Placement agencies are milch cows for the police,

देश के पिछड़े इलाकों से भूमिहीन, बेरोजगार और गरीबी की मार से जूझ रहे परिवार की लड़कियों को बहला-फुसलाकर तथा अच्छी नौकरी और तनख्वाह का झांसा देकर दलालों द्वारा बडे शहरों में प्लेसमेंट एजेन्सियों के लिए ले आने का सिलसिला इसलिए लगातार तेज होता जा रहा है कि अब घर में 24 घंटे की नौकरानी (24 hour maid) रखना स्टेटस सिम्बल बन गया है तथा महिलाओं की दफ्तरों में बढ़ती भागीदारी के कारण ऐसी घरेलू नौकरानियों की मांग (Domestic maids demand) लगातार तेज होती जा रही है। ऐसे में एक नाबालिग या कम उम्र की लड>की मिल जाए तो कहना ही क्या है?

प्लेसमेंट एजेन्सियों के लिए यह धन्धा लाखों रुपये महीनों की कमाई और अय्याशी का भी है।

दलालों की मार्फत प्रति लड़की 5-7 हजार रूपये देकर वे हर साल 100-50 लड़कियाँ तो इकठ्ठा कर ही लेते हैं। आमतौर पर ये प्लेसमेंट एजेन्सियां घरेलू नौकरानी काम पर लगाने वाले मालिकों से एक साल का करार करते हैं तथा पूरी मजदूरी की आधी रकम एडवांस में ले लेते हैं तथा मजदूरी की बाकी रकम हर माह मालिकों से वसूलते हैं। ऐसी लड़कियों को लाने वाला एजेन्ट उनके माँ-बाप को प्लेसमेंट एजेन्सी का झूठा पता और मोबाइल नम्बर दे आता है जिस पर माँ-बाप का सम्पर्क हो ही नहीं पाता। ढूंढते हुए उसके माँ-बाप या कोई रिश्तेदार कभी किसी बड़े शहर में आ भी गये तो उन्हें उस प्लेसमेंट एजेन्सी को ढूंढ पाना असम्भव होता है इसलिए भी कि अधिकांश प्लेसमेंट एजेन्सियों का कारोबार अब मोबाइल फोन से ही चलता है। वे मोबाइल फोन से ही अपने अज्ञात आफिस में लड़की को दिखाने और सौदा तय करने के लिए ग्राहक को बुलाते हैं। ग्राहक भी उन्हीं की तरह इस काम में पूरी गोपनीयता और सतर्कता बरतते हैं।

ऐसे में न्याय पाने के लिए भी माँ-बाप अथवा उनके सहायक को पुलिस का दरवाजा खटखटाने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता।

सारे पुलिस थाने जहां इस प्रकार की प्लेसमेंट एजेन्सियां उनसे उपकृत रहती हैं वहीं लाखों रुपये हर माह बिना किसी मेहनत के कमाने वाले कुछ लोगों के लिए पुलिस और छुटभईया नेताओं को मुठ्ठी में रखना उनके लिए बड़ी बात नहीं होती। दिल्ली के पुलिस आयुक्त ने इन प्लेसमेंट एजेन्सियों का घर घर जाकर जांच करने के आदेश भी अपने मातहतों को दिये लेकिन उनके आदेश को उनके मातहतो ये पैसे कें लोभ में कोई महत्व नही दिया। उसके पहले भी कई बार घरेलू नौकर और नौकरानियों के पहचान के आदेश (Identification orders of domestic help and maids) विभाग की ओर से जारी हुए पर नतीजा वांछित नही रहा। अनेको मामलो में तो बिना जांच पडताल के शिनाख्त कर दिये गये।

इन सबके चलते प्लेसमेंट एजेन्सियों की हिम्मत लगातार बढ़ती गई। घरेलू नौकरानियों की मजदूरी हड़प जाने के साथ ही कहीं प्लेसमेंट एजेन्सियों के मालिकों द्वारा तो कहीं उनसे काम कराने वाले मालिकों द्वारा उनके साथ होने वाले बलात्कार की घटनाएं बढ़ती चली गई। इस सम्बन्ध में दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को 24 अक्टूबर 2010 आवश्यक दिशा-निर्देश बनाने के आदेश जारी किये लेकिन 6 माह से अधिक बीत जाने के बाद भी स्थिति जहां की तहां है।

इन प्लेसमेंट एजेन्सियों की भूमिका मात्र लेवर सप्लाई करने वाले ठेकेदार की होती है जो बहला-फुसलाकर बेसहारा और गरीबी से जूझ रही लड़कियों की गरीबी का फायदा उठाकर उड़ीसा, आसाम, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड आदि जैसे पिछडे़ इलाकों से बडे़ शहरों में लाते हैं और कहीं काम पर लगा देते हैं। उन्हें न केवल उनके माँ-बाप से बल्कि समाज के निगाहों से ओझल रखकर उन्हें गुलामों की तरह रखते है। उनकी मजदूरी नहीं देते, उनके माँ-बाप से मिलने नहीं देते। इस तरह न केवल प्लेसमेंट ऐजेन्सी वाले बल्कि उनको काम पर लगाने वाले मालिक भी इस प्रकार के हर अपराधिक कार्य में बराबर के भागीदार होते हैं। लेकिन चूंकि ऐसी लड़कियों को काम पर लगाने वाले लोग प्रायः प्रभावशाली और पहुंच वाले होते हैं इसलिए पुलिस वाले उन पर आंच नही आने देते तथा मजबूरी में प्लेसमेंट एजेन्सी वालों पर ही मुकदमा दर्ज कर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश करते हैं और सुलह-सपाटा कराकर मामलों को निपटा देते हैं।

इनमें से अधिकांश मामले उनकी बकाया मजदूरी के होते ही हैं बलात्कार की घटनाएं भी प्रायः होती रहती है जिन्हें लोक-लाज के डर से वे बताती नहीं। जो आपके सामने आते भी है, वे भी अधिकांशतः रफा-दफा ही हो जाते है। चूंकि उन्हें काम पर लगाने वाले मालिक रसूक और पैसे वाले होते हैं, इसलिए पुलिस वाले उनपर आंच नही आने देते जबकि लड़कियों को अदृश्य गुलाम की तरह अपने घरों में रखकर बंधुआ मजदूर की तरह काम लेने, उनकी मजदूरी रोक रखने तथा उन्हें उनके घर वालों से न मिलने देना यहां तक कि फोन पर भी बात न कराने के लिए साथ ही वे किशोर न्याय अधिनियम, बंधुआ मजदूरी अधिनियम, पेमेन्ट आफ वेजेस एक्ट (Juvenile Justice Act, Bonded Wages Act, Payment of Wages Act) तथा भारतीय दण्ड संहिता की विभिन्न धाराओं का उल्लंघन करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

कामरेड रमाशंकर चौरसिया

(कामरेड रमाशंकर चौरसिया बचपन बचाओ आन्दोलन के चेयर पर्सन हैं.वह वामपंथी आन्दोलन और मजदूर आन्दोलन से पिछले ३० वर्षो से सक्रिय तौर पर जुड़े रहे हैं.)