और राजनीतिक संघर्ष बजरिये धर्मोन्मादी ध्रुवीकरण तेज
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बंगाल में केसरिया लहर तेज से तेज होती जा रही है और धार्मिक ध्रुवीकरण भी उतना ही तेज होता जा रहा है। इसी के साथ बंगाल में सत्ता की राजनीति में एकदम हाशिये पर वामपंथियों के चले जाने के बाद इलाका दखल की लड़ाई में जहां-तहां खून की नदियां बहने लगी हैं रोज-रोज।

अभूतपूर्व हिंसा है। पश्चिम बंगाल में राजनीतिक संघर्ष रूकने का नाम नहीं ले रहा है। बीते 24 घंटे के दौरान राज्य के मुर्शिदाबाद और बीरभूम जिले में विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं के साथ तृणमूल समर्थकों की भिडंत में कई लोग घायल हो गए। दोनों ही घटनाओं में विपक्षी पार्टियों ने सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस पर हमले का आरोप लगाया है।

मुर्शिदाबाद के बहरमपुर थानान्तर्गत उत्तरपाड़ा मोड़ इलाके में पार्टी कार्यालय पर कब्जे को लेकर शनिवार को कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच जोरदार संघर्ष हुआ जिसमें पुलिस कर्मी सहित छह घायल हो गए।

पूरा बंगाल अब कुरुक्षेत्र में तब्दील है।

रोजमर्रे की नर्क सी जिंदगी को बेहतर बनाने के किसी मुद्दे पर कहीं चर्चा हो नहीं है। बुनियादी मुद्दों पर कहीं कोई बात नहीं कर रहा है।

होक कलरव भी अब होक चुंबन है।

फिल्मोत्सव है और तरह-तरह के उत्सव कार्निवाल है।

बाकी जनता बिंदास है। ईटेलिंग शबाब पर है और आम जनता की समस्याओं पर बाकी देश की तरह कोई सुनवाई नहीं है।

कानून व्यवस्था सत्ता की राजनीति में तब्दील है।

वामपंथी कहीं नहीं हैं। कहीं भी नहीं हैं। वाम आंदोलन या वाम जागरुकता अभियान कहीं नहीं है।

बहुजन आंदोलन के सिपाहसालार लोग तमाम हैं, अंबेडकर के नाम लाखों दुकानें बाकायदा चल रही हैं। लेकिन धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के पक्ष विपक्ष में मोर्चाबंद सत्ता राजनीति के सिवाय कहीं कुछ नहीं है।

शारदा मामले में गिरफ्तार तृणमूली निलंबित सांसद कुणाल घोष की खुदकशी पर सुर्खियां उनके अस्पताल से सकुशल प्रेसीडेंसी जेल तक पहुंच जाने तक खत्म हैं और पोंजी अर्थव्यवस्था से छुटकारा के कोई आसार नहीं हैं।

कमसकम आदरणीय डा.अशोक मित्र के आलेख आनंद बाजार पत्रिका के संपादकीय पेज पर छपने के बाद मोदी के ध्रुवीकऱण के मुख्य हथियार हिंदुत्व की असलियत और पूर्वी बंगाल के शरणार्थियों की समस्या पर जो बहस होनी थी, नहीं हो पा रही है।

मीडिया की मुख्य चिंता यह है कि बंगाल दखल के लिए मुंबई से जो गायक कलाकार बंगाल लाकर मोदी ने केंद्र में मंत्री बना दिया है, उनकी अगवाई में भगवा खेमा पहली बार बंगाल में सत्ता पर काबिज हो पायेगा या नहीं।

कल तक वामपंथी, कांग्रेसी और तृणमूली रहे राजनेताओं और कार्यकर्ताओं की नईकी फौजें लेकिन यह मामला चुनाव की रणभेरी बजाने से पहले वामदलों और तृणमूल कांग्रेस के पदचिन्हों पर इलाका दर इलाका दखल करके निपटा लेना चाहते हैं।

वाम कार्यकर्ता तो पिटते- पिटते थक गये और जानमाल की सुरक्षा के लिए केसरिया हो गये। सत्ता गंध में तृणमूल और कांग्रेस में भारी सेंध लग गयी है।

हो यह रहा है कि बंगाल का परंपरागत मुसलमान वोट बैंक टूटने बिखरने लगा है और उसका बड़ा हिस्सा केसरिया होने लगा है।

वीरभूम से लेकर उत्तर दक्षिण 24 परगना, सीमावर्ती मुस्लिम इलाकों से लेकर जंगल महल में वाम से छिने दीदी के मजबूत गढ़ों में मुसलमान अपनी जान माल की हिफाजत के लिए धर्मोन्मादी ध्रुवीकरण से आने वाली सुनामी से बचने के लिए धड़ाधड़ भाजपाई दीखने बनने लगे हैं।

इसी का नतीजा तृणमूली राज में भी वामदलों के मजबूत गढ़ उत्तर 24 परगना के बशीरहाट उपचुनाव में भाजपा के शमीक भट्टाचार्य की अप्रत्याशित जीत से सारे चुनाव समीकरण दो लोकसभाई जीत के बाद में सिरे से बदल गये हैं।

अमित शाह के गेमप्लान के तहत बंगाल जीतना अब मोदी की सर्वोच्च प्राथमिकता है और बंगाल विधानसभा में भी इकलौते विधायक के दम पर बदलाव की उम्मीदें जगाने लगी है भाजपा, जो अब बाबुल सुप्रिय के मंत्रित्व अवतार के बाद केसरिया पैदल फौजों के पक्के यकीन में तब्दील है।

नतीजतन भाजपा समर्थक और कार्यकर्ता कहीं भी पीछे नहीं हट रहे हैं और इलाका दर इलाका अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए तृणमूल वाहिनियां हमलावर हो रही हैं, तो उन हमलावरों को ईंट का जवाब पत्थरों से दे रहे हैं भाजपाई।

दूसरी ओर, बाहुबलि अधीर चौधरी का साम्राज्य है मुर्शिदाबाद। वहां कांग्रेस लड़ रही है। कुल मिलाकर जंगल महल से लेकर दक्षिण बंगाल, वीरभूम से लेकर मुर्शिदाबाद कुरुक्षेत्र का लगातार लगातार विस्तार हो रहा है और तेज हो रहा है धार्मिक ध्रुवीकरण, जिससे बंगाल अब गाय पट्टी में तब्दील है।