पिछले आम चुनाव में विजय हासिल करने के बाद से भाजपा का चुनावी मुकाबलों में प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा है। आम चुनाव के बाद हुये उपचुनावों में पार्टी को करारी मात खानी पड़ी है। बिहार में भाजपा को परास्त करने में लालू-नीतीश मॉडल काम आया। उत्तरप्रदेश में उपचुनाव में क्या इस मॉडल को राज्य की राजनैतिक पार्टियां अपना सकीं हैं, यह प्रश्न अभी अनुत्तरित है। भाजपा ने उत्तरप्रदेश में चुनावी विजय हासिल करने के लिए अपने पुराने हथियार-विभाजनकारी राजनीति-का जमकर इस्तेमाल किया। योगी आदित्यनाथ जहर उगलते पूरे प्रदेश में घूमे। इसके साथ ही, ‘लव जिहाद’ के नाम पर ढेर सारी अफवाहें और झूठ फैलाये गये।

भाजपा की विभाजनकारी राजनीति के इस सीजन की शुरूआत, लोकसभा में योगी आदित्यनाथ के भड़काऊ भाषण से हुई। उन्होंने अपने भाषण में सांप्रदायिक दंगों के लिए मुसलमानों और केवल मुसलमानों को दोषी ठहराया। आगे भी वे इसी तर्ज पर बातें करते रहे। उन्होंने इस आशय के निराधार आरोप लगाये कि जिस इलाके में मुसलमानों की आबादी जितनी ज्यादा होती है वहां उतना ही तनाव और हिंसा होती है।

उन्होंने कहा कि मुसलमान, हिंसा की शुरूआत करते हैं और बाद में इसका फल भी भोगते हैं। भारत में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं की व्यापक जांचें और विश्लेषण हुये हैं और इनके नतीजे, योगी आदित्यनाथ के आरोपों को झुठलाते हैं।

लव जिहाद की तरफ इशारा करते हुए आदित्यनाथ ने कहा कि अगर ‘‘वे एक हिंदू लड़की को मुसलमान बनायेंगे तो हम सौ मुस्लिम लड़कियों को हिंदू बनायेंगे।’’

योगी आदित्यनाथ लगातार नफरत फैलाने वाली बातें कह रहे हैं और यह तब, जबकि प्रधानमंत्री ने यह कहा है कि देश में हिंसा पर 10 साल तक पूर्ण रोक लगनी चाहिए।

आरएसएस-भाजपा गठबंधन को मानो लव जिहाद के नाम पर सोने की खान हाथ लग गई है। लव जिहाद को मुद्दा बनाने से उन्हें दोहरा लाभ हुआ है। जब वे यह कहते हैं कि मुस्लिम लड़कों को हिंदू लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है तो एक ओर वे मुसलमानों का दानवीकरण करते हैं तो दूसरी ओर महिलाओं और लड़कियों के जीवन पर उनका नियंत्रण और कड़ा होता है। इस प्रचार में यह निहित है कि हिंदू महिलाओं को आसानी से बहलाया-फुसलाया जा सकता है और वे अपनी जिंदगी के बारे में सही निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं। इस तरह, सांप्रदायिक राजनीति के एजेण्डे के दो लक्ष्य एक साथ पूरे होते हैं।

सांप्रदायिक राजनीति, धार्मिक अल्पसंख्यकों को समाज के हाशिये पर पटकना चाहती है और साथ में समाज में महिलाओं के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रताओं पर रोक लगाना भी उसके एजेण्डे में रहता है।

भाजपा और उसके साथी लव जिहाद का न सिर्फ भाषणों और वक्तव्यों के जरिये विरोध कर रहे हैं वरन् उन्होंने लव जिहाद का ‘मुकाबला’ करने के लिए मोर्चे बनाने भी शुरू कर दिये हैं। ऐसा ही एक मोर्चा मेरठ में गठित किया गया है और अन्य शहरों में भी इस तरह के संगठन बनाये जाने की चर्चा है। विहिप ने इस मुद्दे पर मोर्चा संभाल लिया है। विहिप का कहना है कि ‘‘लव जिहाद के विरूद्ध हमारी लड़ाई का देशभक्त समर्थन करेंगे क्योंकि यह देश को एक दूसरे विभाजन की ओर ले जा रहा है।’’

