फर्जी मुकदमों के खिलाफ जिला एवं पुलिस प्रशासन पर हल्ला बोल एवं जेल भरो आंदोलन !!!
फर्जी मुकदमों के खिलाफ जिला एवं पुलिस प्रशासन पर हल्ला बोल एवं जेल भरो आंदोलन !!!
स्वास्थ्य और शिक्षा का अधिकार मानवाधिकार है आजीविका का अधिकार मानवाधिकार है
‘‘मुन्सिफ का सच सुनहरी स्याही में छुप गया/ वैसे वो जानता है ख़तावार कौन है’’
10 दिसम्बर 2013 मानवाधिकार दिवस के उपलक्ष्य में वनाधिकार कानून 2006 लागू करो,
संविधान की व संसद की गरिमा की सुरक्षा करो,
ऐतिहासिक अन्याय को समाप्त करो व सम्मानजनक जीने के अधिकार को सुनिश्चित करो
जनसंगठन का ऐलान सरकार फर्जी मुकदमों को बिना किसी शर्त बिना किसी जमानत के वापस ले
फर्जी मुकदमें लगाना बंद करो!!
वनाश्रित समुदायों के ऊपर लगे 10000 से अधिक फर्जी मुकदमे वापिस करो!!
हिंडालको अस्पताल द्वारा मिथिलेश गोण के हत्यारे डॉक्टरों पर मुकदमा दर्ज करो!!
बलात्कारी कलवंत अग्रवाल को गिरफ्तार करो!!
ओबरा खनन हादसे के आरोपियों को गिरफ्तार करो!!
साथियो! मानवाधिकार दिवस हमारे देश के संविधान में प्रदत्त सम्मानजनक जीने के अधिकारों को सुनिश्चित करता है, इसलिए हमारे ऊपर हो रहे अन्यायों के खिलाफ हमने अपने आंदोलन का दिन भी 10 दिसम्बर को ही चुना है। गौरतलब है कि सरकार, न्यायालय, प्रशासन ने कैमूर क्षेत्र में हज़ारों वर्षो से रह रहे आदिवासी, दलित एवं अन्य ग़रीब वर्ग को ही इस जनपद में सबसे बड़े आपराधिक प्रवृत्ति के तत्व करार दिया है। अगर आंकड़े इकट्ठे किए जाएं तो सबसे ज्यादा मुकदमे जिनकी संख्या दस हज़ार से भी ऊपर है, वह वनों में रहने वाले आदिवासी एवं दलितों पर हैं। जिन पर वन विभाग एवं पुलिस विभाग ने दो-दो कानूनों के तहत एक साथ गैरकानूनी तरीके से फर्जी मुकदमे किए हैं। अगर आदिवासी, दलित व ग़रीब वर्ग की महिलाएं ही देश के लिए खतरा हैं, तो उन्हें सरकार क्यों नहीं जेल में डाल देती? देश में 2006 में वनाधिकार कानून लागू ही इसलिए किया गया कि वनों में रहने वाले लोगों के साथ ब्रिटिश काल से जो ऐतिहासिक अन्याय किया गया है, उसे खत्म किया जाए... और यह अन्याय मुख्य रूप से वनविभाग, पुलिस विभाग सांमती तत्वों व साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा किया गया है। इस कानून के आने के बाद यह सारे फर्जी मुकदमे वापिस हो जाने चाहिए थे। लेकिन उल्टे 2006 के बाद तो इन फर्जी मुकदमों को लगाने की बाढ़ सी आ गई। दुद्धी, राबर्टसगंज एवं घोरावल तहसील में ऐसी अनगिनत फाईलें हैं, जिसमें एक ही फाईल में 200/ 400/ 600 की संख्या तक लोग शामिल हैं व जिसमें 80 प्रतिशत से ऊपर महिलाओं के नाम शामिल कर उनका आपराधिक इतिहास बनाया जा रहा है। यही नहीं हमारे यूनियन द्वारा 28 सितम्बर 2013 को रेणूकूट में हिंडालको कम्पनी के हत्यारे डॉक्टरों के खिलाफ शांतिपूवर्क जुलूस में प्रशासन द्वारा संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों व 200 लोगों पर लोकसेवक पर हमला करने का झूठा केस दर्ज किया गया व कई धाराएँ लगाई गई हैं। इस लिए मानवाधिकार दिवस के उपलक्ष्य में हम यह माँग करते हैं कि -
1. सभी फर्जी मुकदमों को बिना किसी शर्त वापिस किया जाए।
2. वनाधिकार कानून-2006 को इसकी सही मंशा के अनुरूप लागू किया जाए। सामुदायिक अधिकारों को राजस्व रिकॉर्डो में दर्ज वनक्षेत्र को ही मान्यता दे समुदाय को उनके अधिकार सौंप दिए जाने चाहिए। इस कानून की नोडल एजेंसी समाज कल्याण विभाग नहीं बल्कि राजस्व विभाग को बनाया जाए।
3. प्रशासन द्वारा पूर्व में बनाई गई कई सही ग्राम वनाधिकार समितियों को भंग कर सांमती तत्वों को ग्राम वनाधिकार समिति में शामिल किया गया है। जहां-जहां यह त्रुटियां हुई हैं, उन्हें ठीक किया जाए। जैसे ग्राम बसौली, बहुआर राबर्ट्सगंज की पुरानी समितियों को बरकरार रखा जाए।
