पानी पर पहरा !
अंबरीश कुमार
पानी के लिए आने वाले समय में विश्व युद्ध होगा। यह तो पहले से कहा जा रहा है। लेकिन देश में पानी के लिये युद्ध तो शुरू हो ही गया है। मार्च महीने के तीसरे हफ्ते में महाराष्ट्र के लातूर जिला प्रशासन ने शहर में पानी को लेकर संघर्ष रोकने के लिए जल स्रोतों के आसपास धारा 144 लागू कर दी थी। धारा 144 के तहत चार या उससे अधिक लोग एक स्थान पर एकत्रित नहीं हो सकते। यह अभूतपूर्व स्थिति है।

पानी पर लातूर शहर में स्थित छह वाटर टैंक्स और शहर को पानी की सप्लाई करने वाले तालाबों, कुओं और अन्य जल स्रोतों के आसपास अधिक लोगों के एक साथ जाने पर पाबंदी लगा दी गयी है। ज़िले के कलेक्टर पांडुरंग पोले के मुताबिक लातूर शहर और आसपास के इलाक़ों में पानी को लेकर हिंसक झड़पों की आशंका को देखते हुए ये क़दम उठाया गया था।
यह एक बानगी है। देश में पानी के बढ़ते संकट की। बुंदेलखंड में ताल पर पहरा बैठा दिया जाता है। यह सिर्फ महाराष्ट्र बुंदेलखंड की ही बात नहीं है, बल्कि दक्षिण से लेकर उत्तर तक का यह हाल है। बेंगलुरु में एक वैवाहिक आयोजन में आमंत्रित करने वाले परिवार ने पानी की किल्लत को लेकर पहले ही आगाह कर दिया था। किसी दिन ऐसा भी हो सकता है कि नहाने का पानी न मिले।
बुंदेलखंड के उरई में अभी अप्रैल के शुरू में ही बेतवा की धार टूटने लगी है। चंदेल कालीन तालाब जो हजार साल से ज्यादा समय तक पानी से लबालब रहे, वे बीते कुछ सालों में सूखने लगे है। पानी के संकट का यह हाल है कि नदियों के सौंदर्यीकरण में जुटी कुछ राज्यों की सरकार नदियों के पानी की राहजनी पर उतर आयी हैं।
अमदाबाद में साबरमती के दोनों तटों को पक्का करके शहर से गुजरने वाली इस ऐतिहासिक नदी की चकबंदी कर दी गयी। नदी का एक हिस्सा पाट कर उसे पक्का कर बड़े-बड़े बिल्डरों को बेचा जा रहा है। इस सौंदर्यीकरण से किसको कितना सुख मिलेगा, इसका पता नहीं पर एक नदी जो हजारों सालों से बह रही थी, वह खत्म हो जायेगी। अब सूखती साबरमती में नर्मदा का पानी छोड़ा जाता है, ताकि शाम को जो लोग नदी के तटबंध पर मौज मस्ती के लिये निकलें, उन्हें नदी में बहता पानी दिखे। भले वह उधार का पानी हो।

यह कौन सी नीति है जिसके चलते मनोरंजन के लिये पानी की व्यवस्था की जाती है।
नदियों का आकार तक छोटा कर दिया जाता है। दूसरी तरफ लातूर में पानी पर पहरा बैठा दिया जाता है। यह सिर्फ एक नदी का नहीं बहुत सी नदियों का हाल है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से गुजरने वाली गोमती तो बहुत पहले ही दम तोड़ चुकी थी। अब उसका पाट भी पाटकर छोटा कर दिया गया है। इस नदी में घाघरा का पानी डाला जायेगा।
हम नदियों को किस तरह खत्म कर रहे हैं। इसके ये उदाहरण हैं। साथ ही ऐसा हर राज्य में हो रहा है और हर नदी के साथ हो रहा है। पानी का संकट बढ़ रहा है और पानी के जो भी स्रोत बचे हुए हैं। उसे हम तबाह कर रहे है। दिल्ली में यमुना तट पर श्री श्री रविशंकर का जो तमाशा हुआ, वह भी दुर्भाग्यपूर्ण है। पहाड़ पर गैर हिमालयी नदियों का हाल और बुरा है। ज्यादातर नदियां सूख रही हैं और पानी का संकट समूचे पहाड़ पर मंडरा रहा है। हम नदियों के पानी में या तो जहर घोल रहे हैं या अपने तौर तरीकों से उसे सूखने पर मजबूर कर रहे हैं। हर शहर का कचरा नदी में डाला जाता है। उसके बाद नदी की सफाई के अभियान पर अरबों रुपये खर्च किये जाते हैं।

हम प्रकृति से जो छेड़छाड़ कर रहे हैं, उसका नतीजा हम सबको भुगतना पड़ेगा
कुछ साल पहले तक जो जल जंगल जमीन का सवाल उठाता था, उसे एनजीओ वाला बताकर इस मुद्दे से ही किनारा करने का प्रयास किया जाता था। लेकिन केदारनाथ हादसे के बाद कश्मीर के श्रीनगर में बाढ़ से हुई तबाही और फिर चेन्नई की बाढ़ ने अब इस मुद्दे पर सबको सोचने को मजबूर कर दिया है। हम प्रकृति से जो छेड़छाड़ कर रहे हैं, उसका नतीजा हम सबको भुगतना पड़ेगा। देश में जगह-जगह लातूर जैसी घटनायें हो सकती हैं। इसलिये पानी के सवाल पर बहुत गंभीर होने की जरूरत है। तालाब और नदियों को लेकर हमें अपना नजरिया बदलना होगा। अभी तो तालाब खत्म हो रहे हैं। इसके बाद नदियों की बारी है। कई नदियां सूख चुकी हैं। तो कई सूखने की कगार पर हैं। जिस तरह से दोहन हो रहा है, उससे भूजल भी कुछ सालों में खत्म हो सकता है। ऐसे में आने वाले समय में पानी के संकट का अंदाजा लगाया जा सकता है।
शुक्रवार