संघ परिवार से जुड़ा एक अन्य संगठन धर्म जागरण मंच अचानक सक्रिय हो गया है और उसने एक अभियान चलाकर हिंदुओं से लव जिहाद के ‘खतरे’ से लड़ने की अपील की है।

जहां तक लव जिहाद के जरिये हिंदू लड़कियों को मुसलमान बनाने के आरोप का संबंध है इसमें कोई दम नहीं है।

मेरे एक मित्र, जो उत्तरप्रदेश में रहते हैं, ने बताया कि वे वहां लड़कियों के एक कालेज में किसी विषय पर भाषण देने गये थे। वहां पर उन्हें कालेज के एक युवा शिक्षक ने-जो हिंदू लड़कियों की रक्षा के लिए कटिबद्ध थे-बताया कि उनके इलाके में 6,000 से अधिक लड़कियां मुसलमान बन गई हैं। परंतु जब उनसे यह कहा गया कि वे उनमें से कम से कम 60 के नाम दे दें तो वे पीछे हट गये। उन्होंने कहा कि ये बात उनने सुनी थीं और इसलिए सच होंगी!

लव जिहाद के षड़यंत्र के संबंध में 15 रूपये कीमत की एक पुस्तिका भी जगह-जगह दिखलाई दे रही है। इस पुस्तिका का शीर्षक है ‘‘हमारी महिलाओं को लव जिहाद के आतंकवाद से कैसे बचायें?’’ इसमें लव जिहाद के कुछ तथाकथित मामलों का वर्णन किया गया है। सभी विवरण लगभग एक से हैं। कोई मुस्लिम पुरूष स्वयं को हिंदू बताकर किसी हिंदू लड़की से प्रेम संबंध स्थापित कर लेता है।

पुस्तिका में यह दावा किया गया है कि शादी हो जाने के बाद, लड़कियों पर इस्लाम कुबूल करने का दबाव डाला जाता है। ऐसी लड़कियों को ‘मुक्त’ कराये जाने की जरूरत है।

मोदी की राजनीति की हिटलर की राजनीति से तुलना

लव जिहाद के मुद्दे पर कई बातें कही जा रही हैं परंतु इनमे से दो महत्वपूर्ण हैं। कई विश्लेषकों ने मोदी की राजनीति की तुलना हिटलर की राजनीति से की है। हिटलर ने भी जर्मनी के नागरिकों को यहूदियों का शत्रु बनाने के लिए इसी तरह की रणनीति का इस्तेमाल किया था। यहूदियों को ‘आतंरिक शत्रु’ बताया जाता था। हिटलर की प्रचार मशीनरी यह कहती थी कि युवा यहूदी पुरूष, जर्मन लड़कियों को बहला-फुसलाकर आर्य नस्ल की शुद्धता को प्रदूषित कर रहे हैं और उनका उद्देश्य जर्मन राष्ट्र को गुलाम बनाना है।

भारत में आर्यसमाज और हिंदू महासभा ने सन् 1920 के दशक में इसी तरह की रणनीति अपनाई थी। उस समय भी इन संस्थाओं ने हिंदू महिलाओं के सम्मान को बचाने का आह्वान करते हुए पर्चे निकाले थे जिनमें से एक का शीर्षक था ‘‘हिन्दू औरतों की लूट’’। इस दुष्प्रचार का इस्तेमाल समाज को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत करने के लिए किया गया था।

क्या इस दुष्प्रचार का मुकाबला करने का कोई तरीका है?

एक खबर यह है कि लव जिहाद के धुआंधार प्रचार में घिरे कुछ इलाकों के मुस्लिम युवकों ने सद्भाव का वातावरण निर्मित करने के लिए शांतिमार्च निकालने का निर्णय किया है। हमें उम्मीद है कि ऐसे ढे़र सारे मार्च निकाले जायेंगे और हमारे समाज को उस पागलपन से बचाया जायेगा जिस ओर उसे ढकेला जा रहा है।

राम पुनियानी

(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)

(मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

Ram Puniyani was a professor in biomedical engineering at the Indian Institute of Technology Bombay and took voluntary retirement in December 2004 to work full time for communal harmony in India. He is involved in human rights activities for the last two decades. He is associated with various secular and democratic initiatives like All India Secular Forum, Center for Study of Society and Secularism and ANHAD.

Web title : Two weapons of divisive politics - hate speech and patriarchal values