मौत के मुंह में अपने बच्चों को भेजना.. यह हम मां बाप की फ़ितरत में शामिल हो चला है।

बच्चों के साथ मौत के खिलवाड़ के पीछे स्कूल प्रशासन का निर्मम रवैया है।

और हमारी सरकारों की निगरानी मशीनरी पूरी तरह क़फ़न चोर हो चुकी है, भले ही उस क़फ़न में लिपटे खुद उसी के बच्चे क्यों न हों।

बच्चों की इतने बड़े पैमाने पर हो रहीं ये असामायिक मौतें किसी युद्धग्रस्त देश में गोली बारूद से नहीं, बल्कि मंदिरों में हो रहे भजन कीर्तनों, मस्ज़िद से उठती अजान और गुरुद्वारे से आ रही अरदास के शोरगुल में हो रही हैं।

कल देर रात मेरे रोते हुए बेटे का फोन आता है कबीर और कनि को लेकर .. मेरे जैसे घोर नास्तिक को यही कहना पड़ा..तुम तो ईश्वर को मानते हो न..उसी पर छोड़ो सब..क्योंकि यही हमारी नियति है...हमारे देश की नियति है..

राजीव मित्तल