फैसल, यह तुमने क्या किया हाय ...
फैसल, यह तुमने क्या किया हाय ...
विभूति नारायण राय एक बड़ा नाम हैं.. हिंदी लेखन में भी.. एक पुलिस अधिकारी के रूप में भी और वर्धा यूनिवर्सिटी के चांसलर के रूप में भी.. आज इनका लेख -अबूझ नाराजगी का एक नायक- हिंदुस्तान के संपादकीय पृष्ठ पर छपा है.. लेख पूरी तरह लेखकीय सावधानियों, समाचारपत्र के वर्तमान चरित्र के अनुकूल और 'तुम तो ऐसे न थे' वाली मासूमियत भरी उलाहना से ओतप्रोत है..
मुद्दा है कश्मीर कैडर के कश्मीरी आईएएस शाह फैसल का कई दिन पुराना पड़ चुका इस्तीफ़ा.. पूरा लेख शाह फैसल के इस्तीफे से आक्रांत है और दिखाई न पड़ने वाला 'हाऊ इट्स पॉसिबल' और उसके साथ लगा एक्सक्लेमेशन मार्क जोरदार चमक बिखेर रहे हैं..
हो सकता है राय साहब ने जब अपना लेख संपादकीय में भेजा हो तब तक कन्नन गोपीनाथन और शशिकांत सेंथिल ने इस्तीफे न दिए हों.. पुराने वक्त के सम्पादक होते तो आज यह लेख उन इस्तीफों की चर्चा के बगैर नहीं छप सकता था..खैर, यह अपन की 'मिश्टेक' भी हो सकती है नए नियम न जानने के चलते..
हाँ तो मैं कह रहा था कि इस लेख में एक पाकिस्तानी लेखक के उपन्यास के हवाले से शाह फैसल को उलाहना दी गयी है कि हाय तुमने ऐसा क्यों किया.. अब उपन्यास की चर्चा तो नहीं करूँगा.. हाँ तो शाह फैसल, तुम को अति विशिष्ट परिस्थितियों में इस महान राष्ट्र राज्य ने आईएएस बनाया तो क्या इसलिए कि तुम राष्ट्रद्रोहियों के से दिखो और उस कश्मीरियत का गुस्सा मन में पालो जो बाकि लाखों कश्मीरियों में न जाने कब से पल रहा है.. व्हाई !
शाह फैसल! तुम पर लाखों खर्च कर आईएएस इसलिए नहीं बनाया था कि तुम अपनी भावनाएं उजागर करो और इस्तीफ़ा दो.. हजारों आईएएस देश में पड़े हुए हैं कि नहीं.. तुम कौन से अनोखे हो.. बताइये साहब एक तो हम तुमको तुम्हारे दर्दों से निकाल कर तुम्हारी कोचिंग कराएं, तुम्हें खर्चा पानी दें.. तुम्हें आईएएस के एग्जाम में टॉप करने लायक बनायें और तुम इस बात पर इस देश की अति उत्तम नौकरी को लात मार दो कि कश्मीरियों के साथ अच्छा नहीं हो रहा है..
खैर तुम जानो तुम्हारा काम जाने लेकिन तुम और वो पाकिस्तानी लेखक के उपन्यास 'द रिलक्टेंट फंडामेंटलिस्ट' के नायक में क्या फर्क रह गया..उसके भी और तुम्हारे सामने भी "दोनों के सामने एक तो वह धर्म निरपेक्ष तंत्र है, जो बहुत सारे विचलनों के बावजूद उन्हें समर्थन दे कर नए क्षितिज छूने का मौका देता है, पर वे मुस्लिम उम्मत की उस शिकायती दुनिया से भी बाहर नहीं निकल पा रहे हैं, जो मानती है कि पूरी दुनिया उनके खिलाफ षड्यंत्ररत है.."
वैसे राय साहब, कन्नन गोपीनाथन (Kannan Gopinathan) और शशिकांत सेंथिल (Shashikant Senthil) के बारे में भी लिखेंगे न! यह दोनों भी आईएएस (IAS) थे इस्तीफ़ा देने से पहले..और इन दोनों ने भी शाह फैसल वाली केमिस्ट्री के साथ ही इस्तीफ़ा दिया.. थोड़ा सा फर्क है बस.. यह दोनों कश्मीरी नहीं हैं न ही मुस्लिम.. तो इनके मामले में उस उपन्यास का मसाला तो काम करेगा नहीं.. अब आप जानो..
राजीव मित्तल


