों के बैंक खातों का खुलासा भी हो।
वहीं आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि नोटबंदी के फैसले में पीएम मोदी फंस गए हैं और इस माहौल से निकलने के लिए वो रोज नई नौटंकी कर रहे हैं।

आप ने बीजेपी नेताओं के पिछले 6 महीने के बैंक खातों में लेनदेन और बीजेपी को मिलने वाले फंड की जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की है।
विपक्षी चाहे जो मांग करते रहें, भाजपा को कोई फर्क शायद ही पड़े।
जहां तक जनता की तकलीफ का सवाल है, तो वह देख रही है कि-
वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है...ये वही ख़ुदा की ज़मीन है, ये वही बुतों का निज़ाम है।
देशबन्धु समाचारपत्र समूह के समूह संपादक राजीव रंजन श्रीवास्तव का विशेष साप्ताहिक कार्यक्रम घूमता हुआ आइना