बजट - हम “विकास” काम... सूत्र के अनंत आसन का अभ्यास करते रहेंगे बहरहाल
बजट - हम “विकास” काम... सूत्र के अनंत आसन का अभ्यास करते रहेंगे बहरहाल
अभी दुल्हन घूंघट की ओट में हैं।
शाही ताजपोशीमध्ये आर्थिक समीक्षा, सुधार बजट के मोहताज नहीं लेकिन।
हर तरह से अब साफ है कि देश के विकास का एक अकेला रास्ता है, एफडीआई (विदेशी पूँजी निवेश) और प्राइवेटाइजेशन (निजीकरण)
अभी दुल्हन घूँघट की ओट में हैं। मुँहदिखाई की रस्म के साथ गाली गीतों का अलाप जारी है। कल खुलेगा नये सँपेरे का पिटारा। सँपेरों और जादूगरों के देश में तमाशबीन जनता है। हालांकि लोकसभा में विपक्ष ने महंगाई, नेता प्रतिपक्ष जैसे मुद्दों पर खूब शोरशराबा किया। महंगाई के मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ नारे लगाए तो दूसरी ओर संसद के बाहर कांग्रेस ने प्रदर्शन किया। विपक्ष ने सरकार पर जनता से वादाखिलाफी का आरोप लगाया। वहीं बीजेपी ने बढ़ती कीमतों के लिए यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराया।
अच्छे दिनों का सपना दिखाकर सत्ता में आई मोदी सरकार का कल कड़ा इम्तिहान है। एक तरफ करोड़ों उम्मीदों का दबाव है तो दूसरी तरफ खस्ताहाल इकोनॉमी।
आज आए आर्थिक सर्वे में इकोनॉमी की डर्टी पिक्चर ही पेश की गई है।
अब सवाल उठता है कि मोदी के पहले बजट में चौंकाने वाले एलान होंगे या वो दूर की सोच वाला होगा।
वैसे रेल बजट के बाद ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि मोदी बैलेंस्ड बजट पर ही फोकस रखेंगे। कुछ बोल्ड फैसले भी होंगे और कुछ मलहम लगाने का ऐलान।
माना जा रहा है कि बजट में मौजूदा दो लाख के बजाए 2.5 लाख रुपये की आय टैक्स फ्री हो सकती है। टैक्स छूट सीमा को महंगाई दर से जोड़ सकते हैं। 80सी के तहत 1 लाख रुपये की छूट की सीमा बढ़ सकती है। इंफ्रा बॉन्ड को 80सी में शामिल किया जा सकता है। इंफ्रा बॉन्ड में 30,000 रुपये तक के निवेश पर छूट मिल सकती है। होम लोन के ब्याज पर छूट की सीमा बढ़कर 2.5 रुपये लाख संभव है। होम लोन के ब्याज छूट बढ़ाने से सरकार के खर्चे पर दबाव नहीं आएगा।
शाही ताजपोशीमध्ये आर्थिक समीक्षा हो गयी रस्म अदायगी के लिए, सुधार बजट के मोहताज नहीं लेकिन।
गौरतलब है कि धर्मोन्मादी ध्रुवीकरण माध्यमे पूरे देश को गुजरात बनाने के आधार बतौर लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक सीट दिलाकर संघ परिवार का दिल जीतने वाले गुजरात के पूर्व मंत्री अमित शाह को आज पार्टी का नया अध्यक्ष बना दिया गया।
अमित शाह, जावड़ेकर और राममाधव की तिकड़ी के जरिये राजकाज को अंजाम देंगे धर्मयोद्धा नरेंद्र मोदी।
जारी है धर्म युद्ध प्रलयंकर तो जारी है जनसंहारी ग्लोबीकरण कारपोरेट राजनीति के साथ और छिनाल पूंजी छइयां-छइयां बुलेट बूम-बूम है नागपुर और नई दिल्ली के केसरिया एक्सप्रेसवे पर एफडीआई प्राइवेटाइजेशन की बुलेट धूम है।
आर्थिक समीक्षा से पहले रेल बजट ने समां बांध दिया है। जनसंहार समर्थने निनानब्वे फीसद जनगण और गणतंत्र के विरुद्ध मोर्चाबंद है क्रयशक्ति संपन्न एक फीसद सत्ता वर्ग की नस्ली व्चस्ववादी अस्मिता धारक वाहक कारपोरेट राजनीति की जाति स्थाई व्यवस्था।
समीक्षा का यह वैदिकी कर्मकांड संस्कृत कूट मंत्रों से भी कठिन है। ओंग बोंग धूम धड़ाका है आंकड़ों का, संख्याओं और ग्राफिक के स्पेशल एफेक्ट है और अवतार क परिवेश है।
