पंजाब फासिज्म के प्रतिरोध में आगे, आठ ने लौटाये पुरस्कार
पंजाब फासिज्म के प्रतिरोध में आगे, आठ ने लौटाये पुरस्कार
इस सन्नाटे का जलवा भी बहार है।
पंजाब फासिज्म के प्रतिरोध में आगे, आठ ने लौटाये पुरस्कार। बंगाल से फिलहाल कोई पुरस्कार लौटाने के मूड में नहीं हैं। बंगाल के पुरस्कृत लेखक सूबे की राजनीति में मशगूल हैं।
पलाश विश्वास
बांग्ला दैनिक एई समय ने सर्वे कराया कि फासिज्म के खिलाफ, अभूतपूर्व हिंसा के खिलाफ कितने कवि साहित्यकार पुरस्कार लौटाने को तैयार हैं।
फिलहाल कोई पुरस्कार लौटाने को तैयार नहीं हैं। ये तमाम लोग पार्टीबद्ध लाइन पर बंगाल के किसी भी मुद्दे पर बेहद मुखर हैं, लेकिन देश दुनिया की किसी को परवाह नहीं हैं। आज हमने इस सर्वे के विश्लेषण के साथ-साथ ऐतिहासिक भूलों की चर्चा भी की है और सामाजिक यथार्थ का मुकाबला न करने वाले साहित्यकारों के बांग्ला साहित्य का भी पोस्टमार्टम अपने रोजाना प्रवचन में कर दिया है।
http://www.epaper.eisamay.com/Details.aspx?id=18599&boxid=17152693
वीडियो जारी करने के बाद हमें खबर अभिषेकवा के हवाले से पढ़कर राहत मिली कि कमसकम मंगलेशदा, राजेश जोशी, सोबती जी और मृदुला जी ने हिंदी का सम्मान बनाये रखा भले ही विश्वनाथ बाबू के मुताबिक वे न लेखकीय गरिमा और अकादमी की स्वायत्तता की रक्षा कर पाये हों जो केसरिया साम्राज्य केमुक्त बाजार के हितों से जुड़ी हैं, ऐसा हमारा मानना है।
अकादमी का हाल यह है कि सेक्स कथा लिखने वाले लेखक या सामाजिक यथार्थ की जगह आध्यात्म पेलने वाले, मिथक गढ़ने वाले या भूत प्रेत का कारोबार करने वाले या हिंदुत्व का महिमामंडन करने वाले लोग पुरस्कृत हो जाते हैं तो सामाजिक यथार्थ को रचना विषय बनाने वाले तमाम लोग कभी पुरस्कार के दावेदार नहीं माने जाते और विश्वनाथ बाबू और नामवर बाबू जैसे मठाधीश आलोचक प्रायोजित प्रवचन और आलोचना से उनका कायाकल्प करते हैं।
बहरहाल उस अकादमी के खिलाफ पुरस्कृत रचनाकारों के इस विद्रोह को हम सत्ता के खिलाफ अभूतपूर्व मानते हैं और रचनाकर्म में चाहे ये लोग जैसे भी हों, सामाजिक यथार्थ और फासीवादी सत्ता से टकराने के उनके इस जिगरे को हम सलाम करते हैं। हम इंतजार कर रहे हैं उनका भी जो भीड़ बढ़ते जाने के मुताबिक कारवां में अंततः अपनी साख बचाने के लिए कभी न कभी शामिल होंगे।
गौरतलब है कि दिवंगत कवि नवारुण भट्टाचार्य ने नंदीग्राम नरसंहार के खिलाफ बंगाल सरकार के सारे पुरस्कार लौटा दिये थे और इस वक्त प्रगतिशील बंगाल के सारे साहित्यकार संस्कृतिकर्मी राज्य सरकार के सम्मान, पुरस्कार और ओहदे से सम्मानित हैं। वे कभी कोई पुरस्कार नहीं छोड़ते लेकिन अपनी जनप्रतिबद्धता मीडिया में दर्ज कराने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
शंख घोष और आदरणीय महाश्वेता देवी ने अभीतक न प्रतिक्रिया दी है और न किसी से कोई बात की है। तो नंग राजा की कथा बताने वाले कवि नीरेंद्र नाथ चक्रवर्ती अभी यह तय नहीं कर पाये हैं कि राजा नंगा हैं, तो बताना चाहिए कि नहीं बताना चाहिए। वे हैमलेट के टू बी अर नाट टू बी के मोड में हैं। जबकि नक्सल आंदोलन पर तीन उपन्यास लिखकर बांग्ला साहित्य में अमरता और अकादमी पुरस्कार जीतने वाले समरेश मजुमदार फासिज्म के खिलाफ मुखर तो हैं लेकिन वे हर्गिज पुरस्कान न लौटाने। हमने प्रवचन में पूरा किस्सा बांचा हैं, मौका लगे तो देख भी ले और सुन भी लें।
इस प्रवचन में रवींद्र को उनके पूर्वजों के गोमांस की गंध सूंघ लेने की वजह से अस्पृश्य बनाये जाने के बाद कुनबे के एक हिस्से के मुसलमान बन जाने, दूसरे हिस्से के दलित बन जाने और तीसरे हिस्से के बंगाल में आकर ब्रह्म समाजऔर नवजागरण में शामिल हो जाने के बावजूद नोबेलिया बनने से पहले अस्पृश्य बने रहने, उनकी चंडालिका, नैवद्य और रूस की चिट्ठी में अस्पृश्यता के खिलाफ मुखर रचनाधर्म और मेहनतकशों के हक में बुलंद आवाज का भी ब्योरा दिया है। देख जरूर लें। कई मिथक टूटेंगे और भ्रांतिया टैगोर के कृतित्व के बारे में टूटेंगी।
