पृथ्कतावाद को बढ़ावा देता मुंबई का ठाकरे घराना
पृथ्कतावाद को बढ़ावा देता मुंबई का ठाकरे घराना
निर्मल रानी
मुंबई महानगरी की सीमाओं तक प्राय: अपनी राजनीति को सीमित रखने वाले शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे तथा उनके भतीजे एवं महाराष्ट्र नव निर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे आए दिन कुंए के मेंढकों की भांति कुछ न कुछ ऐसे राग अलापते रहते हैं जिनसे साफतौर से अलगाववाद व नफरत के सुर बुलंद होते हैं । बावजूद इसके कि इसी ठाकरे परिवार के पूर्वज स्वयं मध्य प्रदेश से चलकर रोज़ी-रोटी की तलाश में मुंबई पहुंचे थे। परंतु सीधे-सादे व शरीफ मराठियों के मध्य अपनी तीव्र बुद्धि व चतुराई के बल पर इस परिवार ने विशेषकर बाल ठाकरे तथा उन्हीं की छत्रछाया में राजनीति का क-ख-ग सीखने वाले भतीजे राज ठाकरे ने स्वयं को इस प्रकार प्रस्तुत किया कि छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद यही परिवार स्वयंभू रूप से मराठों का सबसे बड़ा हितैषी व शुभचिंतक बन बैठा। फिलहाल हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनतंत्र में देश का कोई भी व्यक्ति कहीं भी जाकर रह सकता है,बस सकता है तथा अपनी रोज़ी-रोटी कमाने की गरज़ से देश के किसी भी राज्य में अपना कारोबार चला सकता है अथवा नौकरी कर सकता है। इसलिए ठाकरे परिवार के मुंबई आगमन अथवा मराठों के एक वर्ग को उनके द्वारा दिए जाने वाले नेतृत्व को लेकर किसी को आखिर क्या आपत्ति हो सकती है।
परंतु मराठा क्षत्रप बनने के बाद भी इस ठाकरे घराने को पूर्ण राजनैतिक संतोष संभवत: प्राप्त नहीं हो पा रहा है। बाल ठाकरे एक ओर जहां अपने पुत्र उद्धव ठाकरे के हाथों में अपनी राजनैतिक विरासत हस्तांतरित करने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं वहीं ठाकरे परिवार के लिए 'विभीषण बन चुके राज ठाकरे किसी तरह अपने चाचा बाल ठाकरे व चचेरे भाई उद्धव दोनों को ही नीचा दिखाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। गत् 5 वर्षों में राज ठाकरे ने अपनी महाराष्ट्र नव निर्माण सेना नामक पार्टी खड़ी कर निश्चित रूप से शिव सेना को नुकसान पहुचाने का ज़ोरदार प्रयास किया है। और अपने इन प्रयासों में उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली है। परंतु इन दोनों चाचा भतीजे की परस्पर राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता का खामियाज़ा मुंबई में बसने वाले $गैर मराठी लोगों को भुगतना पड़ रहा है। कभी चाचा बाल ठाकरे की शिवसेना $गैर मराठियों के विरूद्धज़हर उगल कर स्थानीय मुंबईवासियों के मध्य अपने नंबर बनाना चाहती है तो कभी राज ठाकरे अपने चाचा को ओवर टेक करने की गरज़ से गैर मराठियों पर चौतरफा हमले करवाने जैसे अमानवीय व घृणित अपराध करने से भी बाज़ नहीं आते।
