बजट-मौत का सौदागर हमसे ज़िंदगी जीने का ब्याज मांगता है...
बजट-मौत का सौदागर हमसे ज़िंदगी जीने का ब्याज मांगता है...
नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीयजनता पार्टी की सरकार के पहले आम बजट पर दिलचस्प प्रतिक्रियाओं का दौर जारी है। फेसबुक पर कुछ टिप्पणियां देखते हैं।
Chanchal Bhu- वरिष्ठ पत्रकार
जब से हमने यह सुना है कि- अब यह सरकार गाँव को शहर बनाएगी,एक अजीब सी सिहरन हो रही है। कभी अपना सिर देखता हूँ कभी भीगी पनही। बहन....हम अकल के अकाल में खड़े हैं ?
Yogesh Yadav -
उत्तर प्रदेश सरकार लैपटॉप बाट रही थी तो तमाम अर्थशास्त्री उसे पैसे की बर्बादी बता रहे थे।
अब ये बताओ गावों में ब्रॉडबैंड के लिए फाइबर ऑप्टिक बिछाने के लिए जो पैसा खर्च होगा उससे लैपटॉप नहीं रहेगा तो क्या थ्रेसर चलेगा ??
अवनीश राय- युवा पत्रकार
.....सोनिया गांधी ने कहा है कि मोदी का बजट यूपीए की नीतियों की कॉपी है। इसमें कुछ भी नया नहीं है। बजट में सिर्फ यूपीए की नीतियों और कार्यक्रमों को दोहराया गया है।.....
सही बात है, यही तो हम भी कह रहे हैं कि यूपीए के बजट में भी कुछ नया नहीं होता था। लेकिन ये नहीं समझ में आ रहा है कि ये बात कह के सोनिया गांधी मोदी का मजाक उड़ा रही हैं या अपना?
Madhuvandutt Chaturvedi- वरिष्ठ अधिवक्ता व ट्रेड यूनियन लीडर
कितने मूर्तिपूजक ऐसे हैं जो आराध्य के आदर्श पर चलते हैं और स्वार्थ आड़े आने पर भी मंदिर की शुचिता बनाये रख सकते हैं ? कथावाचकों या रामलीला मंडली के कितने कलाकार आदर्शों को आत्मसात करते हैं ?
मोदी जी ने संसद की सीढ़ियों पर धोक क्या दे दी, प्रजा जन तो पीछे ही पड़ गए। कभी कहते हैं कि बलात्कार के आरोपी मंत्री को हटाओ। कभी कहते हैं दारू पीकर संसद में महिला सांसद से झगड़ने वाले सांसद को हटाओ। कभी कहते हैं 50 हज़ार की चोरी में करोड़ों की बरामदगी हुई तो नेता को पार्टी से निकल दो। अरे अब तो हद कर दी यार आपने ! कहते हो अध्यक्ष में खोट ही खोट हैं !
भाई सीता हरण या लक्ष्मण मूर्छा की लीला में राम के विलाप पर आप आंसू बहाते हो तो ये आपकी श्रद्धा रही। कलाकार से क्यों सच्चे आंसुओं की आशा करते हो ?
हम मूर्तिपूजक हैं भाई। मूर्तिपूजा के लिए बजट में भी विधान किया है न!
मैं खुश हूँ मेरे आंसुओं पे न जाना !
(भरे पेट वालों के बजट पर बधाइयाँ !)
Narendra Tomar –
इस बजट की तारीफ में ज्यादा से ज्यादा यह कहा जा सकता है कि कुल मिलाकर यह चंद धन्ना सेठों के साथ साथ देश के सिर्फ 15 फीसदी लोगों का बजट है।
Digamber Digamber – वरिष्ठ वामपंथी विचारक
बज़ट पर एक चलताऊ टिप्पणी-
बुरा न मानें, जिन मित्रों की सालाना आय ढाई लाख से अधिक है, उनको बज़ट में उतनी आयकर छूट मिली है जितना 32 रुपया रोज वालों का सालाना आमद-खर्च है। उनको क्या मिला?
बीड़ी का बण्डल आज सुबह से ही 10 रुपये की ज़गह 12 रुपये का हो गया....
दरअसल बात यह है कि कारपोरेट को भी मुखर तबकों में अपना समाजिक अवलम्ब और समर्थन चाहिए....
Sumant Bhattacharya
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ को 100 करोड़ और पटेल की मूर्ति के लिए 200 करोड़। भविष्य पर अतीत भारी...............................
Masaud Akhtar- सामाजिक कार्यकर्ता
वैसे मैं भी इस बजट व सरकार की तारीफ़ व समर्थन करना चाहता हूँ ताकि राष्ट्रवादी व विकास का हिमायती बन सकूँ परन्तु अपनी स्थिति व वर्ग को इसके प्रतिकूल पाता हूँ... काश मैं भी कोई छोटा-मोटा ही सही कोई अम्बानी या अडानी होता तो आज कितना खुश होता और अच्छे दिन के जश्न खत्म न होते ...
Dilip Khan- युवा पत्रकार
सस्ती ख़बरों को महंगे टीवी में कोई क्यों देखे? इसलिए बजट में टीवी सस्ता कर दिया गया है। सस्ती ख़बरें, सस्ता टीवी। सस्ता सब कुछ। सस्ती है ये दुनिया।
Anil Attri- वरिष्ठ पत्रकार
पहले रेल और अब रक्षा क्षेत्र में एफडीआई कम से कम मोदी सरकार या इस देश के लोगों के मंसूबे पूरे करने के लिए तो कतई नहीं है। फिर किसके मंसूबे पूरे करना चाहती है मोदी सरकार? किसकी नजर है भारत के इन दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर? लकदक की इस मृगमरीचिका में कहीं यह देश ही नीलाम न हो जाए।