समीक्षा में कहा गया है कि पहले कदम के तौर पर सरकार को मौद्रिक नीति के लिये खाका तैयार कर, राजकोषीय मजबूती और खाद्य बाजार में सुधार लाकर मुद्रास्फीति को नीचे लाना होगा। दूसरे कदम के तौर पर समीक्षा में कर और व्यय क्षेत्र में सुधार पर जोर दिया गया है। इसमें वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करते हुये लोक वित्त को सतत् मजबूती के रास्ते पर लाने को कहा गया है। व्यय क्षेत्र के सुधार में सार्वजनिक वस्तुओं और सब्सिडी कार्यक्रम के लिये नये तौर तरीके अपनाने पर जोर दिया गया है।
समीक्षा के अनुसार बाजार अर्थव्यवस्था के लिये भारत में कानूनी और नियामकीय ढांचे की भी आवश्यकता है। इसके लिये पुराने कानूनों को निरस्त करने और बाजार असफलता के समय स्थिति संभालने के लिये सरकारी क्षमता मजबूत बनाने की आवश्यकता है।
समीक्षा में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक वृद्धि के 5.4 से 5.9% के दायरे में रहने का अनुमान है। इससे पहले लगातार दो वर्ष आर्थिक वृद्धि पांच प्रतिशत से नीचे रही। मीडिया नीति निर्धारण पर खामोश है।
रेल बजट को तो शास्त्रीय तक बता दिया गया है और लंबी रेस के गौड़ा के रेलवे पथ पर पलक पांवड़े बिछा दिये गये हैं। अर्थ और प्रतिरक्षा मंत्रालय का नदी जोड़ो अभियान, प्रतिरक्षा में शत प्रतिशत एफडीआई को न्यूटन के गति नियमों के मुताबिक त्वरा देने के प्रयोजन से है तो भारत अमेरिकी परमाणु संधि के कार्यान्वयन के लिए भी। साथ ही अमेरिका और इजराइल के नेतृत्व में प्रतिरक्षा आंतरिक सुरक्षा के जायनवादी कायाकल्प के लिए भी।
मोदी और अमित शाह के निर्देशन में विनिवेश की तरह किस रिफाइंड ब्रांड के धीमे मारक जहरीला रसायन से ङमारी सांसें चुराने की भोपाल गैस त्रासदी की रचना हो रही है, सिख संहार और बाबरी विध्वंस के रसायन से अनजान आम जनता के लिए कार्निवाल मध्ये मुखौटा नृत्य और कबंधों के सांबा के वातावरण में समझ पाना असंभव है। पढ़े लिखे डिग्रीधारी मलाईदार तबका इस कयामती अर्थव्यवस्था के ज्वालामुखी मुहाने आशियाना बनाये बकरे की अम्मा की खैर मना रहे हैं।
बजट से आर्थिक समीक्षा का सम्बंध जाहिर है उतना होना जरूरी भी नहीं है। संसद के प्रति जिम्मेदार अल्पमत सरकारों ने पिछले तेईस साल में नीति निर्धारण से भारत की संसद और संविधान को अप्रासंगिक बना दिया है।
मसलन जेटली अपने मिशन इंपासिबल को अंजाम देने के लिए आयकर छूट की परिधि पांच लाख कर दें तो सारी सब्सिडी खत्म कर दिये जाने के बाद भी, सारे सरकारी विभागों, सेवाओं और उपक्रमों का विनिवेश कर देने के बाद भी, कर सुधार से आम जनता पर अर्थव्यवस्था का सारा बोझ लादकर पांच लाख छह लाख करोड़ के सालाना करराहत के बजाय एकमुश्त पूंजी को कर मुक्त कर देने, रोजगार और आजीविका प्रत्यक्ष विनिवेश हवाले करने और कृषि की शवयात्रा निकालने के बावजूद क्रिकेट फुटबाल से ग्लोबल हुई यह मलाईदार तबका आह तक नहीं करेगा।
जल जंगल जमान नदी समुंदर और अंतरिक्ष तक को आग के हवाले करने पर भी उसकी आंच मलाईदार गैंडा तबके की घनी गोरियायी फेयर एंड लवली हैंडसम डियोड्रेंट महकी खाल को किसी भी स्तर तक नहीं छुएगी और विडंबना है कि हम इसी तबके की क्रांतिधर्मिता, मुक्ति कामना, गणतांत्रिक अस्मिता स्वतंत्रता पावक चेतना और प्रतिबद्धता पर इस ग्लोबल कयामत से आजादी के लिए दांव लगाये हुए हैं और आम जनता को बुरबकै मानकर उन्हें संबोधित करने का कोई प्रयास अब भी नहीं कर रहे हैं।
मनोरंजन मीडिया के वर्चुअल से... क्स की तो कहिये मत, बाकी कवायद भी आत्मरति तक सीमाबद्ध है। एफडीआई और निजीकरण के मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए राहुल गांधी की खुमारी सेल पर है जैसे वे तरणहार हैं और जैसे वे दस साल तक जैसे जनता का उद्धार कर रहे हैं, उसी तरह इस विपर्यय से भी बचा लेंगे उनके जैसे तमाम अवतार और फरिश्ते और बोधिसत्व।
