पीने को पानी नहीं और सरकार शराब के धंधेबाजों के हाथों बिकी
पीने को पानी नहीं और सरकार शराब के धंधेबाजों के हाथों बिकी
15 राज्यों के जन आंदोलनों ने ‘नशा मुक्त भारत आन्दोलन’ का किया ऐलान; समाज को नशा मुक्त बनाने की ली शपथ
नई दिल्ली। समाज में शराब और नशीली पदार्थों के सेवन ने एक अलग सामजिक कुरीतियों को जन्म दिया है। बढ़ते अपराध, महिलाओं और बच्चों का शोषण इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। भारत के अलग-अलग हिस्सों में गाँधी जी के शराब मुक्त समाज का अनुसरण करते हुए सरकार ने शराब और नशीली पदार्थों पर प्रतिबंध या नियंत्रण रखा, जो समय के साथ शराब माफियाओं और कंपनी के दलालों के दवाब के कारण हटता गया। इसी परिपेक्ष्य में महिलाओं और युवाओं के आन्दोलन ने अनेक गाँव और कस्बों में सामाजिक विषमता को नकारते हुए इसका विरोध किया और शराब के ठेके और नशे के गिरोह को उखाड़ बाहर किया। कई राज्यों में जब ऐसी मुहिम ने आन्दोलन का रूप लिया तो उसका दमन कोई और नहीं बल्कि सरकार ने खुद अपनी पुलिसिया तंत्र का दुरूपयोग करते हुए मुक़दमे संघर्षरत लोगों के ऊपर लगाये और धंधेबाजों को खुली छूट दी।
देश की राजधानी में 15 राज्यों के जन संगठन इकट्ठा हुए और अपने राज्यों और आंदोलनों की चुनौतियों को जगजाहिर किया।
समाजवादी समागम के डॉ. सुनीलम के संचालन और नर्मदा बचाओ आन्दोलन की वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की अध्यक्षता में राजस्थान, ओडिशा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, गुजरात के जन संगठन इसमें शामिल हुए। लगभग हर राज्य में चल रहे संघर्ष और अभियान में महिलाओं और युवाओं की भागीदारी देखते हुए इसको राष्ट्रीय स्वरुप देते हुए सभी ने ‘नशा मुक्त भारत आन्दोलन’ का एलान किया।
राष्ट्रीय अधिवेशन की शुरुआत शशि पेरूमल, जो तमिलनाडु में नशाबंदी अभियान चलाते हुए एक गैरकानूनी शराब के ठेके के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए पुलिस की लापरवाही के कारण शहीद हो गए थे और गुरचरण सिंह छाबरा, जो एक बार के विधायक और सामाजिक कार्यकर्ता रह चुके थे, जो राजस्थान में शराबबंदी के खिलाफ 32 दिन के लगातार आमरण अनशन के बाद सरकार की गैर जिम्मेदाराना हरकत और संवादहीनता के कारण शहीद हुए थे, को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ हुआ। इनके नेतृत्व में कई संघर्ष अपने आयाम के समीप पहुंचे और लोगों की आवाज बुलंद हुई।
सरकार के ‘अच्छे दिन’ और ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात को धता बताते हुए देश के जन संगठनों ने शराब और नशे से हो रही मौतों का खुलासा किया और सरकार को चुनौती देते हुए उनके खजाने को होने वाले नुकसान वाले तर्क को लोगों के साथ एक मजाक बताया। आज जहाँ हर राज्य में 5000 से 10000 तक होने वाले आय को सरकार इतना महत्व दे रही है वहीँ लोग सम्मिलित रूप से इसका 100 गुना खर्च इसके सेवन और उसके बाद होने वाले दुष्परिणाम पर कर रहे है। महिलाएं इसका प्रत्यक्ष अपराधिक शिकार बन रही है, युवा अपने लक्ष्य से भटक कर बहुत कम उम्र में इसका सेवन शुरू कर देते हैं। वहीँ जहाँ एक ओर पूरा देश सूखे की चपेट में होता है, शराब की उपलब्धता आसानी से होती है। पहाड़ों के जन जीवन में मुहावरे अलग रूप ले रहे हैं जैसे ‘सूर्य अस्त पहाड़ मस्त’ जहाँ शराब का नामोनिशान नहीं हुआ करता था वहां सैलानियों के लिए बसाए गए बाज़ार ने ग्रामीणों का जनजीवन अस्त व्यस्त कर रखा है। अब तो गाँव शहरों से लेकर राज्यों को जोड़ने वाली राजमार्गों पर भी सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों के बावजूद धड़ल्ले से शराब बिक रही है।
