बढ़ती ऑनलाइन महिला हिंसा बन रही चुनौती
आपकी नज़र | हस्तक्षेप मैनोस्फीयर समूहों द्वारा उपयोग की जाने वाली भ्रांतियाँ पितृसत्ता और महिलाओं के खिलाफ हिंसा और शत्रुता को सही मानती हैं। ये समूह पीड़ितों को दोष देने, बलात्कार संबंधी चुटकुले, नारीवादियों के खिलाफ हमलों को उचित ठहराने का प्रचार करते हैं

Increasing online violence against women is becoming a challenge
आज के समय में अनेक मानवीय संपर्क, ऑनलाइन स्थानों पर हो रहे हैं। जैसे-जैसे इंटरनेट और मोबाइल प्रौद्योगिकियाँ, तथा सोशल मीडिया हमें सुलभ होते जा रहे हैं, हमारे वास्तविक जीवन की कई गतिविधियाँ यहीं होने लगी हैं। हम में से बहुत से लोग अपने घरों से बाहर निकले बिना भी राय साझा करने, विचारों का आदान-प्रदान करने, अपना ज्ञान बढ़ाने और मनोरंजन खोजने के लिए वर्चुअल / ऑनलाइन ज़रियों को सुरक्षित और सुविधाजनक पाते हैं।
परंतु पितृसत्तात्मक व्यवस्था इन स्थानों पर भी अपना जाल फैला रही है, और ये ऑनलाइन सोशल मीडिया कई लोगों के लिए खतरनाक और असुरक्षित होते जा रहे हैं - विशेषकर महिलाओं, लड़कियों और हाशिए पर रह रहे अन्य समुदायों के लिए।
ब्लैकमेल के इरादे से अपमानजनक और अश्लील संदेश भेजने तथा अश्लील वीडियो और आपत्तिजनक तस्वीरें पोस्ट करने से लेकर, फर्जी फोटो और वीडियो सहित व्यक्तिगत जानकारी का अनधिकृत उपयोग, धमकियां जारी करना, उन महिलाओं को ट्रोल करना जो समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक व्यवस्था पर सवाल उठाने की हिम्मत करती हैं - महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ प्रौद्योगिकी संचालित ऑनलाइन हिंसा ने असंख्य रूप ले लिए हैं।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ऑनलाइन सार्वजनिक क्षेत्र (online public area) अपने ऑफ़लाइन समकक्ष की तरह ही वास्तविक और प्रभावशाली है और ऑनलाइन लिंग आधारित हिंसा का प्रभाव (Impact of online gender-based violence) तेजी से ऑफ़लाइन स्थानों पर भी फैल रहा है- कभी-कभी गंभीर परिणामों के साथ। व्यक्तिगत दुर्व्यवहार और ऑनलाइन लिंग आधारित हिंसा के बीच सह संबंधों को कई अध्ययनों के माध्यम से प्रलेखित किया गया है। महिलाओं के खिलाफ ऑनलाइन हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा हाल ही में किए गए एक वैश्विक सर्वेक्षण में 73% महिला पत्रकारों ने बताया कि उन्होंने ऑनलाइन हिंसा को झेला है और 20% ने कहा कि इस ऑनलाइन हिंसा के परिणाम स्वरूप उन्हें वास्तविक हमले का भी सामना करना पड़ा था। शीर्ष अपराधियों में गुमनाम लोग (57%), सरकारी अधिकारी (14%), और सहकर्मी (14%), और राजनीतिक दल (10%) शामिल थे।
एशिया-प्रशांत के लिए संयुक्त राष्ट्र महिला क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा 'वर्चुअल स्पेस में लैंगिक समानता और नारीवाद के विरोध को समझने' पर जारी एक शोध अध्ययन से पता चलता है कि विभिन्न पुरुष समूह सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर नारीवाद और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ ऑनलाइन हमले कर रहे हैं। अध्ययन में विशेष रूप से फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब प्लेटफार्मों पर पोस्ट की गई नारीवाद-विरोधी और लैंगिक समानता-विरोधी सामग्री को शामिल किया गया, जिसका उपयोग भारत, बांग्लादेश और फिलीपींस में लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकारों का विरोध करने के लिए किया जा रहा है।
ऑनलाइन “मैनोस्फीयर” की झूठी कथाएँ (False narratives of the online “manosphere”)
विश्लेषण में पाया गया कि पुरुषों के ये समूह- जिनको को आमतौर पर ऑनलाइन “मैनोस्फीयर" कहा जाता है- कई प्रकार के आख्यानों और युक्तियों का उपयोग करते हैं जो नारीवाद पर हमला करते हैं, पुरुषों के मुद्दों को बढ़ावा देते हैं और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं को कमजोर करते हैं। उनके द्वारा फैलाई गई झूठी कहानियाँ पुरुषों को लैंगिक समानता के शिकार के रूप में चित्रित करती हैं और धर्म, संस्कृति और राजनीतिक विचारधाराओं के बहाने स्त्रीद्वेष को उचित ठहराती हैं।
