बाबा राम रहीम प्रकरण पर युवा भारत अखिल भारतीय संयोजन समिति का वक्तव्य

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम को सुनाई गयी २० साल सश्रम कारावास की सजा का युवा भारत संगठन स्वागत करता है। बलात्कार के लिए बाबा को सजा सुनाया जाना एक अहम घटना है। बाबा के विरोध में लड़ाई खड़ी करने वाली साध्वी बहनों एवं रामचंद्र छत्रपति जैसे साथियों के संघर्ष को संगठन सलाम करता है।

राम रहीम प्रकरण पर हरियाणा एवं केंद्र सरकार के प्रमुखों द्वारा लिए गए दब्बू रवैये की हम कड़े शब्दों में निंदा करते हैं।

बलात्कारियों के लिए फांसी की सजा की मांग करने वाले बहुतायत लोग इस दौरान चुप रहे इसे हम चिंताजनक मानते है। फांसी की सजा के हम सख्त विरोधी है। आँख के बदले आँख के न्याय से दुनिया अंधी हो जायेगी। किंतु फासी की सजा के हिमायती लोगो का जो निर्भया प्रकरण के बाद मुखर थे उन्हे राम रहीम प्रकरण में साध्वीयो एवं रामचंद्र छत्रपती के साथ खडे होकर संगठित होकर अभियान चलाने की आवश्यकता थी। हमारे समाज में घटना विशेष के बारे में ही प्रतिक्रिया देने का जो नया चलन आया है वह भी चिंता का विषय है।

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को अदालत द्वारा हिरासत में लिए जाने का आदेश देने के उपरांत पंचकुला में भड़की हिंसा एवं उसके भड़कने का अंदेशा होने के बावजूद उसको रोकने की नाकामी के लिए केंद्र एवं हरियाणा राज्य की सरकारे जिम्मेवार ही नही, दंगे को सुलगते रहने देने हेतु कुसूरवार भी हैं। दंगों का तय समय में भड़कना एवं शांत होना संशयास्पद ही है।

बाबा राम रहीम का सत्तापक्ष एवं विरोधी पक्ष के राजनीतिक दलों के साथ सियासी गठजोड़ रहा है। बाबा के सबंध में ठोस भूमिका लेने की सूरत में सियासी गठजोड़ गडबड़ाने के भय-स्वार्थ से उन्होने यह सब घटित होने दिया है।

बीते २०-२५ सालो में खासकर आर्थिक नवउदारवाद के दौर में, नये-पुराने मठ, डेरे, बाबाओ का विस्तार हुआ है। पंजाब-हरियाणा में मुख्य धर्म-संस्थानों के अलावा लगभग 9000 डेरे है। पूरे देश में गिनती की जाय तो इनकी संख्या लाख से भी अधिक हो सकती है।

पहले कई तरह के सामाजिक-सांस्कृतिक सुधारों की मुहिम चला करती थी लेकिन अब सभी जगह मजहबी अभिनयपरकता का विशाल वैभव है। ये संस्थान व्यक्ति को वैभव के साम्राज्य की आराधना में संलग्न कर भक्तो के बीच भोगवाद का प्रचार करते है। प्रवचन के साथ-साथ दवा, दैनंदिन उपयोग एवं उपभोग की वस्तू, ऑडीओ-विडीओ कॅसेटस आदी का कारोबार भी खडे किये हुए है। आर्थिक नीतियों तथा सामाजिक उपेक्षा के शिकार लोग इन बाबाओं की शरण लेते हैं। कल्याणकारी राज्य के पीछे हटने की सूरत में समाज में उपेक्षित वर्ग की तादात बढ रही है। ऐसे में मसीहा बने यह बाबा पूंजीवादी नीतियों से निर्मित अलगाव के अवकाश को पाटकर जनता का अराजनीतिकरण कर उनका ध्यान उनकी माली हालात के लिए जिम्मेवार अर्थ-राजनीतिक-सामाजिक कारनो से भटकाने का काम कर रहे है।

यह बाबा राजनेताओ सें साठगाँठ कर अपने स्वतंत्र राज्य जैसी समानांतर सत्ता कायम कर लेते हैं। इनके पास अपनी पुलिस-फौज बनती जाती है। जो अंधानुयायी इनके यहाँ आते हैं वे चूंकि वोटर भी होते हैं इसलिए सत्ताखोर नेता इनका संरक्षण प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं। इन भक्तों की भीड़ के सहारे चुनाव भी जीते जा सकते हैं तथा समुदाय विशेष के बीच में दहशत निर्माण के लिए भी इनका उपयोग किया जाता रहा है। राजसी प्रभाव फैलता और बढ़ता जाता है जो इसके आड़े आने का साहस दिखाता है उसे ये आसानी से रास्ते से हटाना जानते हैं।

ऐसे ही एक बाबा अपनी समानान्तर शक्ति की बदौलत देश के बड़े सूबे का मुख्यमंत्री बन बैठा है।

डेरा सच्चा सौदा, कबीरपंथ, नाथपंथ आदी मूलरूप से समतावादी पंथ जोकी हिंदू धर्म के मोनोलिथ के विरोध में खडे है उनपर ऐसे पाखंडी, बलात्कारी बाबाओ का कब्जा हो जाने की वजह से वर्तमान समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा सत्ताधारी जमाते इन धाराओं के लोगों को समुदाय विशेष के विरोध में गोलबंद कर सामाजिक फासीवाद के ब्राह्मणी संस्करण के निर्माण में लगी हैं। इन पंथों को भोगवादी, स्त्री विरोधी, पितृसत्ता समर्थक बुनियाद के आधार पर ढाला जा रहा है। इन बाबाओं के वक्तव्यों से साक्षी महाराज आदि एवं योगी आदित्यनाथ की अधिकारिक वेबसाईट पर छपे उनके लेखो के आधार पर देखा जा सकता है। लोकतंत्र के भीडतंत्र में तब्दील होने एवं उसकी चालक स्त्रीविरोधी, जातिवादी, सांप्रदायिक विचारधारा के विरोध में हमे एकजुट होकर संघर्ष चलाने की जरूरत है।

एक तरफ भ्रष्ट, बलात्कारी, विलासी बाबाओ की संपत्ति जब्त कर उन पर मुकदमा चलाने का अभियान सभी प्रगतिशील समूहों को चलाना होगा। दूसरी तरफ समता को मानने वाले पंथों, डेरों को स्त्री-पुरुष समानता, उपभोक्तावाद का विरोध के आधार पर जोड़कर व्यापक जनता के बीच सामाजिक फासीवाद के विरोध का प्रबोधन अभियान चलाना पडेगा जो लोकतांत्रिक मुल्यो की पुनर्स्थापना की नींव के रूप में आगे बढ़े।

महाराष्ट्र में वारकरी, महानुभाव, लिंगायत, बौद्ध, इस्लाम धर्म अनुयायी एवं महंतो के द्वारा ४-५ साल पहले सर्वधर्मीय सर्वपंथीय सामाजिक परिषद का गठन इस दिशा में किया गया एक महत्त्वपूर्ण प्रयास रहा है। ऐसे और भी प्रयासों को आगे बढ़ाने की आज आवश्यकता है।

अखिल भारतीय संयोजन समिति

युवा भारत