पटना और वैष्णो देवी पर हमले का डर दिखाकर खुद पर उठ रहे सवालों से ध्यान हटाना चाहती है आईबीः रिहाई मंच
पटना और वैष्णो देवी पर हमले का डर दिखाकर खुद पर उठ रहे सवालों से ध्यान हटाना चाहती है आईबीः रिहाई मंच
आतंकी घटनाओं की रिपोर्टिंग पर भारतीय प्रेस परिषद निर्धारित करे गाइडलाइन्स, अमल के लिये बनाये दबावः विजय प्रताप
आज क्रमिक उपवास पर अनवर फारुकी और शेर खान बैठे
34वें दिन भी जारी रहा खालिद मुजाहिद के हत्यारों की गिरफ्तारी के लिये रिहाई मंच का अनिश्चितकालीन धरना
25 जून को महिलायें आयेंगी समर्थन में
लखनऊ, 24 जून। खालिद मुजाहिद के हत्यारे पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी, निमेष आयोग की रिपोर्ट पर तत्काल अमल करने और आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को छोड़ने की माँग के साथ चल रहा रिहाई मंच का अनिश्चितकालीन धरना आज चौतीसवें दिन भी जारी रहा। आज धरने के माध्यम से रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हुये कथित आतंकी हमले में फँसाये गये कुंडा के कौसर फारुकी के भाई अनवर फारुकी और मुरादाबाद के जंग बहादुर खान के बेटे शेर खान ने मामले की पुनर्विवेचना और सीबीआई जाँच की माँग के सन्दर्भ में मुख्यमन्त्री के नाम ज्ञापन सौंपा। आज क्रमिक उपवास पर अनवर फारुकी और शेर खान बैठे।
धरने को सम्बोधित करते हुये अनवर फारुकी और शेर खान ने कहा कि मानवाधिकार संगठनों की जाँच रिपोर्टों और मीडिया रिपोर्टों से पूरा देश जानता है कि 31 दिसंबर, 2007 की रात को रामपुर सीआरपीएफ के जवानों ने शराब के नशे में आपस में गोलीबारी की थी जिसे तत्कालीन सरकार ने अपनी इज्जत बचाने के लिये आतंकवादी घटना के बतौर प्रचारित किया था। उन्होंने कहा कि यह कहां का न्याय है कि शराबी जवानों की करतूत छिपाने के लिये निर्दोषों को जेल में डालकर बली का बकरा बनाया जाये। उन्होंने सपा सरकार पर सवाल उठाते हुये कहा कि यह कैसा समाजवाद है जहां निर्दोष जेलों में सड़ते हैं और सरकार लैपटॉप बांटने में मशगूल है।
धरने के समर्थन में दिल्ली से आये पत्रकार विजय प्रताप ने कहा कि आतंकी घटनाओं की मीडिया रिपोर्टिंग मुस्लिम विरोधी मानसिकता से ग्रस्त है और यह देश के सौहार्द के लिये खतरनाक है। उन्होंने कहा कि बटला हाउस फर्जी मुठभेड़ के बाद हिन्दी अखबारों ने जिस तरह मुस्लिम विरोधी मानसिकता के साथ रिंपोर्टिंग की, उससे देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय में हिन्दी अखबारों को लेकर नाराजगी व्याप्त हुयी। इसके परिणामस्वरूप मुसलमानों के बड़े हिस्से ने उर्दू अखबारों की तरफ रुख कर लिया क्योंकि वहां ऐसे मसलों पर खबरें ज्यादा तथ्यपरक और सरकार के नजरिए पर आँख मूँद के भरोसा करने के बजाय उस पर वाजिब सवाल उठाने का रहा। उन्होंने कहा कि बटला हाउस की घटना हिन्दी मीडिया के लिये आत्म आलोचना और मंथन का वक्त था लेकिन हिन्दी मीडिया ने उस पर मंथन नहीं की और अपनी विश्वसनियता मुसलमानों और इंसाफ पसन्द लोगों के बीच खो दी। इसलिये आज जरूरी हो जाता है कि भारतीय प्रेस परिषद आतंकी घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिये सख्त दिशा-निर्देश बनाये और उसका सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करे।
धरने के समर्थन में फैजाबाद से आये साहित्यकार अनिल सिंह ने कहा कि खालिद मुजाहिद की हत्या के बाद फैजाबाद में हुये विरोध प्रदर्शनों में शामिल मुस्लिम वकीलों को जिस तरह प्रशासन की मौजूदगी में संघ परिवार से जुड़े साम्प्रदायिक गुण्डा वकीलों ने पीटा और उनकी चौकियाँ उठाकर अदालत परिसर से बाहर फेंक दी, उससे समझा जा सकता है कि खालिद की हत्या के पीछे सरकार और साम्प्रदायिक गिरोहों का यही गठजोड़ काम कर रहा था। उन्होंने कहा कि 1992 में जब बाबरी मस्जिद को तोड़ने का साम्प्रदायिक आन्दोलन अपने उफान पर था, तब भी फैजाबाद और अयोध्या में संघ परिवार की कोशिशों के बावजूद दंगा नहीं हुआ, जबकि पूरे देश में अयोध्या के नाम पर दंगे हुये थे। लेकिन पिछले साल सपा हुकूमत में फैजाबाद में संघ गिरोह और प्रशासन की मिलीभगत से सपा सरकार ने दंगा कराकर फैजाबाद में दंगा कराने का संघ परिवार का सपना पूरा कर दिया। इससे सपा का असली चेहरा बेनकाब हो गया है।
