नई दिल्ली, 19 सितंबर 2019. पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of Pakistan) ने 2010 में सियालकोट में दो भाइयों की हत्या में शामिल सात लोगों की सजा-ए-मौत को दस वर्ष के कारावास में बदल दिया है।

द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की एक खबर क मुताबिक 15 अगस्त 2010 को सियालकोट में एक भीड़ द्वारा मुगीस और मुनीब की मॉब लिंचिंग हुई थी। उन्हें भीड़ ने मारा, लटकाया था और अंग क्षत-विक्षत कर दिए थे। इस लिंचिंग को नौ पुलिस अधिकारियों सहित लोगों की भीड़ ने देखा, जिन्होंने स्पष्ट रूप से कोई प्रतिरोध नहीं किया था।

दोनों भाइयों की इस नृशंस हत्या के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए थे, जिससे पाकिस्तान में एक तूफान आया था और इसका पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस लिया था। एक ट्रायल कोर्ट ने बाद में सात आरोपियों को मृत्युदंड दिया था जबकि छह अन्य आरोपियों को उम्रकैद की सजा मिली थी।

बाद में लाहौर हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट फैसले को बरकरार रखा था।

पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आसिफ सईद खान खोसा की अध्यक्षता वाली तीन जजों वाली एससी बेंच - जिसमें न्यायमूर्ति मजहर आलम खान मियांखेल और न्यायमूर्ति काजी मुहम्मद अमीन अहमद शामिल हैं - ने बुधवार को इस मामले की सुनवाई एससी लाहौर रजिस्ट्री से वीडियो लिंक के जरिए की।

कार्यवाही के दौरान, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि घटनाओं के दो संस्करण थे और आरोपियों के खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज की गई थीं। उन्होंने कहा “पहली प्राथमिकी में, घायल व्यक्तियों का उल्लेख किया गया था, लेकिन दूसरी प्राथमिकी में उनका उल्लेख नहीं किया गया था। यह सू मोटो नोटिस लेने का नुकसान है। ”

उन्होंने कहा कि केवल राज्य में किसी भी अपराध को दंडित करने की शक्ति है और लोगों को कानून अपने हाथ में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

उन्होंने कहा

“यदि लोगों ने लुटेरों को पकड़ लिया था, तो उन्हें दंड देने का अधिकार नहीं था। किसी भी कीमत पर हिंसा की अनुमति नहीं दी जा सकती थी। अगर अदालत आरोपियों को रिहा करती है, तो लोगों को यातना देने का लाइसेंस मिल जाएगा।“