प्रिया पिल्लई प्रकरण - कोर्ट कल तक के लिये स्थगित किया गया
यह सेंसरशिप नहीं, पूर्व सेंसरशिप है
नई दिल्ली। 18 फरवरी। क्या केंद्र सरकार ने अघोषित सेंसरशिप लागू कर दी है? ग्रीनपीस कार्यकर्ता प्रिया पिल्लई प्रकरण देखने पर ऐसा ही लगता है। सरकार ने पेशकश की थी कि प्रिया यात्रा करने के लिये स्वतंत्र हैं, यदि वो एक शपथ पत्र प्रस्तुत करें कि वह विदेशों में इस तरह की प्रस्तुतियां नहीं करेगी।
ग्रीनपीस कार्यकर्ता प्रिया पिल्लई ने आज सरकार के 'प्रतिबंध' प्रस्ताव को नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर एक कलंक करार दिया।
प्रिया ने कहा, “मैं ऐसे किसी भी प्रतिबंध प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करुंगी। मैं अपने मौलिक अधिकारों के तहत काम कर रही थी और यह मेरे ही नहीं बल्कि देश के हर नागरिक के अधिकार के बारे में है”।
दिल्ली हाईकोर्ट में आज सुनवाई के दौरान उपस्थित प्रिया ने कहा, “यदि मैं इस प्रस्ताव को स्वीकार करती हूं कि सरकार मुझे बतायेगी कि मैं क्या बोल सकती हूं और क्या नहीं बोल सकती तो इसका मतलब होगा अभिव्यक्ति की आजादी को खो देना जो मुझे एक भारतीय नागरिक के बतौर मिला है। इसलिए मैं इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सकती”।
प्रिया ने आगे कहा, “मेरे खिलाफ सरकार का तथाकथित केस खतरनाक है। इसमें कहा गया है कि ब्रिटिश पंजीकृत कंपनी द्वारा सिंगरौली में किये जा रहे गतिविधियों को ब्रिटिश सासंदों को बताना राष्ट्रीय हित के खिलाफ है। महान, सिंगरौली, मध्यप्रदेश में भारतीय कानूनों का उल्लंघन हो रहा है। ऐसे में एक कोयला खदान को फायदा पहुंचाने के लिये हजारों लोगों के हित को खतरे में डालने के खिलाफ जागरुकता पैदा करना राष्ट्रीय हित के खिलाफ कैसे हो गया? मुझे भारतीय होने पर गर्व है और मैं चुप नहीं रह सकती।”
कोर्ट में प्रिया पिल्लई की वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा, “मैं सरकार के हित को राष्ट्र के हितों के साथ मिलाने को लेकर चकित हूं। मैं मानती हूं कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बुनियादी अधिकार से इंकार करना है। मैं अपने मुवक्किल को एएसजी के उस सुझाव से सहमत होने की सलाह नहीं दूंगी जिसमें उसे एक शपथ पत्र देने को कहा गया है कि वो विदेश जाकर अपनी बात नहीं रखेगी तभी उसे यात्रा करने की स्वतंत्रता दी जाएगी। यह सेंसरशिप नहीं, पूर्व सेंसरशिप है।