बच्ची भात मांगते माँगते मर गयी ... और इस तरह सरकार जीत गई … रघुवर-मोदी के खिलाफ सोशल मीडिया उबला
बच्ची भात मांगते माँगते मर गयी ... और इस तरह सरकार जीत गई … रघुवर-मोदी के खिलाफ सोशल मीडिया उबला
नई दिल्ली। झारखंड के सिमडेगा के कारीमाटी गांव की नन्ही संतोषी के पेट में 28 सितंबर को दर्द उठा तो गांव के वैद्य ने कहा कि इसको भूख लगी है, खाना खिला दो, ठीक हो जाएगी।
जीडीपी और विकास की बातें करने वालों, शेयर बाजार में उछाल देखकर मुदित होने वालों, धनतेरस और पुष्य नक्षत्र में शुभ मुहूर्त देखकर खरीदारी करने वालों को यह नसीहत अटपटी लग सकती है। किसी बच्ची के पेट में इसलिए भी दर्द हो सकता है कि वह भूखी थी? लेकिन सच यही है और कड़वा होने के बावजूद इसे हलक से उतारना ही होगा। संतोषी के घर में कई दिनों से अनाज नहीं था। उसके परिवार का राशन कार्ड बना था, लेकिन डिजीटल इंडिया वाले भारत में राशन कार्ड आधार से लिंक्ड नहीं था, तो डीलर ने उसकी मां को अनाज नहीं दिया। भूख बर्दाश्त करते-करते संतोषी के पेट ने जवाब दे दिया और रात तक उसकी सांसों ने भी। उसकी मां ने उसे नमक वाली चाय पिलाने की कोशिश की थी, ताकि उसकी भूख थोड़ी शांत हो, लेकिन भात-भात कहकर रोकी संतोषी के हाथ-पैर अकड़ रहे थे और आखिरकार उसने दम तोड़ दिया। ये वही समय था, जब आधे हिंदुस्तान में देवी पूजा का उत्साह था और देश के नीति-नियंता भी इस उत्सव में सराबोर थे।
संतोषी की मां कोयली देवी बताती हैं कि आधार से राशन कार्ड लिंक न होने के कारण उन्हें राशन नहीं मिला और उनकी बेटी की भूख से मर गई. कोयली देवी की कमाई हफ्ते में 80 रूपए की है जो वो दातून बेच कर कमाती हैं.
इसके बाद सोशल मीडिया पर उबाल आ गया।झारखंड कीरघुवर सरकार और केंद्र की मोदी सरकार लोगों के निशाने पर थी।
पत्रकार अरविंद शेष ने लिखा
“भात मांगते मर गई संतोषी ने मोदी सरकार के चेहरे पर से उस दावे का पर्दा भी नोच के फेंक दिया है कि उसने आधार कार्ड की व्यवस्था करके फर्जीवाड़े रोके, करोड़ों रुपए बचाए..!
दरअसल, वे करोड़ों की बचत में से ज्यादातर ऐसे ही बचे होंगे कि आधार का अड़ंगा लगा कर किसी भूख से मरते को राशन नहीं दो... इंटरनेट फेल होने की वजह से किसी की उंगलियों के निशान नहीं मिल रहे तो उसे मनरेगा की मजदूरी नहीं दो... किसी को वृद्धावस्था पेंशन या विधवा पेंशन, छात्रवृत्ति जैसे दूसरी तमाम समाज कल्याण की किसी योजना के मद में आए हुए पैसे नहीं दो..!
इसी को आधार की कामयाबी बता कर देश और दुनिया के सामने पेश किया जा रहा है कि देखो... हमने आधार से कितने पैसे बचाए..! आधार इस देश के सबसे गरीब तबकों के लिए बेहद बेहद महंगा सौदा साबित होने जा रहा है...!
इस निर्लज्ज घोषणा की हकीकत यह है कि महज ग्यारह साल की बच्ची संतोषी भात मांगते हुए मर गई..!”
कनुप्रिया ने लिखा -
“भूख से मरना कैसा होता है? कोई भूख से मर जाये उसे एक अदद प्रमाणपत्र के पीछे खाना न मिले, इसे किस तरह की मौत कहते है?