# Beef Gate! Let Me Speak Human! What is your Politics, Partner? Dare you to Stand for Humanity?
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Three eminent writers from Punjab return Sahitya Akademi awards!
Thanks Uday Prakash for his initiative!
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मीडिया के मुताबिक देश के नौ मशहूर लेखकों ने रविवार को साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिए। इन लेखकों का विरोध दादरी हिंसा और कन्नड़ लेखक एम.एम. कलबुर्गी की हत्या को लेकर है। कुल मिलाकर अब तक 15 लेखक साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा चुके हैं। पुरस्कार लौटाने वालों की लिस्ट में पहला नाम लेखक उदय प्रकाश का था। कन्नड़ लेखक अरविंद मालागट्टी ने साहित्य अकादमी की जनरल काउन्सिल से इस्तीफा दे दिया है।
रविवार को किन लेखकों ने लौटाए पुरस्कार
रविवार को कन्नड़ लेखक अरविंद मालागट्टी ने साहित्य अकादमी की जनरल काउन्सिल से इस्तीफा दे दिया। इसके अलावा, कुछ और लेखकों ने पुरस्कार लौटा दिए। इनके नाम हैं-
* मंगलेश डबराल (हिंदी कवि)
* राजेश जोशी (हिंदी कवि)
* गणेश देवी
* एन. शिवदास (कोंकणी लेखक)
* वीरभद्रप्पा (कन्नड़ लेखक)
* गुरबचन सिंह भुल्लर
* अजमेर सिंह औलख
* आत्मजीत सिंह
* वरयाम सिंह संधू
क्या कहा जोशी और डबराल ने
पुरस्कार लौटाने वाले जोशी और डबराल ने कहा, “हम साफ तौर पर लोकतंत्र, सेक्युलरिज्म और आजादी पर खतरा मंडराता देख रहे हैं। हालांकि, पहले भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरे रहे हैं, पर इस सरकार के आने के बाद यह खतरा तेजी से बढ़ता दिखाई पड़ रहा है। ”
देवी भी नाराज
गणेश देवी ने कहा, “मैं अपने उन साथियों के साथ एकजुटता दिखाना चाहता हूं, जिन्होंने अलग विचार रखने की वजह से पुरस्कार लौटाए हैं। ” कलबुर्गी की हत्या पर अकादमी की चुप्पी से देवी खासे नाराज हैं। उन्होंने कहा, “कलबुर्गी की हत्या के एक हफ्ते बाद ही साहित्य अकादमी के एक सेमिनार में शामिल हुआ। मुझे इस बात पर हैरानी है कि सेमिनार की शुरुआत में कलबुर्गी की नृशंस हत्या पर एक शब्द भी नहीं कहा गया। ” देवी ने राष्ट्रपति के हालिया भाषण का भी जिक्र किया।
पीएम की चुप्पी पर औलख के सवाल
आत्मजीत सिंह ने भी देश के हालात को दुखी करने वाला बताया है। एक और लेखक अजमेर सिंह औलख ने कहा, “अलग सोच और विचार रखने की हमारी आजादी खतरे में है। प्रधानमंत्री और अकादमी के चेयरपर्सन अब तक चुप हैं। ” वहीं, भुल्लर का कहना है कि साहित्य और संस्कृति पर सोचे-समझे तरीके से हमले हो रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले वर्षों में किसी भी सरकार ने इन मामलों पर ध्यान नहीं दिया। भुल्लर ने भी हालिया घटनाओं को सोची-समझी साजिश करार दिया है।
कोंकणी लेखक शिवदास ने कहा कि वह सनातन संस्था के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं किए जाने की वजह से दुखी हैं और पुरस्कार लौटा रहे हैं। वीरभद्रप्पा ने दादरी की घटना और कलबुर्गी की हत्या को पुरस्कार लौटाने का कारण बताया।


