प्रतिबद्धता से बड़ा नहीं होता शोक
प्रतिबद्धता से बड़ा नहीं होता शोक
पलाश विश्वास
राबर्ट्सगंज से डा.शिवेंद्र लंबे अरसे से असुविधा का प्रकाशन करते रहे हैं। उनके साथी हैं अनवर सुहैल। दोनों लघु पत्रिका के प्रकाशन के अलावा अच्छे रचनाकार भी हैं। जिस जनपद से वे यह पत्रिका निकालते हैं, वह यूपी के सबसे पिछड़ा इलाका कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। झारखंड और छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश से घिरा यह जनपद और राज्यों की सीमाओं के आर-पार तमाम जनपदों में जनजीवन बहुत मुश्किल है और मेहनकश जनता की वहां कहीं सुनवाई भी नहीं होती। भौगोलिक परिस्थितियां सामाजिक यथार्थ की तरह ही बेहद कठिन हैं। पथरीली पठारी माटी की वह महक अरावली से लेकर दंडकारण्य में समान है। लेकिन सर्वत्र तमाम असुविधाओं के मध्य जनपद की चीखों को दर्ज करने की प्रतिबद्ध सक्रियता नजर नहीं आती।
आज सुबह की डाक से अरसे बाद कोई लघुपत्रिका समकालीन तीसरी दुनिया और समयांतर को छोड़कर हमारे डेरे तक सही सलामत पहुंची तो हमने देखा, “असुविधा” है।
छिलका उतारकर पत्रिका पर नजर डाली तो शोकस्तब्ध होकर रह गया। शिवेंद्र जी के इकलौते बेटे अंशु के अकाल प्रयाण पर यह पत्रिका जीती जागती शोक गाथा है। शोकस्तब्ध पिता के विवेकसमृद्ध प्रतिबद्ध उद्गार का सामना करना चाहें तो अव्शय यह पत्रिका पढ़ लें।
इस अंक के साथ रचनात्मक सहयोग के लिए जो पत्र नत्थी है, वह सामकालीन मुक्त बाजारी उत्सवमुखर साहित्य परिदृश्य की निर्मम चीरफाड़ है। शिवेंद्र और अनवर सुहैल के संपादन और रचनाकर्म से वास्ता हमारा शुरु से रहा है। कभी कभार वहीं हम छपते भी रहे हैं और संवाद का सिलसिला टूटा भी नहीं है। फिर भी 2000 के पहले से हमने जो कविता कहानी वगैरह की रचनात्मकता छोड़ दी और डाक मार्फत चिट्ठी पत्री का सिलसिला बंद हो गया “अमेरिका से सावधान” अधूरा छोड़ने के बाद से, तब से एक लंबा अंतराल संबंधों के बीच टंगा है।
हमने बेहिचक शिवेंद्र जी को मोबाइल पर कॉल किया तो वे धीर गंभीर स्थिरप्रज्ञ लग रहे थे और बेटे के बारे में बात करते हुए उनकी आवाज में हमने कोई कंपकंपाहट भी महसूस नहीं की।
अंशु करीब 37 साल की उम्र में लाइलाज बीमारी से चल बसे तो शोकस्तब्ध पिता के उद्गार तो निकले ही, लेकिन उसके बाद प्रतिबद्ध सक्रियता और सरोकार का जो उनका संकल्प है, वह जनपदों की विरासत है, जहां हमारे लोक और हमारी संस्कृति में सुख-दुःख को समान मानकर सर्वजन हिताय जीवन का बुनियादी लक्ष्य हुआ करता रहा है।
अंशु के बच्चे अभी छोटे हैं और शिवेंद्र जी और उनकी पत्नी की उम्र पकड़ से बाहर है तो इसकी कोई दुश्चिंता उन्हें है ही नहीं। हमारी चिंताओं को दरकिनार करते हुए वे समकालीन परिदृश्य पर पर लगातार बोलते रहे और कह दिया कि लड़ाई जारी है।
प्रतिबद्धता से बड़ा नहीं होता शोक!


