फासीवाद के खिलाफ लेखकों की एक साझा लड़ाई समय की मांग
फासीवाद के खिलाफ लेखकों की एक साझा लड़ाई समय की मांग
फासीवाद के खिलाफ लेखकों की एक साझा लड़ाई समय की मांग
हो सकता है कि कुछ एक लेखकों ने साहित्य अकादमी से अपने मतभेद के चलते साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस किया हो। हो सकता है साहित्य अकादमी पुरस्कार वापसी की शुरुआत ऐसे हुई हो। हो सकता है कुछ अति महत्वाकांक्षी लेखकों ने इसमें अपनी राजनीति भी करने की कोशिश की हो या कर रहे हों।
सिर्फ साहित्य अकादमी को ही टारगेट करने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि अकादमी देश की पालिसी नहीं बना रही है। न अकादमी किसी की हत्या करवा रही है। देर सवेर अकादमी का इस सम्बन्ध में और भी साफ़ बयान आ जाएगा। सुना है 23 को बैठक भी है।
अकादमी नहीं बोल रही सिर्फ इस मुद्दे पर जो विरोध कर रहे हैं, तब उनके विरोध की आग पर थोड़ा पानी तो पड़ ही जाएगा।
लेकिन सारे लेखक अपने सम्मान सिर्फ अकादमी के विरोध में लौटा रहे हैं, ऐसा भी नहीं है। अब तक करीब 40 लेखक सम्मान वापस कर चुके हैं। और सभी मैनेज्ड नहीं हैं। तमाम लेखकों के सम्मान वापसी के बयान आ रहे हैं। जिन्होंने देश में बिगड़ते माहौल के कारण और फासीवादी ताकतों के विरोध में सम्मान वापस किया है।
यह भी ध्यान रखना होगा कि तमाम लेखक देश में बिगड़ते लोकतांत्रिक माहौल के खिलाफ अपना प्रतिरोध कर रहे हैं। इसका ओछी राजनीति के लिए इस्तेमाल न होने पाये और लेखक किसी की निजी महत्वाकांक्षा को पूरा करने की राजनीति का जरिया न बन पाएं इसके लिए भी लेखकों को सचेत रहना होगा। बाकी तो जो ताकतवर होगा वह अपने पक्ष में इस्तेमाल तो कर ही सकता है, यह चिंता जायज़ है।
आज सरकार को बयान देना पड़ा है भले ही वित्त मंत्री ने इस विरोध को निर्लज्जता से खारिज किया पर उनकी मंशा पर सवाल तो राष्ट्रीय स्तर पर उठ गया।
भारत में लेखकों का कोई बड़ा आंदोलन कभी हुआ भी नहीं है जिसमें लेखकों ने सड़क पर उतर कर जनता के सवालों की अगुआई की हो।
इस तरह भारत में लेखक आंदोलन अभी बहुत विकसित होना है।
फिर भी फिलहाल हम लोग तो यही कह रहे हैं कि अव्वल तो कोई सरकारी/ दरबारी पुरस्कार लेखक को लेना ही नहीं चाहिए। दूसरी बात कि इस समय जो लेखक सम्मान लौटाकर प्रतिरोध कर रहे हैं उनका स्वागत। जितने अधिक लेखक फासीवाद के खिलाफ अपने राजकीय सम्मान वापस करें यह अच्छा ही है। फिर भी पुरस्कार वापसी और न वापसी के मुद्दे पर लेखकों के बीच अखाड़ा खोदना इस समय गलत है। इस समय लेखकों में विभाजन न करवाएं। क्योंकि असल लड़ाई अकादमी से या तिवारी जी से नहीं है। इसलिए लड़ाई को इनके खिलाफ इस्तेमाल करके डाइल्यूट न किया जाए।
प्रतिरोध के अन्य तरीके भी अपनाये जाएँ और फासीवाद के खिलाफ लेखकों की एक साझा लड़ाई खड़ी करने का प्रयास हो।
संध्या नवोदिता
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