फिर धर्मोन्मादी तूफान जोरों पर है और देश भर में किसान सोच रहे हैं कि आत्महत्या करें या न करें
फिर धर्मोन्मादी तूफान जोरों पर है और देश भर में किसान सोच रहे हैं कि आत्महत्या करें या न करें
फिर धर्मोन्मादी तूफान जोरों पर है और देश भर में किसान असमय बरसात से माथे पर हाथ धरे सोच रहे हैं कि आत्महत्या करें या न करें।
इसी बीच अमेरिका की शह पर संयुक्त अरब सेना शिया संप्रदाय से लड़ने लगी है और ममता बनर्जी और मुकुल राय में सुलह हो गयी है तो विहिप नेता प्रवीण तोगाड़िया पर बंगाल में निषेधाज्ञा लागू हो गयी है।
इसी बीच भारत के गृहमंत्री ने बंगाल की सरजमीं से ऐलान किया है कि वे बांग्लादेशियों का गोमांस खाना बंद कर देंगे।
फिर धर्मोन्मादी तूफान जोरों पर है और देश भर में किसान असमय बरसात से माथे पर हाथ धरे सोच रहे हैं कि आत्महत्या करें या न करें।
आज सुबह अंकुर देखी तो कल देर रात लीडर।
अंकुर हमने अशोक टाकीज या फिर कैपिटल हाल में देखी थी, ठीक से याद नहीं है। यह दीवार देखने से पहले का वाकया है। गिरदा और मोहन साथ थे। गिरदा को फिल्म का आखिरी दृश्य बहुत भाया।
मीडिया में हमारी हालत अंकुर की लक्ष्मी से कोई बेहतर लेकिन नहीं है।
जमींदार पुत्र सूर्या (अनंत नाग) अपनी रखैल गर्भवती लक्ष्मी (शबाना) के गूंगे बहरे पति कृश्नैय्या (साधू मेहेर)की वापसी पर समझ लेता है कि वह उसे पीटने चला आ रहा है।
वह जिस बच्चे के थामे डोर के भरोसे पंतंग उड़ा रहा था, पंतग उसे थमाये अपने आदमियों से कृश्नैय्या क पकड़वाकर भीतर से कोड़े लाकर बेरहमी से उसे धुन देता है तो लक्ष्मी आकर अपने पति से लिपट कर सूर्या को शाप देने लगती है निरंतर विलाप के मध्य।
सूर्या की नई नवेली पत्नी(प्रिया तेंदुलकर), जिसने आते ही लक्ष्मी को घर बाहर किया भीतर से थरथराये पति के मुखातिब होती है तो जिनने पकड़ा कृश्नैय्या को, उन्हीं लोगों ने सहारा देकर उसे उठाया और लक्ष्मी अपने पति को लेकर लड़खड़ाती हुई अपने डेरे की तरफ निकल पड़ी और दूसरे लोग भी तितर बितर हो गये।
तभी पंतग की डोर थामने वाले बच्चे ने एक पत्थर उठाया और दे मारा सूर्या की खिड़की पर।
गिरदा आजीवन उस बच्चे की तलाश में रहे और मैं बी उस बच्चे की तलाश में हूं।
शबाना कितनी बड़ी अभिनेत्री है एकदम शुरुआत से और कितनी जटिल भूमिका को निभा सकती है, उससे बड़ी बात यह है कि इस फिल्म में जमीन की मिल्कियत, सामंती शोषण, कृषि अर्थव्यवस्था और उत्पादन संबंधों का जटिल ताना बाना पेश है, जो समांतर फिल्मों का कथ्य भी रहा है।
समांतर फिल्मों से पहले भी पचास और साठ के दशकों की फिल्मों और यहां तक कि व्ही शांताराम की फिल्मों में सामाजिक यथार्थ से टकराने का सिलसिला जारी रहा है।
वैजयंती माला से बड़ी कयामत भारतीय सिनेमा में कोई दूसरी नहीं हुई।
आम्रपाली, ज्वेलथीफ, संगम, नया दौर, लीडर, मधुमति जैसी फिल्मों में उनकी नृत्यकला और उनके अभिनय के जादू का तोड़ अब भी नहीं निकला। तो राजकपूर की आवारा का वह स्वप्नदृश्य यथार्थ के समांतर लाजवाब है।