इन देशों में मैनोस्फीयर समूहों द्वारा उपयोग की जाने वाली भ्रांतियाँ पितृसत्ता और महिलाओं के खिलाफ हिंसा और शत्रुता को सही मानती हैं। ये समूह पीड़ितों को दोष देने, बलात्कार संबंधी चुटकुले, नारीवादियों के खिलाफ हमलों को उचित ठहराने का प्रचार करते हैं, और उन राजनीतिक नेताओं का अनुमोदन करते हैं जो लिंगवाद और महिला हिंसा को मंजूरी देते हैं। वे धार्मिक ग्रंथों और धार्मिक नेताओं के उपदेशों के अंश साझा करते हुए इस प्रचार में लगे रहते हैं कि कैसे लैंगिक समानता ने महिलाओं को भटका दिया है और विवाह, परिवार और मातृत्व जैसी पारंपरिक संस्थाओं को कलंकित किया है।
भारत से उदाहरण
भारत विश्व के सबसे बड़े इंटरनेट-सक्षम देशों में से एक है, जहां सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की अनुमानित संख्या 2025 तक 90 करोड़ हो जाएगी । वर्तमान में 5.19 करोड़ भारतीय सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। वैश्विक स्तर पर फेसबुक के सर्वाधिक 2.80 करोड़ उपयोगकर्ता भी इसी देश में हैं। यहाँ मैनोस्फीयर समूहों के ज़रिये "फेमिनाज़ी" और "पुरुष महिलाओं से बेहतर क्यों हैं" जैसे विषयों में लोगों की रुचि बढ़ी है। उनकी सामग्री लोगों को आकर्षित करने के लिए स्थानीय भाषाओं में अपशब्दों, "नकली नारीवादियों", वायरल सेलिब्रिटी नामों और हैशटैगों का उपयोग करती है।
भारत के मैनोस्फीयर में आधे से अधिक पोस्टों का दावा है कि पुरुष लैंगिक समानता का शिकार हो गए हैं। इनमें से कुछ समूह हमारे पुरुष प्रधान समाज में प्रचलित धार्मिक मान्यताओं के चलते एक "अच्छी महिला” के उन कथित गुणों का प्रचार करते हैं जो लिंग-असमानता को बढ़ावा देते हैं।
‘सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन’ के एक फेसबुक पेज का उद्देश्य लिंग-अनुकूल कानूनों से लड़ना है। उदाहरण के लिए, इस पेज पर साझा किया गया एक मीम उन महिलाओं को बदनाम करता है जो अपने मौलिक अधिकारों को प्राप्त करने के लिए कानून का सहारा लेती हैं। मीम के कैच फ्रेज़ में महिलाओं से निम्नलिखित दो प्रश्न पूछे जाते हैं: क्या आप अपने पति से अधिक पैसा कमाती हैं? क्या आप इस तथ्य को अदालत में छिपाती हैं?
मीम इस संदेश के साथ समाप्त होता है: "हम पुरुषों को इन महिलाओं से कोर्ट में भावुक नाटक करना सीखना चाहिए।”
यह कथन महिलाओं पर यह झूठा आरोप तो लगाता ही है कि वे जज से सहानुभूति हासिल करने के लिए नाटकीय दलीलों का उपयोग करती हैं, साथ ही यह न्यायिक प्रक्रिया को भी बदनाम करता है और संशय पैदा करता है।
बांग्लादेश और फिलीपींस में भी मैनोस्फीयर में कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ रही है। "पुरुष अधिकार कार्यकर्ता", “महिलाओं का संबंध रसोई से हैं", और "नारीवाद समाज को नष्ट कर देता है" जैसे विषय और महिला हस्तियों और पत्रकारों को बदनाम करने वाले पोस्ट तेजी से आम होते जा रहे हैं। ये सभी पोस्ट लिंग आधारित भेदभाव तथा महिलाओं के प्रति घृणा और द्वेष से लिप्त हैं।
आगे का रास्ता
ऑनलाइन लिंग आधारित हिंसा में वृद्धि और इसके विनाशकारी प्रभावों के बावजूद, अधिकारियों द्वारा अक्सर उचित दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाती है। और ये अक्सर महत्वहीन बन जाती हैं। इसका एक कारण यह भी है कि ऑनलाइन लिंग आधारित हिंसा से जुड़े तीव्र मानसिक और भावनात्मक आघात के कोई प्रत्यक्ष निशान नहीं होते हैं।अत: इन पर किसी का ध्यान नहीं जाता है, जबकि ये पीड़िता के मानस पटल पर अमिट घाव छोड़ते हैं। संयुक्त राष्ट्र अध्ययन में भाग लेने वाली 26% महिला पत्रकारों ने गंभीर मानसिक प्रभाव झेलने की बात कही थी, जबकि 4% ने ऑनलाइन हिंसा के परिणामस्वरूप अपनी नौकरी तक छोड़ दी थी। और यह तो इस विकराल समस्या की एक झलक मात्र है।
