बड़े जन आंदोलन की जमीन तैयार हो रही
जन आन्‍दोलनों का राष्‍ट्रीय समन्‍वय के 11वें राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन का आखिरी दिन
पटना, 5 दिसम्‍बर।
इस वक्‍त मुल्‍क में एक बड़े जन आंदोलन की जमीन तैयार हो रही है। जनता के हक की बात करने वाली राजनीतिक पार्टियों और जन आंदोलनों के बीच बेहतर संवाद के बिना बदलाव मुमकिन नहीं है। इसके लिए चुनाव में सुधार करना होगा। हर स्‍तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ानी होगी। अभिव्‍यक्ति की आजादी पर हो रहे हमलों को रोकने के लिए एकजुट होना होगा।
ये बातें रविवार को पटना के अंजुमन इस्‍लामिया हॉल में आयोजित जन आन्‍दोलनों का राष्‍ट्रीय समन्‍वय के 11वें राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन के तीसरे और आखिरी दिन आयोजित राजनीतिक दल और जन आंदोलनों के बीच समन्‍वय पर आयोजित परिचर्चा में उभर कर आई।

मुल्‍क में बड़े जन आंदोलन की जमीन तैयार हो रही है: मेधा
सम्‍मेलन के आखिरी दिन मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने कहा कि छात्र और दलित आंदोलन के लोगों के जुड़ने से हमारा आंदोलन का सैद्धांतिक दायरा और व्‍यापक हो गया है। इस चुनौती भरे समय में ढेर सारे समन्‍वय एक साथ जुड़ रहे हैं। यह उम्‍मीद जगाता है कि इस मुल्‍क में एक बड़ा जन आंदोलन खड़ा हो सकता है।
उन्होंने कहा कि ऐसे माहौल में जब चारों ओर से अभिव्‍यक्ति की आजादी पर हमले हो रहे हैं, जन सांस्‍कृतिक आंदोलन एक नई राह दिखाने का काम कर रहा है। दलीय राजनीति करने वालों को पर हम अपने आंदोलन के जरिए ज्‍यादा जनपक्षीय होने पर जोर दे सकते हैं।
सुश्री मेधा पाटकर ने कहा कि जन आंदोलन जिस निडरता के साथ जाति या कश्‍मीर का सवाल उठाते हैं, हमें उम्‍मीद है कि राजनीतिक दल इससे प्रेरणा लेंगे और हम साथ मिल कर इस मुल्‍क को बेहतर बनाने की लड़ाई लड़ेंगे। तभी हम सब एक वैकल्पिक जन हित वाले विकास के लिए काम कर पाएंगे।

संवाद के दरवाजे खुले रहने चाहिए : केसी त्‍यागी
जनता दल (यूनाइटेड) के सांसद और प्रवक्‍ता केसी त्‍यागी ने देश की मौजूदा आर्थिक नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि अमीरी गरीबी के बीच खाई बढ़ती जा रही है। बुदेलखंड से बड़े पैमाने पर पलायन देखने को मिल रहा है। छोटी छोटी सी बात पर देश का साम्‍प्रदायिक माहौल खराब करने की कोशिश की जा रही है।
उन्‍होंने कहा कि हमें अपने संघर्ष को वर्ग के दायरे से आगे निकालकर अस्मिताओं के दायरे तक बढ़ाना होगा। हमें अपने आंदोलन में हर तरह के अल्‍पसंख्‍यकों और हाशिए पर ढकेल दिए गए लोगों को शामिल करना होगा। उन्‍होंने कहा कि जन पक्षीय पार्टियों और जन आंदोलन के बीच लगातार संवाद के दरवाजे खुले रहने चाहिए।

प्रगतिशील ताकतें एकजुट हों: शमीम फैजी
भारतीय कम्‍युनिस्‍ट पार्टी (भाकपा) के केन्‍द्रीय सचिव मंडल के सदस्‍य शमीम फैजी ने सभी तरह की प्रगतिशील प्रगतिशील और वामपंथी ताकतों की एकजुटता पर जोर दिया।
उन्‍होंने कहा कि जहां जहां यह ताकतें एक हुईं उन पर हमले भी तेज हुए हैं लेकिन उसका व्‍यापक सामाजिक राजनीतिक असर भी देखने को मिला है। शमीम फैजी ने कहा कि आज हमले ज्‍यादा खुले रूप में हो रहे हैं, यह खतरनाक प्रवृति है।
आज तो संविधान बचाने की जरूरत: अवधेश
मार्क्‍सवादी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी (माकपा) के अवधेश कुमार ने चुनाव सुधार और भूमि सुधार का मुद्दा उठाया। उन्‍होंने कहा कि इसके बिना मूलभूत सुधार मुमकिन नही है। आज सबसे बड़ी चुनौती संविधान को बचाने की है। हमें देश बचाओ, संविधान बचाओ का नारा देना चाहिए।

