पुखरायां की लाशें और रेलवे के विकास के नाम पर निजीकरण की तैयारियां
पुखरायां की लाशें और रेलवे के विकास के नाम पर निजीकरण की तैयारियां
पुखरायां की लाशें और रेलवे के विकास के नाम पर निजीकरण की तैयारियां
DB LIVE | 25 NOVEMBER 2016 | GHUMTA HUA AAINA-2 | CURRENT AFFAIRS| RAJEEV RANJAN SRIVASTAVA
राजीव रंजन श्रीवास्तव
कानपुर के पास पुखरायां में हुई रेल दुर्घटना की भीषण त्रासदी ने देश को झकझोर कर रख दिया है। कहने को 150 लोगों की मौत हुई है, लेकिन दरअसल हजारों लोग जीवन से नाउम्मीद हो गए हैं।
अपनी-अपनी मंजिलों की ओर बढ़ रहे मुसाफिरों को यह अहसास भी नहीं होगा कि उनके सफर के साथ-साथ मौत भी आगे बढ़ रही थी।
मध्य प्रदेश के इंदौर से बिहार की राजधानी पटना जा रही इंदौर-पटना एक्सप्रेस ट्रेन (19321) के रविवार तड़के कानपुर के पास दुर्घटनाग्रस्त होने से 150 लोगों की मौत हो गई है, और 2 सौ से अधिक घायल हैं।
हादसा कानपुर से करीब 60 किलोमीटर दूर पुखरायां के पास अल-सुबह 3 बजे हुआ, जहां ट्रेन के करीब 14 डब्बे पटरी से उतर गए.
इनमें से 4 डिब्बे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे।
नींद में बेखबर यात्री अचानक लगे झटके से संभल नहीं पाए और डिब्बों में इस तरह दब गए कि उन्हें बाहर निकालने के लिए डिब्बों को काटना पड़ा। जो लोग इस दुर्घटना में मौत के मुंह से बचकर आए हैं, वे बताते हैं कि कैसे हर ओर खून तथा मांस के टुकड़े बिखरे थे और चीख-पुकार मची हुई थी।
किसी ने अपने मां-बाप को खोया, किसी ने बच्चे को तो किसी ने अपने जीवनसाथी को।
दुर्घटना की खबर लगते ही आसपास की रिहायशी बस्तियों से स्वयंसेवी संस्थाएं और नागरिक मदद के लिए पहुंच गए।
सरकार ने भी तत्काल आपदा राहत का कार्य शुरु किया। प्रधानमंत्री, रेल मंत्री समेत उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने मुआवजे का ऐलान किया।
रेलमंत्री ने संसद में इस दुर्घटना पर जानकारी देते हुए कहा कि मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाएगी और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। लेकिन इस सवाल का जवाब जनता को अब तक नहीं मिला है कि आखिर कब रेल यात्राएं दुर्घटनाओं से मुक्त होंगी और क्या इस व्यवस्था में बुलेट ट्रेन चलाने का फैसला उचित होगा?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में सूरजकुंड में रेल विकास शिविर को संबोधित करते हुए कहा कि उनका और रेल का बहुत पुराना नाता है। उनका बचपन रेल की पटरियों पर गुजरा है। उन्होंने इस शिविर में कहा कि देश की प्रगति के लिए जरूरी है कि रेलवे प्रगति करे। रेलवे विकसित और वित्तीय रूप से मजबूत हो, इससे भारत को फायदा होगा।
प्रधानमंत्री के चिंतन में क्या रेलयात्रा को सुरक्षित बनाने के विचार के लिए भी स्थान है?
दर्शकों को याद होगा कि अभी प्रधानमंत्री जापान में बुलेट ट्रेन की सवारी कर के आए हैं और जल्द ही मुंबई से अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने की योजना पर काम शुरु होने वाला है।
नरेन्द्र मोदी के चुनावी वादों में बुलेट ट्रेन को विशेष जगह मिली थी। जनता को यह अहसास दिलाया गया कि बुलेट ट्रेन की रफ्तार देश में होगी तो प्रगति की रफ्तार भी बढ़ेगी। लेकिन यह आधा सच है।
जब मौजूदा रेल नेटवर्क में पटरियों के रखरखाव के लिए पर्याप्त धन नहीं है तो बुलेट ट्रेन की योजना विलासिता कही जाएगी। विशेषज्ञों के मुताबिक बुलेट ट्रेन की पटरी को बिछाना महंगा काम है।
5 सौ किलोमीटर पटरी बिछाने का खर्च एक लाख करोड़ रूपए तक आता है।
मुंबई और अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने की योजना बनी है। जबकि दोनों शहरों के बीच महज 524 किमी का फासला है। जिसे पूरा करने के लिए दर्जनों ट्रेनें हैं, छह लेन वाला राजमार्ग है और रोज की लगभग 10 उड़ानें हैं।
यातायात की इस सुगम व्यवस्था के बाद बुलेट ट्रेन की महंगी परियोजना किसलिए और किसके लिए है, यह विचारणीय है।
एक ओर हजारों किलोमीटर की रेल पटरियां रखरखाव के खर्च के लिए तरस रही हैं और दूसरी ओर बुलेट ट्रेन का अनावश्यक खर्च. क्या इसे सबका विकास कहा जा सकता है।
रेल हादसों के बदनाम इतिहास में अब पुखरायां का नाम भी जुड़ गया है।
कई सालों तक रेल मंत्रालय दुर्घटनाओं के पीछे तकनीकी कारणों को जिम्मेदार बताता रहा। अब तकनीकी का इतना विकास होने के बावजूद यात्राएं सुरक्षित क्यों नहीं हो रही हैं, इसका जवाब मंत्रालय शायद ही दे।
रेलवे के विकास के नाम पर निजीकरण की तैयारियां चल रही हैं।
रेल बजट को आम बजट में मिला दिया गया है। स्टेशनों के सौंदर्यीकरण की योजनाएं बन रही हैं। ट्विटर के माध्यम से यात्रियों की मदद का प्रचार भी हो रहा है। हाईस्पीड ट्रेनें चलाने की तैयारी हो रही है। लेकिन रेलवे की अधोसंरचना और सुरक्षा के लिए जो कार्य होने चाहिए, उस काम में हाई स्पीड नदारद है।
भारत में रोजाना दो करोड़ लोग यात्रा के लिए रेलवे के भरोसे हैं। इनके भरोसे को बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन क्या सरकार इस ज़िम्मेदारी को ठीक से निभा रही है?
इस सफऱ में नींद ऐसी खो गई..हम न सोए.. रात थक कर सो गई
हाए इस परछाइयों के शहर में..दिल सी इक जिंदा हक़ीक़त खो गई
(देशबन्धु समाचारपत्र समूह के समूह संपादक राजीव रंजन श्रीवास्तव का विशेष साप्ताहिक कार्यक्रम घूमता हुआ आइना)
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