बाबा साहेब के सपनों की रोज हत्या कर रहे हैं संघी और छद्म अंबेडकरवादी
बाबा साहेब के सपनों की रोज हत्या कर रहे हैं संघी और छद्म अंबेडकरवादी
बाबा साहेब के सपनों की रोज हत्या कर रहे हैं संघी और छद्म अंबेडकरवादी
UDay Che
6 दिसम्बर 1956 को देश के मजदूर, किसान, दलित, पिछड़े, महिला और उपेक्षित आवाम के लिए लड़ने वाले योद्धा "डॉ. भीम राव अम्बेडकर" न चाहते हुए भी लड़ाई को अंतिम समय तक लड़ते हुए पीड़ित समाज से विदा ले गए। लेकिन शोषक वर्ग के खिलाफ एक मजबूत लड़ाई का मैदान तैयार करके, पीड़ितों के हाथों में एक मजबूत हथियार छोड़ कर गए।
6 दिसम्बर "डॉ. भीम राव अम्बेडकर" का महापरिनिर्वाण दिवस है।
मेरे शहर के लगभग सभी चौराहे, सड़के डॉ. साहब के पोस्टर लगे होर्डिंग से पटे पड़े हैं।
अम्बेडकर सभा, सर्व अम्बेडकरवादी समाज सभा, राज्य सरकार से लेकर भारत सरकार ने 6 दिसम्बर के लिए होर्डिंग लगवाए है।
अगर कोई डॉ. साहेब का अनुयायी इन होर्डिंग को देखे तो होर्डिंग देख कर बहुत खुश हो सकता है कि उनके मसीहा का आज सब जगह स्टेच्यू है तो सब पार्टियां, सब संगठन आज बाबा साहेब का प्रोग्राम कर रहे है। बड़े-बड़े होर्डिंग लगा रहे है। इसलिए उसके लिए खुश होना लाजमी है क्योंकि एक तरफ तो आज भी दलितों को अमानवीय व्यवहार रोजाना सहन करना पड़ता है जैसे सवर्ण आज भी अमावस्या या त्यौहार के दिन दलितों को लस्सी भी नहीं डालते। अनेको गांव में दबंग लोग दलितों को शादी में घोड़ी पर बैठने नहीं देते, हुक्का के हाथ भी नहीं लगाने देते, दलित प्रोफेसर को क्लास रूम में कुर्सी नहीं देते, मिर्चपुर, भगाना, गोहाना, डाबड़ा में दलितों पर अमानवीय हत्याचार होता है।
वहीं दूसरी तरफ दलितों के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक लड़ाई लड़ने वाले डॉ. अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस के लिए सभी में होर्डिंग लगाने की होड़ सी लगी हुई है।
होर्डिंग और पोस्टरों को देख कर तो ऐसा लगता है कि जैसे डॉ. साहेब के सपनों का देश बन गया है। लेकिन क्या डॉ. साहेब के सपनों का देश बन पाया है। अगर नहीं बन सका है तो इसके लिए जिम्मदार कौन है और इस होर्डिंग की राजनीति के पीछे छिपी कड़वी सच्चाई को जानना भी जरूरी नहीं है?
इसलिए सबसे पहले तो ये जानना जरूरी है कि बाबा साहेब ने किसके लिए और क्यों संघर्ष किया।
उस संघर्ष में बाबा साहेब के दोस्त कौन थे और दुश्मन कौन थे।
आज सभी राजनीतिक दल डॉ. अम्बेडकर को उनके दलित मुक्ति के तमाम संघर्षों से काटकर उनको अपनी-अपनी चासनी में डुबोकर पेश कर रहे हैं। सबका अपना-अपना अम्बेडकर है।
भाजपा का अम्बेडकर मुस्लिम विरोधी व् हिन्दूवादी है तो कॉग्रेस का अम्बेडकर सिर्फ सविधान निर्माता तक सीमित है।
वहीं छद्म अम्बेडकरवादियों का अम्बेडकर बुतों, तस्वीरों और गले में पड़े तावीजो में है।
ऐसे में आम जनता के लिए ये बेहद मुश्किल हो जाता है कि वह किस अम्बेडकर को सही माने।
डॉ. अम्बेडकर का सबसे बड़ा दुश्मन उस समय हिंदूवादी मुस्टंडे और संघ रहा। क्योकि डॉ.. अम्बेडकर एक "जाति विहीन" समाज की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे थे। ठीक उसी समय डॉ.. हेडगेवार एक कट्टर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का गठन कर रहे थे।
संघ हमेशा जाति-प्रथा को भारत के गौरवपूर्ण इतिहास का एक अंग बताता रहा है।
गुरु गोलवरकर (पूर्व संघ संचालक) ने अपनी पुस्तक "बंच ऑफ थॉट्स" में लिखा है कि जाति व्यवस्था हमारे सामाजिक विकास में कभी बाधक नहीं रही, बल्कि इसने समाज में एकता बनाये रखने में मदद की है (पृष्ठ 108)।
संघ का मुखपत्र 'आर्गनाइजर' मनुस्मृति के कायदे कानून को लागू करने की बात करता है। वही दूसरी तरफ डॉ. अम्बेडकर ने दलितों को बराबरी का हक दिलाने के लिए संघर्ष की शुरुआत ही दलित विरोधी मनुस्मृति के दहन जैसे कार्यक्रमों से की थी।
