0 राजेंद्र शर्मा

हावड़ा स्टेशन से निकलते ही, दो-तीन सौ मीटर की दूरी पर एक छोटी सी सब्जी (जाहिर है कि मछली भी) मंडी पड़ती है। मंडी क्या एक-दूसरे पर गिरी पड़ती सी छोटी-बड़ी, जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर किसी तरह से टिकी, भांति-भांति की दूकानों का झुंड ही कहिए। यहां हंसिए, हथौड़े और सितारे के साथ लाल झंडों की बहार चौंकाती है। लेकिन, क्यों? जाहिर है कि चुनाव के सीजन में इसमें ऐसा कुछ नया तो नहीं है। इसके बावजूद, लाल झंडों की बड़ी संख्या चौंकाती है क्योंकि पांच साल पहले, 2011 में इसी महीने में चुनाव के दौरान ही जब यहां से गुजरा था, तृणमूल कांग्रेस के फूल के साथ घास की दो पत्तियों के झंडों की भारी भीड़ के बीच, एक अकेले लाल झंडे को अवज्ञापूर्ण तरीके से फहराते देखकर भी ऐसे ही चौंका था। लेकिन, वह पिछले लहर वाले विधानसभाई चुनाव की बात है, जब राज्य में सत्ता में होने के बावजूद, खासतौर पर सिंगुर तथा नंदीग्राम प्रकरणों के बाद अपने खिलाफ हुई गोलबंदी के बाद से, वाम मोर्चा एक तरह से घेराव में था। अकेले, अलग-थलग लाल झंडे के साहसपूर्ण अवज्ञा के भाव से सिर ताने खड़े रहने की स्थिति से, फूल-दो पत्ती निजाम के मौजूदा आतंक निजाम के खिलाफ वास्तविक चुनौती बन जाने की कहानी ही, प0 बंगाल के 2016 के विधानसभाई चुनाव की असली कहानी है।
उत्तरी 24 परगना जिले के बहुत भीतरी हिस्से में स्थित हड़ोआ से लेकर, दक्षिणी 24 परगना जिले के छोर पर बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर स्थित सागर विधानसभाई क्षेत्र तक और हल्दिया में सिंगुर से लेकर हावड़ा जिले में शिबपुर, डोमजूर, जगतवल्लभपुर तक और जाहिर है कि कोलकाता तथा इर्द-गिर्द के इलाके में, जिसमें जादवपुर विधानसभाई क्षेत्र भी शामिल है, पांच दिन (22 से 26 अप्रैल तक) के अपने चुनाव (कवरेज) दौरे के क्रम में, लाल झंडों को अपनी संख्या तथा फैलाव में दूसरे, तथा खासतौर पर घास पत्ती-फूल के झंडे पर अगर भारी पड़ते नहीं तो कम से कम उसे बराबर की कड़ी टक्कर देते जरूर देखा, वह 2016 के चुनाव की उसी कहानी की पुष्टि कर रहा था।
उत्तरी बंगाल में तो वैसे भी वामपंथ तथा अन्य विपक्षी ताकतों का पलड़ा भारी मानकर चला जा रहा था। इसके बाद 25 अप्रैल के मतदान में उत्तरी 24 परगना तथा हावड़ा जिलों में जनता के सत्ताधारी पार्टी के गुंडों की वोट लूटने की कोशिशों को सफलता के साथ नाकाम कर देने के बाद, अब अगर 30 अप्रैल के मतदान में दक्षिणी 24 परगना तथा हुगली में भी जनता सत्ताधारी पार्टी की मनमानी को विफल करने में कामयाब हो जाती है, तो इसकी पूरी संभावना है कि दक्षिणी बंगाल में भी जनता अलोकतांत्रिक तथा जनविरोधी ममता निजाम के खिलाफ अपना फैसला सुनाए और उसकी छुट्टी का ही एलान कर दे।

अचरज नहीं कि तृणमूल कांग्रेस और उसकी सुप्रीमो के हाथ-पांव फूल गए हैं।
