पता नहीं कौन लोग हैं जो इसे पत्रकारिता का स्‍वर्णिम काल कहते हैं। सब झूठे हैं।
ये देखिए... एक ओर पूरे मीडिया को जनरल साहब ने ‪#‎presstitute‬ में फंसा रखा है तो दूसरी ओर उनकी प्‍यारी फौज की संगीनों का दायरा कुछ नए इलाकों तक फैल गया है। कितनी मज़ेदार बात है कि 27 मार्च को गृह मंत्रालय ने समूचे अरुणाचल प्रदेश को "अशांत" क्षेत्र घोषित करते हुए सशस्‍त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम यानी ‪#‎AFSPA‬ को विस्‍तारित करने का आदेश जारी किया था लेकिन यह खबर हम तक दस दिन बाद पहुंची है (6 अप्रैल को प्रकाशित)। आखिर क्‍यों?
ज़रा याद करिए कि मार्च के आखिरी हफ्ते में यह देश कहां फंसा हुआ था। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को 28 मार्च की बैठक में आम आदमी पार्टी से निकाला गया था जिसकी चर्चा दो दिन पहले से मीडिया में जारी थी। विश्‍व कप क्रिकेट का फाइनल भी उसी दौरान था। अगले पांच दिनों तक यही मुद्दा छाया रहा। अचानक गिरिराज सिंह ने सोनिया गांधी पर बयान दे दिया और सब लोग उसमें फंस गए। फिर अचानक राष्‍ट्रीय छुट्टियां हो गईं और ईस्‍टर के दिन चुपके से जमीन लूट अध्‍यादेश ला दिया गया। यह हफ्ता शुरू हुआ ही था कि कल 25 लोगों को तेलंगाना और आंध्र में सीधे गोली ही मार दी गई। गोली को सरकार के गले में अटकने से बचाने के लिए जनरल साहब और अरनब गोस्‍वामी काम आए। कश्‍मीर में भाजपा की अर्द्धांगिनी पीडीपी के मुखिया आफ्सपा को हटाने का राग अलापते रहे जबकि यह उत्‍तर-पूर्व में फैल गया।

India extends AFSPA in Arunachal Pradesh
पता नहीं कौन लोग हैं जो इसे पत्रकारिता का स्‍वर्णिम काल कहते हैं। पता नहीं कैसे लोग हैं जो सूचना क्रांति का राग गाते हैं। सब झूठे हैं।
अभिषेक श्रीवास्तव