झारखण्‍ड और केन्‍द्र सरकार आदिवासी विरोधी: दयामनी
झारखण्‍ड की मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला ने कहा कि हम आंदोलन करने वाले तो साथ में हैं। इसलिए सबसे पहले अपने को जन पक्षीय कहने वाली पार्टियों को एक मंच पर आना चाहिए। तब ही हम बेहतर तरीके से संवाद कर सकते हैं। उन्‍होंने झारखण्‍ड और केन्‍द्र की भाजपा सरकारों को आदिवासी विरोधी और जन विरोधी बताया।
दयामनी का कहना था कि जल-जंगल जमीन और देश बचाने के लिए न सिर्फ झारखण्‍ड से बल्कि पूरे देश से भाजपा को हराना जरूरी है। उन्‍होंने चुनाव में भाजपा को पराजित करने के लिए बिहार की जनता को बधाई दी और कहा कि यहां के लोगों ने देश को मजबूत राह दिखाई है। उन्‍होंने कहा कि झारखण्‍ड में आदिवासियों की जमीन को छीनने की कोशिश का हम पुरजोर विरोध कर रहे हैं और आगे भी करेंगे।
हम बदलाव की राजनीति करते हैं: सुनीलम
एनएपीएम के सुनीलम ने कहा कि हम बदलाव की राजनीति में यकीन रखते हैं। जन आंदोलनों और राजनीतिक दलों को परस्‍पर संवाद करना होगा तब ही बदलाव आएगा। हम सिर्फ सरकारों में बदलाव में यकीन नहीं रखते हैं बल्कि हम सामाजिक –राजनीतिक व्‍यवस्‍था के मूलभूत ढांचे में बदलाव में यकीन रखते हैं।
इनके अलावा इस मौके पर एनएपीएम मधुरेश, जद (यू) की अंजुम आरा, पास्‍को संघर्ष की अगुआ मनोरमा, आशीष रंजन और महेन्‍द्र ने भी सम्‍बोधित किया।

नोटबंदी के खिलाफ जन जागरूकता अभियान
एनएपीएम के सम्‍मेलन के आखिरी दिन आगे के लिए कई कार्यक्रम तय हुए हैं। इसमें सबसे ऊपर नोटबंदी का मसला है। एनपीएम पूरे देश में नोटबंदी पर जन सुनवाई करने जा रहा है। इसके जरिए लोगों के बीच नोटबंदी के असर के बारे में जनजागरूकता अभियान चलाया जाएगा।
इसके अलावा कश्‍मीर से कन्‍याकुमारी तक छात्रों के साथ शांति अभियान, वन अधिकार और भूमि अधिकार के लिए अभियान, नर्मदा यात्रा, ट्रांसजेण्‍डर के अधिकारों के लिए राष्‍ट्रीय परिसंवाद, बेरोजगारी के खिलाफ आंदोलन समेत कई मुद्दों पर अगले साल कार्यक्रम की योजना है।
नई संयोजक टीम का चुनाव
रविवार को सम्‍मेलन के आखिरी दिन जन आंदोलनों का राष्‍ट्रीय समन्‍वय की नई संयोजक टीम का चुनाव हुआ। नई टीम में बिहार से आशीष रंजन, डोरथी फर्नांडिस, महेन्‍द्र यादव, केरल से वी. वेणुगोपाल, विजय राघवन, दिल्‍ली से नानु प्रसाद, फैसल खान, झारखण्‍ड से दयामनी बारला, उड़ीसा से लिंगराज आजाद, बंगाल से अमिताभ मित्रा, गुजरात से कृष्‍णकांत, महाराष्‍ट्र से सुहास कोल्‍हेकर, राजस्‍थान से कैलाश मीणा, उत्‍तर प्रदेश से रिचा सिंह, विमल भाई, डॉक्‍टर सुनीलम, मधुरेश और मीरा विशेष आमंत्रित में कविता श्रीवास्‍तव, अंजलि, अरुंधति धुरु, कला दास शामिल हैं।
मेधा पाटकर वरिष्‍ठ सलाहकार की भूमिका में रहेंगेी।