पत्रकारिता में कभी परफेक्शन नहीं होता, परफेक्शन मौत है
पत्रकारिता में कभी परफेक्शन नहीं होता, परफेक्शन मौत है
सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता
खुद को ही रोज पराजित करना होता है एक पत्रकार को - कमर वहीद नकवी
आगरा। “पत्रकारिता में कभी परफेक्शन नहीं होता, परफेक्शन मौत है।“ यह कहना है टीवी टुडे, आजतक, तेज, दिल्ली आजतक और हेडलाइन्स टुडे के पूर्व समाचार निदेशक कमर वहीद नकवी का।
श्री नकवी शुक्रवार को हिंदी दैनिक कल्पतरु एक्सप्रेस के चौथे वर्ष में प्रवेश के अवसर पर आयोजित मीडिया विमर्श की छठी कड़ी में बतौर विशिष्ट अतिथि श्रोताओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने अपराह्न में, अपना व्याख्यान दिया और उपस्थित पत्रकारों के प्रश्नों का उत्तर दिया।
कमर वहीद नकवी ने कल्पतरू परिवार के सदस्यों को संबोधित करते हुये कहा कि पत्रकारिता में कभी परफेक्शन नहीं होता, परफेक्शन मौत है। हमें हमेशा देखना होगा कि कल के किये में आज क्या नया सुधार किया जा सकता है। एक पत्रकार को खुद को ही रोज पराजित करना होता है। कल की लकीर कल की थी, यहाँ रोज एक नयी और पहले से बड़ी लकीर खींचनी होती है। कल की लकीर से बडी लकीर।
श्री नकवी ने कहा कि पत्रकार के लिये जरूरी नहीं कि वह किसी विषय का विशेषज्ञ हो इसके विपरीत उसे हर विषय की जानकारी होनी चाहिए। उसे जैक ऑफ ऑल ट्रेड होना चाहिए।
श्री नकवी ने कहा कि हमेशा बड़ा सोचिए। सामान्य सोचेंगे तो सामान्य बने रहेंगे। मतलब अपनी आस पास के माहौल को बेहतर बनायेंगे तो आप बेहतर होते जायेंगे। कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। मेहनत, पढ़ाई, गलतियों से सीखना होगा, कोई दूसरा नहीं सिखा देगा। हिन्दी के पत्रकारों की आलोचना करते उन्होंने कहा हिन्दी वालों की दुनिया हिन्दी तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए। उसे अंग्रेजी भाषा में क्या लिखा जा रहा है और बाकी देश दुनिया में क्या हो रहा है उसके प्रति भी सतर्क रहना चाहिए। आपके पास अपनी विश्व दृष्टि होनी चाहिए और आपको बिजनेस का अखबार भी पढ़ना चाहिए। बिजनेस का अखबार पढ़े बिना आप अच्छे पत्रकार नहीं हो सकते। एक पत्रकार को अपने एथिक्स और बिजनेस की आवश्यकता पर साथ साथ ध्यान देना होता है। अन्य संदर्भ में उन्होने यह भी कहा कि अँग्रेजी का कचरा हिंदी में अनुवाद कर हम अपनी दुनिया नहीं बदल सकते।
बड़ी तस्वीरों के प्रयोग का तर्क देते श्री नकवी ने कहा कि फोटो अपने आप में बड़ी पत्रकारिता है और एक शब्द की भी बडी हेडिंग सकती है। प्रिंट मीडिया और टीवी की पत्रकारिता पर बोलते हुये उन्होंने कहा कि गंभीर पत्रकारिता का सुख प्रिंट में ही है, पर टीवी की गंभीरता अलग है उसे प्रिंट नहीं ला सकता। ग्यारह सांसदों को घूस लेते टीवी ही दिखला सकता है प्रिंट नहीं। पर अखबार के पास जैसी ताकत होती है वह टीवी के पास नहीं होती। अखबार एक बार में आपको तीन सौ के करीब खबरें दे सकता है, पर टीवी एक बार में एक ही खबर दे सकता है। वह जँची तो ठीक है नहीं तो दर्शक रिमोट का बटन दबाने को स्वतंत्र है। इसलिये प्रिंट के पास टीवी की तरह मजबूरी नहीं होती। हर मीडिया की अपनी सीमा होती है और अपना एडवांटेज होता है। टीवी को थोड़ा तमाशा थोड़ा नयनसुख चाहिए ही इसके लिये वह अभिशप्त है।
स्टिंग ऑपरेशन पर बोलते हुये श्री नकवी ने कहा कि यह ऑपरेशन केवल जनहित में होना चाहिए। इसके अलावा वह दलाली है, ब्लैक मेलिंग है। इसे अन्तिम विकल्प के तौर पर लिया जाना चाहिए।
भाषा को लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा बताते हुये श्री नकवी ने कहा कि भाषा आम जनता की भावनाओं के साथ फिजिकली भी कनेक्टेड होनी चाहिए। इसका अच्छा तरीका यह है कि देश दुनिया से जुडी किताबों का अध्ययन करें उनके विचारों को जानें।
प्रधान संपादक जयकृष्ण सिंह राणा ने कहा कि सफलता के आकाँक्षियों को खुद के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का आदर्श लेकर चलना पड़ता है। अखबार में प्रकाशित हो रही सामग्री के बारे में लोगों की क्या राय बन रही है उससे खुद को जोड़ना होगा। सामाजिक चेतना को प्रभावित करने वाले बिंदुओं पर ध्यान देते हुये हमें अपना स्वमूल्याँकन और आत्मचिन्तन करते रहना होगा। उद्देश्य की परिपूर्ति के लिये जो निरन्तर प्रयासरत होंगे, सफलता का स्वाद वही ले पायेंगे।
श्री राणा ने कहा कि किसी भी कार्य को करने के पूर्व आत्मचिंतन की आवश्यकता होती है। उसी के आधार पर आकलन करें, फिर योजना का क्रियान्वयन करें तभी सफलता प्राप्त हो सकती है।