आप जन्म से हिन्दू या मुसलमान हो सकते हो, मन्दिर या मस्ज़िद जाने के लिये आपको किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नही, मगर इस देश मे जन्म ले कर भात खाने के लिये आपके पास प्रमाणपत्र होना चाहिये.
भूख से मरते वक्त बच्ची ने भात बोला उसे जय श्री राम या भारत माता की जय बोलना चाहिये था.”
विदेशी मामलों के जानकार प्रमोद पाहवा ने लिखा –
“चूल्हा था, लकड़ियां भी थी सिर्फ राशन नही था क्योकि आधार कार्ड नही था,,
और भात भात कहते हुए एक बेटी ने दम तोड़ दिया
बहनों, भाइयो ये नेहरूजी की गलती से हुआ है यदि वो लड़की भात खाने के स्थान पर काजू के आटे की रोटी और मशरूम की सब्ज़ी में गुजारा कर लेती तो सरकार को बदनाम करने की साज़िश न होती।“
रणधीर सिंह सुमन ने एक कविता शेयर की –
“भात भात भात
भात भात भात
थोड़ा हमको चाहिए
भात भात भात
माँ भारती की जय
हम भी तो बोलते
हो वोट मांगते
तो दर को खोलते
सरकार जो बन गई
सरकार करें बात
भात भात भात
थोड़ा हमको चाहिए
भात भात भात
चूल्हें की आग ठंडी
पर हर तरफ है मंडी
सुनता नहीं है कोई
है वक़्त भी घमंडी
डर के डेरे गहरे
कैसे कहें प्रभात
भात भात भात
थोड़ा हमको चाहिए
भात भात भात
साहिब ने भी भगाया
वाहिद कोई न आया
लिंक हो न कोई तो
आधार है न काया
भूख लगी कसके
हमनें है खाई लात
भात भात भात
थोड़ा हमको चाहिए
भात भात भात
अनूप मणि त्रिपाठी”
ए के अरुण ने लिखा –
“सरकार आधार पर अड़ी थी और बच्ची भात मांगती रही। बच्ची भात मांगते माँगते मर गयी ... और इस तरह सरकार जीत गई ...”
अनिल यादव ने लिखा -
“भात समझते हैं आप? भूख तो समझते होंगे। शायद वह भी नहीं समझते होंगे। पर मौत का मतलब तो जानते होंगे। हाँ ,मौत। लोकतंत्र की मौत। बस।“
शोभित जायसवाल ने लिखा –
“.. मेरी बच्ची भात -भात कहते कहते मर गई। ... बच्चा मर गया। भात नहीं था। .... हमारे समाज में बच्चा खाना कहते कहते दम तोड़ देता है। ..हम लोग दुनिया की ताकतवर इकोनमी में रहते हैं। किसकी है ये ताकत.. किसके लिए है ये ताकत .. कौन है ताकतवाला.. आधार से ज्यादा दोष इस कायनात का है जिसे हमने बनाया है। ...”
अजित प्रताप सिंह ने लिखा –
“#आधार आम जनता की आसानी के लिए बना है या इसलिये को बनाया गया है कि यह देश की जनसंख्या कम करने का कारण बने ???
मुझे याद है कि देश का #काजू के आटे की रोटी खाने वाला #परिधानमंत्री जब विपक्ष में था तो दहाड़ कर आधार का विरोध करता था और आज सत्ता पक्ष में आते ही इस #नीति_विहीन, #नियत_विहीन और #अक्ल_विहीन सरकार ने सिर्फ पुराने पुराने रास्ते पर चलते हुए हालत कर दी है कि आधार न होने पर लोग भूख से मर जा रहे हैं
झारखंड इस देश का सबसे ज्यादा गरीब जनसंख्या वाला सबसे अमीर राज्य है और जिस तरह की नीतियां हैं आने वाले भारत देश भी झारखंड बन जाएगा जहां अरबपति तो सैकड़ों होंगे लेकिन आम आदमी खाने के चावल के लिए तरसेगा
कल परिधानमंत्री ने कहा कि #जीएसटी के लिये मैं अकेला दोषी नहीं हूं कांग्रेस भी बराबर की भागीदार है, मतलब गुजरात की पतली हालत ने ही सही लेकिन यह मानने के लिए मजबूर कर दिया कि बिना तैयारी जीएसटी पाप था....