4. प्रशासन द्वारा वनाधिकार कानून-2006 को केवल अनुसूचित जनजातियों के लिए लागू करने का भ्रम फैलाया जा रहा है, जिससे कि इस वनक्षेत्र में आदिवासियों एवं अन्य परम्परागत वनसमुदायों में साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश की जा रही है। जबकि जनपद में अभी भी कई आदिवासी समुदाय जनजाति में घोषित ही नहीं है व यह कानून केवल अनुसूचित जनजाति के लिए नहीं बल्कि अन्य परम्परागत वनसमुदायों के लिए भी है, जोकि एक बड़ी संख्या में यहां निवास करते हैं। सभी आदिवासी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाए।
5. जनपद में वनसमुदायों एवं अन्य नागरिकों की स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए किसी भी प्रकार का पर्याप्त ढाँचा नहीं है। हिंडालको, जे0पी एवं अन्य औद्योगिक घरानों द्वारा आदिवासियों की भूमि को हथिया कर जो अस्पताल बनाये गए हैं वह केवल ग़रीब समुदायों एवं आदिवासियों के साथ भेदभाव करते हैं व उनका शोषण करते हैं। वनाधिकार कानून-2006 के अनुसार सभी स्वास्थ्य एवं शिक्षा की सुविधाओं को सुचारू रूप से चलाया जाए अन्यथा इन कम्पनियों द्वारा लूटी गई भूमियों को वापिस लेने का आंदोलन चलाया जाएगा।
6. जनपद में मलेरिया, टी0बी से निपटने के लिए व्यापक इंतजाम किए जाएं, प्रत्येक घर में मच्छरदानियों को बांटा जाए, प्रदूषण को कम किया जाए। जिले में आधुनिक सुविधाओं से लैस अस्पताल खोला जाए। कम्पनियों के निजी अस्पतालों को सरकारी अस्पतालों में बदला जाए व आदिवासी एवं ग़रीब वर्ग के लिए मुफ्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्दों को पंचायत स्तर पर खोला जाए।
7. इस जनपद में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक अच्छे स्कूलों कालेजो व, तकनीकी विद्यालयों का निर्माण किया जाए।
जब हिंडालको के मालिक पर देश की प्राकृतिक सम्पदा की चोरी के खिलाफ एफआईआर हो सकती है तो हिंडालको अस्पताल के हत्यारे डॉक्टरों पर क्यों नही?
साथियो! 14 जुलाई 2013 को आदिवासी बालक मिथिलेश गोण की हिंडालको अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही से मौत हो गई थी व उसके जीवन को बचाने के लिए जो खून चढ़ाया जाना था वह नहीं चढ़ाया गया। हमारे यूनियन ने इस कम्पनी व डॉक्टरों पर लापरवाही बरतने के लिए उच्चस्तरीय जाँच की माँग की और उस जाँच में डॉक्टरों को दोषी पाया गया। यह जाँच समिति स्वयं जिलाधिकारी ने गठित की थी, जब इस जाँच समिति के विशेषज्ञ डॉ. योगेश जैन जो कि बाल चिकित्सक एवं मलेरिया विशेषज्ञ हैं, ने अपनी रिपोर्ट में हिंडालको के डॉक्टरों को दोषी पाया तो जिलाप्रशासन ने यह कह कर इस कमेटी को खारिज कर दिया कि डॉ. योगेश जैन यूनियन के डॉक्टर हैं। इस पर एक और कमेटी बना कर डॉक्टरों को क्लीन चिट देने का काम प्रशासन द्वारा किया गया। जब इसके विरोध में 28 सितम्बर 2013 को हमारे यूनियन ने रेणूकूट में आयोजित वनाधिकार सम्मेलन में रैली के दौरान सीओ आफिस में अपना ज्ञापन सौंप डॉक्टरों पर एफआईआर दर्ज करने की माँग की, तो पुलिस प्रशासन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश अुनसार किसी भी डॉक्टर पर मुकदमा दर्ज नहीं हो सकता। जब हमने उनसे इसकी कापी मांगी तो नेट से उन्होंने इस आदेश को निकालने में तीन घंटे लगा दिये, इतनी देर में आम नागरिक भी इस आंदोलन के साथ जुड़ गए और भीड़ ने विकराल रूप ले लिया, जिससे कि मुख्य सम्पर्क रेणूकूट-शाक्तिनगर मार्ग जाम हो गया। यह सड़क जाम रेणूकूट के इतिहास में सबसे लम्बा जाम था, इससे बौखलायी पुलिस