लैंगिक समानता के इस ऑनलाइन विरोध को समझने और इससे होने वाली हिंसा को रोकने के लिए प्रभावी रणनीति विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है। एक भारतीय अध्ययन के अनुसार देश में कानूनों का मौजूदा ढांचा डिजिटल क्षेत्र में होने वाली हिंसा की जीवंत वास्तविकताओं को पर्याप्तरूप से संबोधित करने के लिए अपर्याप्त है। इस अध्ययन के लेखकों का मानना है कि महिलाओं के लिए ऑनलाइन स्थानों को सुरक्षित बनाने के लिए, सरकारों को कानून और अपनी नीतियों की समीक्षा करके उनमें आवश्यक सुधार करने चाहिए ताकि लोगों को ऑनलाइन लिंग आधारित हिंसा से बचाया जा सके।
यह अवलोकन अन्य देशों के लिए भी प्रासंगिक है। हमें उन प्रतिगामी सामाजिक मानदंडों से निपटना होगा जो आज भी कई देशों की न्यायिक प्रणालियों में मौजूद हैं। इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि महिलाओं के लिए ऑनलाइन स्थानों को सुरक्षित बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी बदलाव लाया जाए (जिसमें ऑनलाइन स्त्री-द्वेष और हिंसा को एक अपराध घोषित करना भी शामिल है); ऑनलाइन उत्पीड़न की शिकायतों को प्रभावी रूप से निपटाने के लिए पुलिस और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को प्रशिक्षित किया जाये; तथा प्रतिक्रिया सेवाओं को उत्तरजीवी-केंद्रित बनाया जाये।
निजी क्षेत्र की कंपनियों और ऑनलाइन प्लेटफार्मों को महिलाओं और हाशिए पर रह रहे अन्य लोगों के खिलाफ ऑनलाइन खतरों, हानिकारक सामग्री और दुर्व्यवहार की पहचान करने, रोकने और हटाने की भी आवश्यकता है।
इस वर्ष, ‘लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ 16 दिन का अभियान’ (जो हर वर्ष २५ नवंबर से १० दिसंबर तक मनाया जाता है) के अन्तर्गत संयुक्त राष्ट्र संघ ने 'यूनाइट' थीम के तहत महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए निवेश करने का अनुरोध किया है।
#NoExcuse हैशटैग को एक नारे के रूप में उपयोग करके, यह अभियान महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए विभिन्न रोकथाम रणनीतियों के वित्तपोषण और सामाजिक मानदंडों को बदलने का आह्वान करता है।
There is #NoExcuse for gender-based violence.
Yet, 1 in 3 women experience violence throughout their lifetime.
Violence against women and girls is the most pervasive #HumanRights violation worldwide.https://t.co/ihudQJakkj#16Days #HumanRightsDay #StandUp4HumanRights pic.twitter.com/j1cphejj2K
— UN Women (@UN_Women) December 10, 2023
इस वैश्विक अभियान के अनुरूप, संयुक्त राष्ट्र महिला टर्की का #NoExcuse अभियान सुरक्षात्मक कानूनी ढाँचों के महत्व को रेखांकित करता है और ऑनलाइन लिंग आधारित हिंसा सहित महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा को रोकने के लिए बनाये गये कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन का आह्वान करता है।
शोभा शुक्ला
(शोभा शुक्ला, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) की संस्थापिका-संपादिका हैं, नारीवादी कार्यकर्ता हैं, और लोरेटो कॉन्वेंट कॉलेज की भौतिक विज्ञान की वरिष्ठ सेवानिवृत्त शिक्षिका हैं)
Women’s and girls rights matter. Don’t allow your voice to be silenced! #NoExcuse #16DaysOfActivism #WomensRightsAreHumanRights #SexNotGender pic.twitter.com/t8yX7slmvv
— Evidence Based Treatment (@DoNoHarm79) December 4, 2023
"We need to remember that violence against women is not inevitable. You can prevent it."
— @unwomengeneva Director @OsnatLubrani says NO to violence against women & girls. Raise your voice too! ⤵️#NoExcuse #OrangeGeneva #OrangeTheWorld #16DaysOfActivism pic.twitter.com/RpR6gOD6yE
— United Nations Geneva (@UNGeneva) December 9, 2023