हरिशंकर पवार साहब की कविता का अंश समीचीन है:
भूख से सताया मन प्राण बीन लेता है !
राजाओं से तख़्त ओ ताज छीन लेता है !!
भूख जहां बागी होना ठानेगी आवाम की!
काजू की रोटी छीन लेगी देश के प्रधान की !!”
अनुपम सिंह ने लिखा –
“हत्यारी सरकार भात भर नहीं दे रही है. इस मौत का बदला लेंगे हम. #भातदेहरामी”
#भातदेहरामी हैशटैग के साथ रफीक आजाद की निम्न कविता सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुई।
#भातदेहरामी
रफीक आजाद की कविता
अनुवाद-अशोक भौमिक
बेहद भूखा हूँ
पेट में , शरीर की पूरी परिधि में
महसूसता हूँ हर पल ,सब कुछ निगल जाने वाली एक भूख .
बिना बरसात के ज्यों चैत की फसलों वाली खेतों मे जल उठती है भयानक आग
ठीक वैसी ही आग से जलता है पूरा शरीर .
महज दो वक़्त दो मुट्ठी भात मिले , बस और कोई मांग नहीं है मेरी .
लोग तो न जाने क्या क्या मांग लेते हैं . वैसे सभी मांगते है
मकान गाड़ी , रूपए पैसे , कुछेक मे प्रसिद्धि का लोभ भी है
पर मेरी तो बस एक छोटी सी मांग है , भूख से जला जाता है पेट का प्रांतर
भात चाहिए , यह मेरी सीधी सरल सी मांग है , ठंडा हो या गरम
महीन हो या खासा मोटा या राशन मे मिलने वाले लाल चावल का बना भात ,
कोई शिकायत नहीं होगी मुझे ,एक मिटटी का सकोरा भरा भात चाहिये मुझे .
दो वक़्त दो मुट्ठी भात मिल जाये तो मैं अपनी समस्त मांगों से मुंह फ़ेर लूँगा .
अकारण मुझे किसी चीज़ का लालच नहीं है, यहाँ तक की यौन क्षुधा भी नहीं है मुझ में
में तो नहीं चाहता नाभि के नीचे साड़ी बाधने वाली साड़ी की मालिकिन को
उसे जो चाहते है ले जाएँ , जिसे मर्ज़ी उसे दे दो .
ये जान लो कि मुझे इन सब की कोई जरुरत नहीं
पर अगर पूरी न कर सको मेरी इत्ती सी मांग
तुम्हारे पूरे मुल्क मे बवाल मच जायेगा ,
भूखे के पास नहीं होता है कुछ भला बुरा , कायदे कानून
सामने जो कुछ मिलेगा खा जाऊँगा बिना किसी रोक टोक के
बचेगा कुछ भी नहीं , सब कुछ स्वाहा हो जायेगा निवालों के साथ
और मान लो गर पड़ जाओ तुम मेरे सामने
राक्षसी भूख के लिए परम स्वादिष्ट भोज्य बन जाओगे तुम .
सब कुछ निगल लेने वाली महज़ भात की भूख
खतरनाक नतीजो को साथ लेकर आने को न्योतती है
दृश्य से द्रष्टा तक की प्रवहमानता को चट कर जाती है .
और अंत मे सिलसिलेवार मैं खाऊंगा पेड़ पौधें , नदी नालें
गाँव देहात , फुटपाथ, गंदे नाली का बहाव
सड़क पर चलते राहगीरों , नितम्बिनी नारियों
झंडा ऊंचा किये खाद्य मंत्री और मंत्री की गाड़ी
आज मेरी भूक के सामने कुछ भी न खाने लायक नहीं
भात दे हरामी, वर्ना मैं चबा जाऊँगा समूचा मानचित्र
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