दो बीघा जमीन और मदर इंडिया जैसी फिल्मों से आज भी भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था की विसंगतियां साफ साफ नजर आती हैं।
भरतीय फिल्मों, साहित्य, कला माध्यमों में और भारतीय पत्रकारिता में सत्तर के दशक तक जो यथार्थ से टकराने की, मिथकों को और फंतासी को तोड़ने की लगातार लगाातार कोशिशें होती रही हैं, उसके उलट अब सारे माध्यम और सारी विधायें ऊसर प्रदेश हैं, जहां कोई वनस्पति उगता नहीं है और सीमेंट के जंगल में दस दिगंत व्यापी मृग मरीचिका मुक्तबाजार है।
फंतासी लाजवाब है और मिथ्या मिथकों में हम जी भी रहे हैं और मर भी रहे हैं।
शोषक अत्याचारी सामंत की खिड़की पर पत्थर उठाकर मारने वाला बच्चा कहीं नहीं है और कहीं भी नहीं है। आज का सबसे बड़ा सामाजिक यथार्थ लेकिन यही है।
धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के खिलाफ संसदीय राजनीति का पर्दाफाश बंगाल के बेहतर कहीं नहीं हुआ है। शारदा फर्जीवाड़ा की सीबीआई जांच का फंडा तो पूर्व रेलमंत्री मुकुल राय को क्लीन चिट मिलने से हो ही गया। क्षत्रप साधो का रसायन डाउ कैमिकल्स है।
मोदी दीदी के मिले जुले धर्मोन्माद से वाम हाशिये पर है। वाम वापसी असंभव हो गयी है।
अब रोजवैली के खिलाफ ईडी की सक्रियाता से एकमात्र वाम आधार त्रिपुरा की जोर नाकाबंदी हो रही है। माणिक सरकार कटघरे में हैं और दीदी सिरे से बरी हैं।
तो दीदी ने मुकुल राय को सलाह दी है कि वे संयम से रहें तो तृणमूल में उन्हें उनकी पुरानी हैसियत वापस मिल जायेगी।
लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ आग उगल रहे थे तो दीदी अल्पसंख्यकों का तरणहार बनते हुए मोदी को जेल भेजने का ऐलान करते हुए केंद्र में दंगाबाज सरकार न बनने देने का दावा कर रही थीं।
तब से लेकर अबतक अमित शाह, मोहन भागवत और प्रवीण तोगाड़िया बंगाल में अपने लश्कर के साथ बेरोकटोक शत प्रतिशत हिंदुत्व का अभियान चला रहे हैं। दीदी ने किसी को रोका नहीं।
राज्यसभा में जमीन अधिग्रहण बिल लटक जाने के बावजूद बाकी सारे जरूरी बिल ममता बनर्जी की अगुवाई में धर्मनिरपेक्ष क्षत्रपों के समर्थन से पारित हो गये।
जमीन अधिग्रहण के लिए अध्यादेश फिर लागू होने जा रहा है और लौह पुरुष को सुप्रीम कोर्ट के नोटिस और बाबरी विध्वंस के मूक महानायक नरसिंह राव के महिमामंडन के मध्य सोनिया गांधी के खिलाफ रंगभेदी टिप्पणी से नये सिरे से रामंदिर भव्य बनाने के लिए बच्चा बच्चा राम का माहौल बनाया जा रहा है।
अब कोलकाता नगरनिगम के चुनाव प्रचार के लिए मोदी कोलकाता अपनी पूर्व घोषणा के मुताबिक नहीं आ रहे हैं लेकिन हिंदुत्व के आतंक के मारे सारे के सारे मुसलमान दीदी को वोट डाले, ऐसा इंतजाम मोदी और उनके सिपाहसालारों ने कर दिया है।
तोगड़िया बाकी देश में भले एटम बम हो, बंगाल के लिए वे पटाखा भी नहीं हैं। दीदी ने उनको एटम बम बना दिया है।


