लालजी निर्मल

बसपा में अम्बेडकरी मिशन का आखिरी सितारा भी मायावती जी को छोड़ चला।

संसदीय इतिहास की यह अद्भुत घटना है। किसी प्रतिस्थापित राजनैतिक दल का राष्ट्रीय महासचिव और विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष का सभी पदों से यह कह कर त्यागपत्र दे कि पार्टी सुप्रीमो न केवल टिकट के लिए भारी धनराशि लेती हैं, वरन वे अम्बेडकरी मिशन से अनंत दूरी बना चुकी हैं।
निश्चित रूप से सामान्य घटना नहीं है। इसके दूरगामी परिणाम होंगे।
निशाने पर तो स्वामीजी तभी से थे जब अम्बेडकर टुडे पत्रिका, जिसके वे संरक्षक थे, के द्वारा पेरियार रामासामी नायकर पर एक विशेषांक निकाला गया था और जिसे देख कर सतीशचन्द्र मिश्र आगबबूला हो गये थे। फलतः उस अंक की सारी प्रतियाँ जब्त कर ली गईं थीं। पत्रिका को बंद करा कर उसके सम्पादक के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया गया था।

पिछले वर्ष जब कर्पूरी ठाकुर के जन्मदिवस समारोह में स्वामीजी ने गणेश को गोबर गणेश बोला और डा. अम्बेडकर की 22 प्रतिज्ञाओं को पढ़ा, तब भी वे निशाने पर आ गये थे और मायावती जी ने स्वामीजी के बयान से पाला झाड लिया था।

स्वामीजी पूर्व मुख्यमंत्री के माल एवन्यू स्थित आवास में गणेश प्रतिमा की स्थापना से भी क्षुब्ध थे। पार्टी का बहुजन से सर्वजन में परिणिति और टिकटों के बंटवारे में धन उगाही से भी वे खिन्न थे।

स्वामीजी के बारे में मायावती जी का यह कथन कि बेटे बेटी के टिकट को लेकर उसने पार्टी छोड़ी, किसी के समझ से परे है। स्वामीजी तो नेता प्रति पक्ष थे और कैबिनेट मंत्री का दर्जा उन्हें प्राप्त था।... और बेटे बेटी तथा बीबियों को टिकट दिला कर चुनाव लड़ाने वाले तो वहां कई दर्जनों हैं।

कुल मिला कर मान्यवर कांशीराम जी द्वारा स्थापित पार्टी से एक-एक कर मिशन के लोगों का पार्टी से बाहर जाना पार्टी में सतीश चन्द्र मिश्र की हनक और मजबूत पकड़ को दर्शाता है। अभी तक तो इस पार्टी की टहनियां टूटती थीं, लेकिन अबकी बार जड़ें हिल चुकी हैं। मुश्किल यह है कि पार्टी में न तो कोई सेकेण्ड लीडरशिप है और न ही लोकतंत्र और न कोई समीक्षा ,फलतः 2017 पार्श्व में जाता नजर आ रहा है।

लाल जी निर्मल दलित चिंतक व अंबेडकर महासभा के अध्यक्ष हैं, उनकी फेसबुक टाइमलाइन से साभार