पीएम मोदी की जापान यात्रा पर कुछ दिलचस्प प्रतिक्रियाएं।
पीएम मोदी की जापान यात्रा पर कुछ दिलचस्प प्रतिक्रियाएं।
India is a democracy and so is Japan. Through this system we can progress. Rather than thinking about others let's think of ourselves: PM
— PMO India (@PMOIndia) September 2, 2014
जब काशी के विकास के लिए उधार की तकनीकि लेना था तो गुजरात माडल क्या था?
— vipin rathaur (@vipin_rathaur) August 31, 2014
क्योटो से माल और तकनीक ले आओ या ह्यूस्टन से या बर्लिन से, उधार की है सब। जिसको चीजों की कद्र हो, वह समाज भी आयत कर लो तो बेहतर होता। बनारस में पान-गुटखे की पीके थूकने और खुले में मूतने वाला समाज सब चीज़ों का हश्र वही करेगा जो आज कर रहा है। उधार के साज़ो- सामान से बना दुबई, रियाध, क़तर, कुवैत आदि में आज कौन सी सुविधा नहीं है जो न्यूयार्क में न हो? लेकिन उनका समाज तो आज भी बद्दू ही है। सभ्यता का विकास इंसान करते हैं वो भी किसी ख़ास सोच, व्यवहार और संस्कारों में आये मूलभूत बदलाव के बाद। असली सभ्यता को समाज खुद जन्मता है, और वही स्थायी भी होती है।
-शमशाद इलाही शम्स, टोरंटो कनाडा
ज़माना कितना बदल गया है। 1977 में जब वाजपाई विदेश मंत्री बने थे, तो उनको विदेश यात्रा मंत्री कहा जाता था। आज प्रधान मंत्री विदेश में महत्वपूर्ण अनुबंध संपन्न करते हैं, लेकिन उन विभागों के मंत्री साथ नहीं होते हैं। विदेश मंत्री हैं कि नहीं, पता भी नहीं चलता।
- उज्ज्वल भट्टाचार्या, कोलोन, जर्मनी
गंगा भारत में बहती है साहेब, उसकी सफाई की सलाह लेने के लिये जापान जाने की क्या जरूरत थी ? क्यों जनता का उल्लू बना रहे हो साहब ? गंगा भारत की, गंगा जल भारत का, गंगा को गंदा करने वाले भारतवासी, तो फिर गंगा की सफाई करने वाले जापानी क्यों ? जिस जापान में गंगा सरीखी कोई नदी ही न हो वह गंगा के लिये क्या खाक तकनीक बनायेगा ?
-वसीम अकरम त्यागी, युवा पत्रकार
बनारस की हर जुबान पर इस वक्त क्योटो है। उम्मीदों के दिए फिर से जल उठे हैं। घुप्प अँधेरी रात में लबे सड़क खटिया ताने हाथ में पंखा डोलाते बनारसी क्योटो की अपनी अपनी परिकल्पना को साझा करने में मशगूल हैं। बनारस को क्योटो सरीखा बनाने का यह सौदा जापान को दुर्लभ खनिज मुहैया कराने के भरोसे के साथ हुआ है जिसकी आपूर्ति जापान फिलहाल चीन से करता है। ये दुर्लभ खनिज इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं और कुछ विशेष कारों के निर्माण में काम आता है। जापान सरीखे देशों को मिट्टी के भाव दुर्लभ खनिज मुहैया कराते रहने का हमारा स्वर्णिम रिकार्ड है। बदले में कुछेक आदिवासी जनजातियों के इलाके में जबरन घुस उन्हें बेदखल ही तो करना होता है। मीडिया देवी की कृपा से नेस्तनाबूद होती यह आबादी न कभी खबर बन पाती है और न कोई नामलेवा ही होता है। हो भी क्यों भला! इण्डिया शहरों में बसता है और वह शाईन करिए रहा है। बनारसी फिलहाल इस सौदे की बारीकियों से बेखबर हैं और अच्छे दिनों के धूमिल-धूल-धुसरित होते नशे के पुनर्जीवित होने पर खुश हैं।
-सिद्धार्थ विमल, सामाजिक कार्यकर्ता
1958 :: PM of Japan ,Nobusuke Kishi (Grandfather of @AbeShinzo) with President Rajendra Prasad , Tokyo ,Japan pic.twitter.com/ip6QNAFZXN
— indianhistorypics (@IndiaHistorypic) September 2, 2014
'Instead of going to Japan PM Modi should have gone to Switzerland and brought back black money as they promised!', President @rojimjohn
— NSUI (@nsui) September 2, 2014
PM Modi's trip to Japan is a vital milestone in renewing tie-ups with world ,will surely transform continent's strategic landscape .
— Mukhtar Abbas Naqvi (@naqvimukhtar) September 2, 2014
Liu Zongyi argues, correctly, that China shouldn't be too anxious about Modi's visit to Japan. http://t.co/cj5fj8lX6E (via @ananthkrishnan)
— Dhruva Jaishankar (@d_jaishankar) September 2, 2014