गैर मराठियों विशेषकर उत्तर भारतीयों के विरूद्ध ठाकरे घराने के नेताओं द्वारा अनाप-शनाप बोलना हालांकि कोई नई बात नहीं है। परंतु पिछले दिनों अर्थात गत 13 जुलाई को महानगरी मुंबई में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के बाद जिस प्रकार का वक्तव्य राज ठाकरे द्वारा दिया गया उससे एक बार फिर यह बात साफतौर पर दिखाई देने लगी है कि राज ठाकरे देश को क्षेत्र के नाम पर विभाजित करने की अपनी नापाक कोशिश से बाज़ नहीं आ रहे हैं। भारत सरकार तथा देश के अमनपसंद लोग, देश के बुद्धिजीवी,अधिकारी,नेता व अभिनेता, लेखक तथा पत्रकार ऐसे संवेदनशील समय में देश को एकजुट रखने के प्रयास कर रहें हैं, जबकि देश के समक्ष आतंकवादियों द्वारा किए गए सिलसिलेवार बम धमाकों तथा उनमें मारे गए 26 व्यक्तियों की मौत के बाद के हालात से निपटने जैसी गंभीर चुनौती है। ऐसे में राज ठाकरे का इन बम धमाकों के लिए उत्तर भारतीयों को जिम्मेदार ठहराना निश्चित रूप से देश की एकता व अखंडता पर बहुत बड़ा प्रहार है। राज ठाकरे के बयान से तो ऐसा प्रतीत होता है कि गोया वे भी वही भाषा बोल रहे हैं जो आतंकवादी चाह रहे हैं। यानी आतंकी शक्तियां हमारे देश में संप्रदाय,वर्ग तथा क्षेत्र एवं भाषा आदि के नाम पर भारतवर्ष जैसे विश्व के सबसे महान लोकतांत्रिक देश को टुकड़े-टुकड़े करना चाह रही हैं और इस प्रकार के वैमनस्यपूर्ण वक्तव्य देकर राज ठाकरे आतंकवादियों के सहयोगी की भूमिका निभा रहे हैं।
गौरतलब है कि 13 जुलाई के मुंबई श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों के बाद मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने कुछ इस प्रकार के ज़हरीले विचार व्यक्त किए थे कि-'मुंबई श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों के लिए मुंबई में दूसरे राज्यों से आने वाली भीड़ जिम्मेदार है। जब तक अन्य राज्यों से आने वाली इस भीड़ को रोका नहीं जाता तब तक मुंबई में होने वाले बम धमाकों को रोक पाना बहुत मुश्किल है। चाहे पुलिसकर्मियों की सं या कितनी ही बढ़ा दी जाए। मुंबई में रोज़ाना रेलों से भर-भर कर लोग आ रहे हैं। यदि बम धमाकों को रोकना है तो एक बार मुंबई के सभी संवेदनशील इलाकों में सेना द्वारा तलाशी अभियान चलाया जाना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि आ$िखर मुंबई की झुग्गी-झोंपडिय़ों में रह कौन रहा है? ठाकरे ने ऐसे वक्त में यह वक्तव्य दिया है जबकि हमारी सुरक्षा एजेंसियां तथा गुप्तचर एजेंसियां मुंबई धमाकों के सिलसिले में अपनी जांच-पड़ताल को बड़ी ही गंभीरता व संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ा रही हैं। तथा उन्हें इसमें का$फी हद तक सफलता भी मिल रही है। परंतु राज ठाकरे का चिरपरिचित पृथ्कतावादी राग एक बार फिर राज ठाकरे की राजनैतिक दिशा व दशा व उसकी अलगाववादी मानसिकता की गवाही दे रहा है।
कभी स्वयं को राष्ट्रवादी बताने वाला तो कभी हिंदुत्ववादी राजनीति का ध्वजावाहक कहने वाला, कभी महाराष्ट्र राज्य के सर्वांगीण विकास का ढोंग करने वाला तो कभी मुंबई महानगर की सीमाओं तक ही अपनी राजनीति को सीमित करने वाला यानी घोर अवसरवादी यह ठाकरे परिवार वैसे तो स्वयं ही अपनी राजनैतिक दिशा व दशा को लेकर असमंजस में है कि आखिर चाचा-भतीजे के आमने-सामने आ जाने के बाद अब आखिर यह परिवार अपनी राजनीति का मुख्य केंद्र किस मुद्दे को बनाए? स्वयं मुंबई में अप्रवासी जीवन गुज़ारने वाला यह परिवार अब अप्रवासी मेहनतकश