आज कही भी दलितों पर अत्याचार होता है तो संघ से जुड़े संगठन या संघ के कार्यकर्ता आपको दबंगों के साथ खड़े मिलेगें।
रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या हो या गुजरात के दलितों की निर्मम पिटाई हो, ये संघी आपको जरूर मिलेंगे।
दूसरी तरफ डॉ. अम्बेडकर के नाम पर वोट लेने के लिए ये ही संघी डॉ. साहेब के नाम की माला जपते मिलेंगें। उनके फोटो वाली टी शर्ट पहने मिलेंगे। बड़े-बड़े कार्यक्रम डॉ. अम्बेडकर के नाम पर आपको करते मिलेंगे।
दूसरा औऱ सबसे बड़ा दुश्मन, इन संघियों से भी बड़े दुश्मन वो छद्म अम्बेडकरवादी हैं। जो कमजोर और उपेक्षित तबकों से होते हैं। ये अपने आप को बहुत बड़े अम्बेडकरवादी घोषित करते है। डॉ. आंबेडकर के नाम पर संगठन बनाते है। साल में एक या दो प्रोग्राम भी करते हैं। उन प्रोग्रामो में मुख्य वक्ता सरकार के किसी मंत्री को बनाएंगे। ऐसे मंत्री को जिसको डॉ. साहेब के बारे में दो शब्द भी जानकारी न हो।
मुख्य वक्ता डॉ. साहेब की विरोधी विचार धारा रखने वाला भी हो सकता है बस वो सरकार में मंत्री, सांसद, विधायक हो।
समाज में उठने वाले आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक आंदोलन को कुंद करने का काम ये बखूबी अच्छे से कऱते हैं।
मेहनतकश में जन समस्याओं पर पनप रहे गुस्से को ये डॉ. आंबेडकर के नाम पर ऐसे मुद्दों पर डायवर्ट करते हैं, जिनका डॉ. साहेब की विचारधारा से, उनकी लड़ाई से कोई मतलब नहीं होता। जैसे - भारतीय करंसी पर महात्मा गांधी की जगह डॉ. अम्बेडकर का फोटो होना चाहिए, अम्बेडकर के नाम पर पार्क का नाम होना चाहिए, अम्बेडकर का स्टेच्यू चौक पर लगना चाहिए।
क्या करन्सी पर डॉ. साहेब का फोटो आने से, स्टेचू लगने से या पार्क का नाम डॉ. अम्बेडकर के नाम होने से उनके सपने पूरे हो सकते हैं?
लेकिन जब कुछ प्रगतिशील नोजवान डॉ. अम्बेडकर के नाम पर लाइब्रेरी खोलते हैं, फ्री ट्यूशन सेंटर चलाते हैं, भूमिहीनों के लिए भूमि बंटवारे की बात करते हैं, डॉ. साहेब की बुक स्कूलो में पढ़ाई जाये, जाति विहीन समाज बनाया जाये, मजदूर के मेहनताना की लड़ाई लड़ी जाये, बिजली, पानी, शिक्षा, रोजगार की लड़ाई लड़ी जाये तो उन प्रगतिशील नौजवानो का सबसे ज्यादा विरोध हिंदूवादियों के साथ मिलकर ये छद्म अम्बेडकरवादी भी करते हैं।
आज से 70 से 80 साल पहले बहुत ही ज्यादा विपरीत परिस्थितियां होते हुए डॉ. अम्बेडकर ने जो लड़ाई महिलाओं की आजादी के लिये, मजदूर-किसान के लिए जो संघर्ष डॉ. अम्बेडकर ने किया। जो कानून उस समय के नेताओं से लड़कर समाज के कमजोर, उपेक्षित, दलित, आदिवासियों के लिए बनाये। आज उन्हीं कानूनों के कारण वो कमजोर, उपेक्षित तबका आजादी की साँस ले रहा है। लेकिन आज हम उनके अनुयायी होने का दावा करने वाले क्या आज उस कमजोर, उपेक्षित लोगो की लड़ाई लड़ रहे हैं, क्या हम आज दलितों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं, क्या आज हम भूमिहीनों में भूमि बंटवारे के लिए लड़ रहे हैं, क्या आज हम महिलाओ के लिए उन पर हो रही हिंसा के खिलाफ लड़ रहे हैं?
डॉ. अम्बेडकर का सबसे बड़ा सपना "जाति विहीन समाज" क्या उसको बनाने के लिए हम कुछ कर रहे हैं?
अगर हम ये सब नहीं कर रहे हैं और डॉ. अम्बेडकर के बड़े-बड़े होर्डिंग लगा रहे हैं, होर्डिंग लगे हुए को देख कर अगर हमें ख़ुशी मिल रही है तो हम डॉ. साहेब की एक बार फिर हत्या कर रहे हैं। उनके विचार की हत्या कर रहे हैं।
लेकिन हम इस हत्या में शामिल नहीं होना चाहते हैं। हम मजबूती से डॉ. अम्बेडकर के विचारों को आम जनता तक लेकर जायेंगे, हम "जमीन जोतने वाले की" और "मिल मजदूर की" के लिए लड़ेंगे, हम "जातिविहीन समाज" बनाने के लिए लड़ेंगे। हम लड़ेंगे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता के लिए।


