सचिन झा शेखर

डिअर कस्टमर इस घंटे का ऑफर "चाय के साथ स्टेशन मुफ़्त"। हाँ आपने सही पढ़ा साहब। भारत के रेल भवन दिल्ली में एक छोटा सा कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें भारतीय रेल के प्रभु सुरेश प्रभु ने बंसल हाथवे प्राइवेट लिमिटेड के अधिकारियों के साथ बात करने के बाद उन्हें हबीबगंज स्टेशन सौप दिया।

आख़िरकार भोपाल का हबीबगंज स्टेशन को निजी क्षेत्र के हवाले कर दिया गया,इस खबर के मायने क्या है यह बहुत से लोगों को आज समझ में नहीं आएंगे, सच कहूं तो लोगों को अब यह महसूस करा दिया गया है कि निजीकरण बहुत ही अच्छी चीज है, क्योंकि सरकार अपना कार्य ठीक प्रकार से नहीं कर पाती है, इसलिए यह सबसे आसान है कि किसी भी सर्विस सेक्टर को उठाकर निजी हाथों मे दे दिया जाये, बहुत से लोग इसके लिए सहर्ष स्वीकृति दे देंगे। लोग कहेंगे क़ि हमें विश्वस्तरीय सुविधाएं अपने रेलवे स्टेशन पर चाहिए तो यह तो होना ही चाहिए।

लेकिन जरा रुकिये भारतीय रेलवे के बारे मे कुछ मूलभूत जानकारी आपको होनी चाहिए।

यह विशाल सरकारी कंपनी जिसे हम भारतीय रेलवे कहते हैं "राज्य के अंदर एक राज्य जैसा" है। रेलवे के अपने स्कूल, अस्पताल और पुलिस बल है। इसमें कुल 13 लाख कर्मचारी काम करते हैं और इस लिहाज से यह दुनिया की सातवीं सबसे ज़्यादा रोज़गार देने वाली कंपनी है। हजारों किलोमीटर लम्बी रेलवे लाइन और करीब 8000 स्टेशनों के साथ भारतीय रेल अमेरिका, रूस एवं चीन के बाद चौथे स्थान पर है।

भारतीय रेल नेटवर्क के पास लगभग 9,000 इंजन हैं जिनमें 43 अभी भी भाप से चलने वाले हैं।

इंजनों का यह विशाल बेड़ा क़रीब पांच लाख माल ढोने वाले डिब्बों और 60,000 से अधिक यात्री कोचों को 1 लाख 15 हज़ार किलोमीटर लंबे ट्रैक पर खींचते हैं.रेलवे 12,000 से अधिक ट्रेनों का संचालन करता है, जिसमें 2 करोड़ 30 लाख यात्री रोज़ यात्रा करते हैं, यानि क़ि भारतीय रेलवे एक ऑस्ट्रेलिया' को रोज़ ढोती है।

हबीबगंज स्टेशन फिर से विकसित होने वाला पहला स्टेशन होगा। यह स्टेशन रेल मंत्रालय द्वारा आईआरएसडीसी को सौंपे गए आठ स्टेशनों में से एक है।

खास बात ये है कि बंसल ग्रुप 450 करोड़ रुपये की लागत से भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन को रिडेवलप करेगा और इसमें रेलवे स्टेशन के यात्रियों वाले हिस्से की लागत 100 करोड़ रुपये रहेगी और कमर्शियल लैंड को 350 करोड़ रुपये विकसित करेगी।।

लेकिन क्या भारत के जनता के बीच रेलवे स्टेशन की जो धारणा रही है, वो बनी रह जाएगी ??

160 वर्षों के भारतीय रेल आज भी ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं का परदेश जाने पर ,इम्तिहान देने जाने के वक़्त आश्रय स्थल होता है। यह वो जगह होती है जहाँ हर किसी के लिए जगह होती है और लोग भी अपने आप में एक अपनत्व का एहसास पाते रहे हैं, लेकिन जब भारतीय रेल का स्टेशन भी दिल्ली मेट्रो की तरह एक लाभ का उपक्रम बन जाएगा तो भारतीय संविधान के लोक कल्याणकारी शब्द की महत्ता कहाँ तक यथार्थ के कसौटी पर खड़ा उतरती दिखेगी।।

कोई भी निजी कंपनी जब पूंजी लगाती है तो बदले में उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ मुनाफ़ा कमाना रहता है।

आज जब सरकार प्लेटफॉर्म टिकट के मूल्य में 100% तक की बढ़ोतरी कर रही है, तो आप अनुमान लगा सकते हैं जब निजी कंपनी आएगी तो उसके दर में कितना इज़ाफ़ा हो सकता है???

जिस देश में दाना मांझी को अपनी पत्नी का शव पैसों के अभाव में कंधे पर उठा कर ले जाना पर सकता है, उस देश में मुसाफिरखाना और रेलवे के प्लेटफॉर्म भी जब बिक जाएंगे तो उन गरीबो के लिए कौन सी सार्वजानिक जगह बच जाएगी जहाँ वो कुछ समय बिता सकेंगे ?

मस्जिद में धोती वाले नहीं रह सकते मंदिर में टोपी वाले नहीं जा सकते, ऐसे में एक रेलवे स्टेशन ही तो अनेकता में एकता दिखता है।

दीये का उजाला प्रलय तक हो सकता है। निजीकरण मदमस्त हाथी की तरह होता है, इसके ऊपर जिस दिन अंकुश ख़त्म होता जाएगा वो विनाश का कारक बनेगा,निजीकरण के सीमाओं पर एक बड़ी बहस होनी चाहिए।।