सोनभद्र। स्वतंत्र सोचना गुनाह है, सरोकार खत्म कर दिए गए हैं क्योंकि पत्रकारों को कर्मचारी बना दिया गया है। नौकरी बचाते हुए पत्रकारिता के मूल्यों की रक्षा करने की लड़ाई चल पड़ी है। इस लड़ाई का दायरा बहुत बड़ा है। कसौटियां वही हैं जो पराड़कर जी के समक्ष थीं। ये बातें वरिष्ठ पत्रकार और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. अच्युतानंद मिश्र ने पूर्वांचल प्रेस क्लब द्वारा पत्रकारिता दिवस के अवसर पर आयोजित ‘दायित्व की कसौटी पर पत्रकारिता’ विषयक संगोष्ठी में कही।
उन्होंने कहा कि तकनीक के दौर में पत्रकारिता मीडिया बन गई है। पत्रकारिता के मानदंड मीडिया के मानदंड नहीं रहे। आपातकाल के बाद पत्रकारिता में विश्वसनीयता का संकट आ गया। इस दौर में न केवल पत्रकारों ने बल्कि देश के बुद्धिजीवियों ने भी समर्पण कर दिया। कहा कि इलेक्ट्रानिक मीडिया ने भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मीडिया के स्वामित्व का तरीका बदल दिया है। परिभाषाएं बदल गई हैं। उन्होंने पत्रकारिता और लोकतंत्र के लिए आए संकट की लड़ाई को बुद्धिजीवियों से लड़ने का आह्वान किया। मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान के पूर्व निदेशक डा. राममोहन पाठक ने कहा कि वर्तमान में सरोकार और साख की चुनौतियां हैं। शब्द को ब्रह्म मानने की अवधारणा समाप्त होती जा रही है। इससे साख बिगड़ती जा रही है। पत्रकारिता में आपाधापी का युग है बावजूद इसके तथ्यों की भूल को माफ नहीं किया जा सकता है। कहा कि सांस और संचार पत्रकारिता का मूल है। विकासशील समाज में विकास की पत्रकारिता सरोकार, मूल्य और दायित्व से परिपूर्ण होनी चाहिए। दबाव से पत्रकारों को निजात मिलनी चाहिए। डा. पाठक ने आम आदमी को पांचवां खंभा बताते हुए आम आदमी के लिए मिशनरी मीडिया की जरूरत बताया। इसके पूर्व ओम प्रकाश त्रिपाठी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। इस अवसर पर रामसिंगार शुक्ल की पुस्तक प्रेतयात्रा और अजय चतुर्वेदी की पुस्तक ‘अक्ल बड़ी कि भैंस’ का विधिवत लोकार्पण किया गया।

प्रस्तुति -शिव दास