प. बंगाल सरकार के विज्ञापन में नक्सली नेता की तस्वीर !
प. बंगाल सरकार के विज्ञापन में नक्सली नेता की तस्वीर !
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कोलकाता। नक्सली नेता कानू सान्याल से प्रेम जाहिर करने के चक्कर में तृणमूल कांग्रेस सरकार संकट में फँस गई है। पश्चिम बंगाल सरकार के विज्ञापन में ही नक्सली नेता कानू सान्याल की तस्वीर लग जाने से हड़कंप मचा हुआ है।
चरम आर्थिक संकट में जीते रहने के बावजूद जीते जी कानू सान्याल ने दूसरे माओवादी या नक्सली नेताओं की तरह सरकारी मदद नहीं ली और न उन्होंने अपनी विचारधारा बदली। दिवंगत नक्सली नेता के परिजनों ने सरकारी विज्ञापन में कानू सान्याल की तस्वीर लगाने का कड़ा विरोध किया है। यह विज्ञापन लगभग सभी बड़े अखबारों में प्रकाशित हुआ है और इस मामले को यूँ ही रफा- दफा करने का कोई उपाय भी नहीं है। दरअसल इस साल अप्रैल में राज्य में शारदा समूह का चिट फंड घोटाला उजागर होने के बाद बनर्जी सरकार की जबरदस्त किरकिरी हुई थी। चिट फंड कंपनियों के फर्जीवाड़े से राज्य के लाखों निवेशकों के करोड़ों रुपये डूब गए। यही कारण है कि छोटे निवेशकों को कंपनियों की धोखाधड़ी से बचाने के लिए सरकार ने राज्य में सरकारी बचत योजना शुरू करने की घोषणा की थी। इसी बचत योजना से कानू सान्याल की तस्वीर नत्थी कर दी गयी ।
यह तस्वीर चिटफंड कंपनियों से निपटने के लिए ममता बनर्जी घोषित राज्य सरकार की अल्प बचत योजना के विज्ञापन में लगायी गयी है। पहले ही जिन बैंको में इस परियोजना के लिए पैसे जमा होने हैं, उनसे बात किये बिना उनके नाम पर विज्ञापन प्रकाशित कर देने से उन बैंकों ने विरोध दर्ज कराया है। रही- सही कसर कानू सान्याल की तस्वीर ने पूरी कर दी है।
शारदा चिटफंड घोटाले का दंश झेल चुकी राज्य सरकार ने प्रदेश के छोटे निवेशकों को बेईमान कम्पनियों से बचाने के लिए अल्प बचत योजना की घोषणा की है। इस योजना का नाम "सुरक्षित बचत स्कीम" रखा गया है। इसे पांच अक्टूबर से शुरू कर दिया गया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि दो साल पहले रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में अपने ही घर में फांसी से लटके मिले किंवदंती नक्सली नेता कानू सान्याल को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार मुश्कल में पड़ गयी है। इस विज्ञापन से मां माटी मानुष सरकार के नक्सली-माओवादी टांके की चर्चा फिर गरम हो गयी है।
गौरतलब है कि तृणमूल के ही बागी सांसद कबीर सुमन ने पहले भी परिवर्तन के पीछे माओवादी हाथ का दावा किया है। कबीर सुमन आंदोलन के दौरान परिवर्तन ब्रिगेड के अगुवा थे। यही नहीं, जंगल महल में कथित पुलिस मुठभेड़ में मारे गये माओवादी नेता किशनजी ने खुलेआम ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री बनाने का फतवा जारी किया था। जेल में बंद जनगणेर पुलिसिया अत्याचार विरोधी समिति के सर्वेसर्वा युधिष्ठिर महतो के साथ ममता बनर्जी ने एक ही मंच पर जनसभा को संबोधित भी किया था।
कबीर सुमन का तो यहाँ तक दावा है कि माओवादी नंदी ग्राम और सिंगुर आंदोलन की कमान संभाल रहे थे। यहीं नहीं, सुमन के मुताबिक माओवादी न होते तो परिवर्तन भी नहीं होता।
मां माटी मानुष की सरकार सत्ता में आने के बाद दीदी ने जंगल महल से सशस्त्र सैन्य बल हटाने की कोई पहल नहीं की। जबकि मुख्यमंत्री बनने से पहले वे इसकी लगातार मांग करती रही हैं। किशनजीकी मौत को दीदी फर्जी मुठभेड़ की फसल बताती रही हैं। लेकिन उनकी सरकार ने इस हत्याकांड की जांच का आदेश भी नहीं दिया है। अब भारत में पहली बार माओवाद प्रभावित किसी अंचल में बंगाल में ड्रोन की निगरानी जारी है। दुर्गा पूजा और कालीपूजा के समय तो कोलकाता के आसमान में भी उड़ता रहा है ड्रोन।
ममता बनर्जी की सरकार हर तरीके से माओवाद और नक्सलवाद से अपने को अलग करने में लगी हैं।लेकिन परिवर्तन राज के अफसरान की गलती से पश्चिम बंगाल सरकार के विज्ञापन में ही नक्सली नेता कानू सान्याल की तस्वीर लग गयी है। जिसे लेकर हड़कंप मच गया है। अब सवाल है कि किसकी इजाजत से यह तस्वीर सरकारी विज्ञापन में लगायी गयी है। ऐसा जानबूझकर, सुनियोजित तरीके से हुआ या किसी की गलती से।गलती हुई है तो कैसे और किससे।