धरने के समर्थन में फैजाबाद से आये कवि और लेखक रघुवंश मणि ने कहा कि जिस तरह खालिद के हत्यारों की गिरफ्तारी के लिये यह धरना पिछले के महीने से अधिक समय से जारी है, उससे साफ हो गया है कि मुसलमान अब मुलायम सिंह द्वारा सामाजिक न्याय के नाम पर ठगे जाने के लिये और तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि खालिद के न्याय की लड़ाई मुसलमानों समेत तमाम इंसाफ पसन्द लोगों की लड़ाई है और वह दिन दूर नहीं जब इस लड़ाई में अवाम को जीत मिलेगी और इशरत जहाँ को फर्जी मुठभेड़ में मारने वाले पुलिस अधिकारियों की तरह ही खालिद के हत्यारे आला पुलिस अधिकारी भी सलाखों के पीछे होंगे।
धरने को सम्बोधित करते हुये पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव और रिहाई मंच, इलाहाबाद के प्रभारी राघवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से आईबी पटना और वैष्णो देवी पर आतंकी हमले का माहौल बना रहा है जो सिर्फ इसलिये किया जा रहा है कि इशरत जहाँ फर्जी मुठभेड़ में आईबी की हो रही बदनामी पर से लोगों का ध्यान हटाया जा सके। उन्होंने कहा कि कई आतंकी घटनाओं में आईबी की भूमिका उजागर हो जाने पर इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि आईबी पटना, वैष्णो देवी या देश के किसी दूसरे हिस्से में विस्फोट कराकर अपनी खोई हुयी प्रतिष्ठा की पुनर्बहाली की कोशिश करे और देश में मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाये। वक्ताओं ने कहा कि लियाकत शाह, इशरत जहाँ और अब खालिद की हत्या की मामले में आईबी की संलिप्तता उजागर हो जाने के बाद जरूरी हो जाता है कि देश में हुये सभी आतंकी घटनाओं में आईबी की भूमिका को जाँच के दायरे में लाया जाये।
धरने को समर्थन देते हुये भारतीय एकता पार्टी के सैयद मोईद और मुस्लिम मजलिस के नेता जैद अहमद फारुकी ने कहा कि सपा और भाजपा मिलकर 2014 में यूपी में गुजरात जैसा माहौल बनाना चाहती हैं। इसीलिये एक तरफ सपा एक साल में 27 दंगे कराती है और खालिद जैसे निर्दोष को पुलिस अभिरक्षा में मरवा देती है। सिद्धार्थनगर, पडरौना, गोरखपुर और कुशीनगर में योगी आदित्य नाथ के साम्प्रदायिक आपराधिक संगठन हिंदू युवा वाहिनी को मुस्लिम विरोधी हिंसा करने की खुली छूट दे देती है तो वहीं भाजपा गुजरात-2002 के दंगाई अमित शाह को प्रदेश का प्रभारी बना देती है। लेकिन इन दोनों पार्टियों को समझ लेना चाहिये कि यूपी गुजरात नहीं है और ना इसे गुजरात बना देने की सपा और भाजपा की कोशिशों को अवाम पूरा होने देगी।
सोशलिस्ट फ्रंट ऑफ इंडिया के मोहम्मद आफाक और हाजी फहीम सिद्दीकी ने कहा कि यह धरना सपा सरकार की ही कब्र नहीं खोदेगा, बल्कि खालिद मुजाहिद के हत्यारों को बचाने में शामिल दलाल उलेमाओं को भी बेनकाब कर देगा।
धरने के दौरान मशहूर संस्कृतिकर्मी और वरिष्ठ पत्रकार आदियोग ने जनवादी गीतों से सरकार की जनविरोधी नीतियों पर सवाल उठाया। रिहाई मंच के प्रवक्ताओं शहनवाज आलम और राजीव यादव ने बताया कि 25 जून को धरने में मुख्य तौर पर लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति और सामाजिक कार्यकर्ता प्रो. रूपरेखा वर्मा के नेतृत्व में महिलाएं शामिल होंगी।
धरने का संचालन आजमगढ़ रिहाई मंच के प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने किया। धरने को हरेराम मिश्रा, मोहम्मद फैज, सोएब, शाहनवाज आलम, राजीव यादव, शिव दास आदि ने भी सम्बोधित किया।