ने संगठन के पदाधिकारियों, एक कांग्रसी नेता समेत 200 आदिवासी दलित पर भा0द0स0 के तहत फर्जी मुकदमें 143, 147, 341, 342, 353, 283, 186, 504, 506, 7 सी0एल एक्ट, धाराओं के तहत किए जब कि मामला वार्ता के दायरे में था। इस फर्जी मुकदमे ने यह साबित कर दिया है कि जिला प्रशासन हिंडालको कम्पनी के हितों एवं डॉक्टरों को बचाने में लगा हुआ है। लेकिन यूनियन ने इन पूँजीवादी ताकतों एवं उसके समर्थन में खड़े जिला प्रशासन के साथ संघर्ष करने का ऐलान कर दिया है व जेल जाने की परवाह न करते हुए मिथिलेश गोंण को न्याय दिलाने के लिए अपना बिगुल बजा दिया है। यह सिर्फ एक आदिवासी बालक का मामला नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण आदिवासी, दलित एवं ग़रीब वर्ग के स्वास्थ्य के साथ किए जा रहे खिलवाड़ और भद्दे मज़ाक का मामला है। इन पूँजीपतियों ने आदिवासियों की भूमि पर कब्ज़ा कर अपने साम्राज्य को स्थापित किया है व सभी सार्वजनिक साधनों, जगहों पर अपना कब्ज़ा कर स्थानीय लोगों के संवैधानिक अधिकारों के स्वतंत्र आवागमन को भी अवरुद्ध करने का काम किया है। अब वनाधिकार कानून-2006 के तहत स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल एवं अन्य मूल-भूत सुविधाओं को इन आदिवासी क्षेत्रों में सुधारना ही होगा, अन्यथा इन कम्पनियों के खिलाफ हमारा यूनियन व रा0 यूनियन न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर एक वृहद संघर्ष खड़ा किया जाएगा। गौरतलब है साथियों कि इसी दौरान बिड़ला कम्पनी के मालिक कुमार मंगलम बिड़ला पर कोयला चोरी के आरोप में 15 अक्तूबर 2013 को सीबीआई द्वारा सुप्रीम कोर्ट के र्निदेश पर आपराधिक साजिश एवं भ्रष्टाचार के मामले में एफआईआर दर्ज की गई है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्तूबर 2013 को मेडिकल लापरवाही पर डॉक्टरों पर सख्त कार्यवाही के निर्देश दिए हैं, कहा है कि डॉक्टरों की लापरवाही को सख्ती से निपटा जाए व 12 नवम्बर 2013 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही संज्ञेय मामलों में पहले एफआईआर फिर पड़ताल कर पुलिस को एफआईआर दर्ज न करने पर पुलिस अधिकारियों पर कार्यवाही करने के निर्देश भी दिए गए हैं। यह सारे आदेश यहां के जिला प्रशासन के मुंह पर तमाचा हैं, अब इन तमाम आदेशों के बाद हमें देखना है कि कैसे इन हत्यारे डॉक्टरों को बचाया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले दो महीनों में ही इतने सारे आदेशों से हमारे यूनियन को काफी बल मिला है और अब वो दिन लद गए जब बिड़ला जैसे औद्योगिक घराने राजनैतिक रसूख से अपने को बचाये रखने की हिमाकत करेंगे। हम निश्चित हैं कि कोयला मामले में बिड़ला के मालिक को जेल ज़रूर होगी। ऐसे में हिंडालको के यह लापरवाह और हत्यारे डॉक्टर भी नहीं बच पाऐंगे। इसलिए ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में अपने हकों के प्रति जागरूक हो कर इन पूँजीवादी एवं सामंतवादी ताकतों को सीधी टक्कर देने के लिए लामबंद हो जाएं व आगामी चुनावों में शासकवर्गों को यह कड़ा संदेश दें कि ‘‘ एक हाथ से दो तब दूसरे हाथ से लो’’।
हमारी मुख्य माँग है कि इस पूरे प्रकरण की सीबीआई जाँच कराई जाए व दोषी डॉक्टरों को सज़ा दी जाए।
निवेदकअखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन(AIUFWP) न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव (NTUI)मानवाधिकार कानूनी सलाह केन्द्र, कैमूर क्षेत्र महिला मज़दूर किसान संघर्ष समिति, कैमूर मुक्ति मोर्चा, महिला वनाधिकार एक्शन कमेटीसंपर्क पताः टैगोर नगर, राबर्ट्सगंज, सोनभद्र एवं 222 विधायक आवास, ऐश बाग रोड, लखनऊ, उ0प्र0