इसी परिपेक्ष्य में गुजरात के बाद बिहार में पूर्ण प्रतिबन्ध लागू होने के बाद इसकी मांग और राज्यों में तेज हो रही है और लोगों ने भी इसको राजनैतिक मुद्दा बनाकर लड़ना शुरू कर दिया है। अभी हाल ही में जयललिता सरकार के वापस सत्ता में आते ही उन्होंने 500 TASMAC के सरकारी दुकानों को बंद किया जिसके लिए वहां के युवा हजारों के तादाद में संघर्षरत हैं। पंजाब में भी बिहार और तमिलनाडु का असर दिखने लगा है और वहां के नशे की हालात पर भारत डोगरा जी की किताब से लेकर उड़ता पंजाब तक आ चुकी है। लोगों ने अभी से इसके प्रशासनिक और राजनीतिक हल के लिए अपना रुख साफ़ कर दिया है।
नीतीश कुमार का मिला समर्थन, सक्रिय कार्यकर्ता की तरह जुड़ेंगे आन्दोलन से
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी केंद्रीय सरकार को आड़े हाथों लेते हुए उनसे बीजेपी शासित और समर्थित राज्य में गुजरात मॉडल की तर्ज़ से आगे बढ़कर बिहार की तरह शराबबंदी कानून और अभियान चलाने का सुझाव दे डाला। इसके साथ अप्रैल से जून तक में घटते अपराधों का खाका लोगो के समक्ष रखा, जिसमें हर तरफ भारी कमी बताई गयी। इसके साथ ही शराब के अवैध मामलों पर नियंत्रण के लिए पुलिस को दिए गए आदेश और प्रावधान की सफलता, उससे सम्बंधित मामलों के संख्या से प्रमाणित किया। इसके साथ साथ लोगों के अन्दर स्वेच्छा से नशे की आदतों को छोड़ने के लिए चलाए गए अभियान की महत्ता को बतलाते हुए इसमें महिलाओं और बच्चों को जोड़ने और उसे प्रोत्साहित करने के लिए अनेकों कार्यक्रम को राज्य स्तर से लेकर देशव्यापी करने का सुझाव दिया। बिहार में चल रहे ऐसे कई कार्यक्रम या प्रतिस्पर्धा इसका उदाहरण है।
मेधा पाटकर ने आन्दोलनरत संगठनों को एकजुट होकर इस अभियान और आन्दोलन को देशव्यापी करने का आवाहन ‘पानी चाहिए शराब नहीं’ के साथ किया। देश लगातार तीसरा वर्ष सूखे की चपेट में है और लोगों के पास पीने को पानी नहीं वहां सरकार शराब के धंधेबाजों और कंपनी के दलालों के हांथों बिक चुकी है। पीने के पानी की जगह हर 500 मीo की दूरी पर शराब की दुकानें, नहरों और नदियों से पानी लोगों को ना देकर कंपनियों को देना देश की जनता के साथ देशद्रोह जैसा बतलाया।
सम्मेलन के अंत में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए, जिसके साथ नशा मुक्त भारत आन्दोलन आगे चलेगा
- 15 राज्यों से आये जन संगठन एक साथ इस अभियान को अपने-अपने राज्य में शुरू करेंगे और वहां के चल रहे संघर्षों को एक साथ जोड़ेंगे।
- लोगों के मुद्दे और उसकी आवाज को शीर्ष स्थान देते हुए ग्राम सभा में शराबबंदी और नशामुक्ति का प्रस्ताव पारित कर उसे अमल में लायेंगे।
- कानूनी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अभी के प्रावधानों को और सशक्त बनाने और राष्ट्रीय नशा मुक्ति कानून के ड्राफ्ट के लिए वकीलों के एक समूह का गठन किया गया।
- पंचायतों, विधायकों, सांसदों और राजनीतिक पार्टियों को पत्र लिखा जाएगा शराबबंदी अभियान को लेकर उनके क्षेत्रों में बैठक बुलाने और लोगों के साथ चर्चा करने के लिए।
- इन् सभी मुद्दों को लेकर 31 जुलाई 2016 को बडवानी, मध्य प्रदेश में नर्मदा बचाओ आन्दोलन राष्ट्रीय संयोजक दल की बैठक का आयोजन करेगी।
इसके साथ कुछ राज्यस्तरीय कार्यक्रम भी तय हुए –
- 31 जुलाई को तमिलनाडु में शशि पेरूमल की पुण्यतिथि पर एक बड़ा सम्मलेन
- सितम्बर में 15 दिन की यात्रा मध्य प्रदेश के 30 जिलों में
- 2 अगस्त से 9 अगस्त मुंबई में यात्रा
- राजस्थान में शराबबंदी पर सम्मलेन जुलाई या अगस्त में
- ओडिशा में सितम्बर में राज्यस्तरीय सम्मेलन
- पंजाब में अगस्त से पूरे राज्य में नशा मुक्ति अभियान