उनकी बदतरीन आशंकाएं सच होती नजर आ रही हैं। बंगाल की जनता न सिर्फ उनके जनतंत्रविरोधी निजाम के खिलाफ होती जा रही है बल्कि उनके तमाम धन बल तथा लट्ठबल के प्रतिरोध के लिए एकजुट भी हो रही है और वास्तव में सफलता के साथ उसका प्रतिरोध कर रही है। यह इस बढ़ती लहर के सामने तृणमूल कांग्रेस की बौखलाहट का ही सबूत था कि उसके शीर्ष प्रवक्ता तथा प्रमुख स्पिन-डॉक्टर, सांसद डेरेक ओब्राइन ने सी पी आइ (एम) के पूर्व-महासचिव, प्रकाश कारात की एक फर्जी तस्वीर सोशल मीडिया पर प्रसारित की थी, जिसमें सी पी आइ (एम) नेता को भाजपा नेता के हाथ से लड्डू खाते दिखाया गया था। इस फर्जी तस्वीर को जिसका झूठ उजागर होने में ज्यादा समय नहीं लगा, भाजपा से सी पी आइ (एम) की ‘‘नजदीकी’’ के सबूत के तौर पर पेश किया जा रहा था। तृणमूल कांग्रेस की इस बौखलाहट की असली वजह यही है कि तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच की ‘‘नूरा कुश्ती’’ को बेनकाब करने में वामपंथ जबर्दस्त तरीके से कामयाब रहा है। ‘‘दीदी भाई, मोदी भाई’’ के जुम्ले के जबर्दस्त तरीके से लोगों की जुबान पर चढ़ जाना, इस गुपचुप गठजोड़ के बेनकाब किए जाने के कारगर होने का सबूत है। वास्तव में इस आशंका से तृणमूल कांग्रेस की आंखों की नींद उड़ गयी है कि भाजपा, तृणमूलविरोधी वोट में ज्यादा सेंध नहीं लगा पाएगी।
बेशक, यह बदलाव मौजूदा अति-दमनकारी तथा जनविरोधी निजाम के खिलाफ वामपंथ के साहसिक अवज्ञापूर्ण विरोध और हर प्रकार के हमलों का सामना करते हुए, इस निजाम के खिलाफ जनता को गोलबंद करने के अनथक प्रयासों के ही बल पर आया है। पिछले पांच साल में ही 175 से ज्यादा कामरेडों की शहादत, जिसमें इस चुनाव के क्रम में ही सात शहादतें शामिल हैं और दसियों हजार दूसरे कामरेडों की तकलीफें तथा कुर्बानियों के बल पर ही, पिछले साल के उत्तराद्र्घ में इस राज्य में संघर्षों की अभूतपूर्व लहर उठी थी। इस लहर ने, अवाम का मनोबल बढ़ाने के साथ ही, संघर्ष की एकता के दायरे का भी विस्तार किया था। ठीक इसी पृष्ठभूमि में सी पी आइ (एम) की ‘‘तृणमूल हटाओ, बंगाल बचाओ’’ और ‘‘भाजपा हटाओ, देश बचाओ’’ की पुकार को, न सिर्फ जनता का जबर्दस्त समर्थन हासिल हुआ है बल्कि इसने ऐसी तमाम राजनीतिक व सिविल सोसाइटी आदि की अन्य ताकतों को लगभग पूरी तरह से एकजुट भी किया है, जो वाकई बंगाल के मौजूदा निजाम के खिलाफ हैं और जो बंगाल में जनतंत्र फिर से कायम करना चाहती हैं।
जाहिर है कि सी पी आइ (एम) के नेतृत्व में वामपंथ इस कतारबंदी का नेतृत्व कर रहा है। बंगाल में 8वीं वाम मोर्चा सरकार के गठन की किसी अपील से भिन्न इस परिघटना ने, इतने बड़े पैमाने पर बंगाल की जनता को तृृणमूल कांग्रेस निजाम के खिलाफ खड़ा कर दिया है कि इसने न सिर्फ ममता निजाम को हिलाकर रख दिया है बल्कि यह भी पक्का कर दिया है कि इस चुनाव में बहुत हद तक जनता की मर्जी चलेगी। ‘मेरा वोट, मैं ही डालूंगा’ का नारा, इस चुनाव में जनतंत्र का युद्धघोष बन गया है। 0