लोगों के पीछे हाथ धोकर सिर्फ और सिर्फ इसलिए पड़ गया है ताकि ठाकरे घराना किसी प्रकार से मुंबईवासियों को यह समझा सके कि मुंबई का शुभचिंतक इनसे बड़ा दूसरा कोई नहीं है। परंतु शायद कुएं के मेंढक सरीखी राजनीति करने वाले ठाकरे बंधु यह भूल जाते हैं कि भारतीय संविधान के अंतर्गत् देश का कोई भी नागरिक देश के किसी भी राज्य अथवा क्षेत्र में जाकर रह सकता है तथा अपनी रोज़ी-रोटी कमा सकता है। प्रत्येक भारतीय नागरिक का चाहे वह किसी भी धर्म-जाति व प्रदेश से संबंधित क्यों न हो, यह मौलिक अधिकार है। परंतु ठाकरे घराने की भाषा ठीक इस संवैधानिक व्यवस्था के विपरीत तथा अलगाववाद के पक्ष में होती है।
राज ठाकरे ने मुंबई आने वाले शेष भारत के नागरिकों के सिर पर मुंबई धमाकों का ठीकरा फोडऩे का जो घिनौना प्रयास किया है वह न केवल देश की संवैधानिक व्यवस्था, एकता व अखंडता पर गहरा प्रहार है बल्कि इससे यह भी ज़ाहिर हो रहा है कि उनका व आतंकवादियों का मकसद भी एक ही है। यानी देश को तोडऩा व देश में नफरत फैलाना। प्रश्र यह है कि क्या ठाकरे इसी प्रकार की ज़हरीली भाषा का इस्तेमाल बेरोक-टोक यूं ही करते रहेंगे या फिर उनके इस प्रकार के वैमनस्यपूर्ण भाषणों व विचारों का सिलसिला कभी खत्म भी होगा? कितने दु:ख का विषय है कि एक ओर तो अमानवीय व राक्षसीय प्रवृति के आतंकवादियों के घृणित करनामों के परिणामस्वरूप हमारे ही देश के बेगुनाह लोग जिनमें सभी राज्यों व धर्मों के लोग शामिल होते हैं,अपनी जानों से हाथ धो बैठते हैं। दूसरी ओर हमारे जांबाज़ सुरक्षाबल तथा गुप्तचर एजेंसियां जिनमें सभी राज्यों व धर्मों के लोग शामिल होते हैं वे इनका पता लगाने तथा इनको नियंत्रित करने में जुटी होती हैं। यहां तक कि 26/11 के हमले में भी जिस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि गोया 24 घंटे के लिए आतंकवादियों ने पूरी मुंबई को बंधक ही बना लिया हो। उस समय भी ठाकरे रूपी मुंबई के कथित शुभचिंतक अपने ड्राईंगरूम में बैठकर अपनी जान की $खैर मना रहे थे तथा टी वी पर कमांडो कार्रवाई के नज़ारे देख रहे थे। उस समय 'मुंबई प्रेम में अपने घरों से बाहर निकलने की इनकी हि मत तक नहीं हुई थी। तब भी मुंबई का शांतिप्रिय संयुक्त समाज सड़कों पर उतरा था व उन राष्ट्रीय सुरक्षा गार्डों की टीम का शुक्रिया अदा किया था व उन्हें बधाई दी थी जिनमें अधिकांश कमांडो उत्तर भारत के ही थे।
लिहाज़ा ठाकरे परिवार को मुंबई की ठेकेदारी की बात अपने दिमाग से बिल्कुल निकाल देनी चाहिए। मुंबई के विकास तथा इसके निर्माण में ठाकरे परिवार के योगदान से बड़ा योगदान उन गैर मराठी लोगों का है जो मुंबई के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहते हैं। इतना ही नहीं बल्कि मुंबई के उद्योगों द्वारा उत्पादित माल भी पूरे भारतवर्ष में खऱीदा व इस्तेमाल किया जाता है यानी मुंबई को आर्थिक राजधानी कहे जाने में भी गैर मराठी लोगों का बड़ा योगदान है। इन परिस्थितियों में ठाकरे की भाषा असंवैधानिक तथा गैर कानूनी है। ऐसी आवाज़ों को तत्काल दबा देने की सख्त ज़रूरत है। अन्यथा आज की यह फुंसी कल का नासूर भी साबित हो सकती है।