ईश्वर का कोई वरद पुत्र नहीं है और सरस्वती की सारी संतानें सारस्वत विशुद्ध वैदिकी हैं, जिनके लिए वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति। लेकिन मीडिया का फोकस देखें। पहले भी राहुल पर अहम मसलों पर बहस में हिस्सा नहीं लेने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन इस बार सदन में सोने की तस्वीर कैद होने से उनके विरोधियों को आलोचना का मौका मिल गया है। राहुल को सदन में जम्हाई लेते भी देखा गया।
अमेरिकी विध्वंस के इतिहास के संदर्भ में कई दिनों से धर्म राजनीति और पूंजी के संहारक त्रिभुज का चित्रायन कर रहा हूं। उस त्रिभुज का वृत्त अब तीन सौ साठ है। बीच में नागपुर नई दिल्ली का घना आलंब है और बाकी बचा गुजरात माडल है।
ब्राजील का विलाप लेकिन विश्वकप फाइनल में सात सात गोल हजम करने का कतई नहीं है। चमकदार वैश्विक बंदोबस्त का रंग रोगन धुल जाने के बाद बेपरदा नंगा टाट खुल जाने की रुदाली है वह, जिसके मुखातिब हम अब भी नहीं है।
अब भी महाद्वीपों के आर पार मध्ययुग के धर्मयुद्ध से अविराम जारी ग्लोबीकरण मार्फत विकास के अश्वमेधी विध्वंस के भूगोल इतिहास से हमारा वास्ता नहीं है।
तकनीक, शोध और अंतरिक्ष तलक आविस्कारों और अनुसंधान की धूम, इस ब्रह्मंड की रचना प्रक्रिया की पुनर्रचना के बिग बैंग के बावजूद वैज्ञानिक दृष्टि उपभोग उपकरण, तकनीक संचार माध्यम, कंप्यू रोबो, वीडियो गेम, गेजेट, विजेट, साप्टवेयर टेंप्लेट की आभासी दुनिया तक सीमाबद्ध है। विज्ञान और समाज वास्तव के सरोकार अब अलग-थलग परस्पर विरोधी हैं। डिग्रियां है लेकिन ज्ञान की तरफ पीठ है। ज्ञानपीठ है। अकादमी और संस्थान हैं वर्चस्व और एकाधिकार के, न विवेक है और न साहस। केसरिया अश्वमेधी राजसूय के कर्म कांड के मध्य अपने देश का ब्राजील भी हार रहा है। एकाधिकारी आक्रमण के मुकाबले ब्राजीली रक्षण है ही नहीं कहीं।
बंजरंगियों की अंधी दौड़ में पूंछ उठाने की कवायद में आत्मरक्षा और वजूद की फिक्र ब्राजीली उन्मुक्त सेक्स की कार्निवाली संस्कृति के विरुद्ध है। हम उसी कार्निवाल के मध्य हैं।
ब्राजील का कार्निवाल तिलिस्म को बेनकाब भी करने लगा है। लेकिन हमारे कार्निवाल में तिलिस्म अभी चक्रव्यूह है। आखिर ब्राजीली कार्निवाल के लिए तीस करोड़ कंडोम भारत से ही भेजे गये थे।
कंडोम_संस्कृति में अर्थशास्त्र की चर्चा निषिद्ध है। वैदिकी मंत्र की तरह अबूझ हैं परिभाषाएं, आंकड़े, तत्व और तथ्य। हम विकास काम…सूत्र के अनंत आसन का अभ्यास करते रहेंगे बहरहाल।
दुल्हन का घूँघट उठाये बिना सुहागरात से पहले भागे दूल्हों के हवाले है राजकाज और दुल्हन अभी भी घूँघट में हैं सिर्फ हवाओं में कं... डोम गुब्बारे हैं सुगंधित। इसी के मध्य बजट और उससे पहले आर्थिक समीक्षा के कर्मकांड अबूझ। विकास दर की यह भविष्यवाणी का खुलासा उसी तरह नहीं हुआ है जैसे कि 63 करोड़ की लागत से पूर देश को बुलेट हीरक चतुर्भुज बनाकर निजी और विदेशी निवेश,विनिवेश और बेसरकारी करणसे भारत के कायाकल्प का असली बनिया कार्यक्रम का खुलासा नहीं किया गया है। इसी के साथ महंगाई चिंता का विषय बना रहेगा।
रेलभाड़ा और तेल गैस बिजली की कीमतें विनियंत्रित करके बाजार और समाज को छुट्टा सांढ़ों के हवाला करके विकास दर, मुद्रा स्फीति, वित्तीय घाटा, भुगतान संतुलन पर नियंत्रण की अबाध पूंजी करिश्मा के मुखातिब होकर बाजारों में पल पल झुलस रही निनानब्वे फीसद के लिए इस रहस्य का खुलासा जाहिर है कभी होना नहीं है।
(पलाश जी का यह लेख मूलतः July 9,2014 को प्रकाशित हुआ था।)
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