बाल की खाल
बाल की खाल
भारत हताहत भावनाओं का देश है। यहां लोगों की भावनाएं बड़ी कोमल हैं। किसी विपरीत बात से बड़ी जल्दी आहत हो जाती हैं। फिर ये आहत भावनाओं वाले दूसरों को आहत करने से नहीं हिचकते। कुछ कहते हुए डर लगता है, इसलिए मैं पहले ही माफी मांग लेता हूं। भई मेरे लिखे से भावनाएं आहत हो सकती हैं। आहत भावनाओं के लिए कृपया डेटॉल-बैंडेज़ पास में रखें, मेरे पास आने का कष्ट न करें।
अमृतसर से खबर आई है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति पूरे पंजाब में सिक्ख बच्चों को ‘पगड़ी’ पहनने की प्रेरणा देने के लिए मुहिम चला रही है। समिति स्कूलों में जाकर बच्चों को बता रही है बाल कटाना पतन है, कि पगड़ी पहनने से उन्हे इज़्जत मिलेगी और वे नशाखोरी से व “छूत की बिमारियों” से भी बचेंगे जो बाल कटाने की दुकान पर लगती हैं। वैसे समिति को लड़कियों का बाल कटाना भी नहीं पसंद है, लेकिन फ़िलहाल वह लड़कों पर ही ‘फ़ोकस’ कर रही है। हो सकता है समिति यह मानती हो कि लड़के एक बार सही रास्ते पर आ गएं तो वे खुद ही घर की लड़कियों को ठीक कर देंगे।
बाल कटाने और नशाखोरी के बीच समिति ने संबंध कैसे स्थापित किया है यह खुलासा खबरों में नहीं है। शायद कोई कारण हो, जिसका आत्मज्ञान केवल समिति के लोगों के पास है। पंजाब में युवाओं के बीच नशे की लत बढ़ने के पीछे वो हताशा और अलगाव है जिसकी जड़ समाज और आर्थिक व्यवस्था में है। युवाओं के आगे कोई सकारात्मक रास्ता नहीं है, जिस पर चल कर वे अपने व्यक्तित्व की सामाजिकता के प्रति सचेत हो सकें और बेहतर भविष्य की उम्मीद से ऊर्जा व उत्साह हासिल कर सकें। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के पास भी यह रास्ता नहीं है। उनके पास केवल एक काल्पनिक श्रेष्ठता को बचाए और बनाए रखने का रास्ता है। यह अपने आप में एक खतरनाक नशा है।
एक जड़ और मृत ‘शुद्धता’ के तंग गलियारे में सिमट कर ‘पतन’ से बचने का नशा। हिटलर को भी ऐसा ही नशा था और ओसामा बिन लादेन को भी। इनकी कारगुजारियां किसी से छुपी नहीं हैं। इनमें से एक कटे बाल वाला था और एक बिना कटे लंबे बालों वाला!
कुछ साल पहले इसी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेज में एक लड़की को दाखिला देने से इंकार कर दिया गया था। कारण यह कि लड़की ने अपने भौहों को कटा कर ‘सेट’ कराया था जो इस समिति के हिसाब से सिक्ख धर्म के खिलाफ़ है। ऐसा करना लड़कियों में आम बात है और इसमें बुराई तभी नज़र आएगी जब ‘धर्म’ के चश्में से मामले को देखा जाएगा। समिति के पास सिर्फ यही चश्मा है देखने का। अफ़सोस इस बात का है कि पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने भी समिति के पक्ष में फैसला दिया।
कोर्ट ने भी मामले को धर्म के चश्मे से देखा संविधान और तर्क के चश्मे से नहीं। कोर्ट यह सवाल कर सकती थी कि मेडिकल की पढ़ाई से कटे बालों का क्या ताल्लुक? और जो लोग ऐसा संबंध देखते हैं उन्हे अधिकार नहीं होना चाहिए किसी तरह का शैक्षिक संस्थान चलाने का – मेडीकल कॉलेज का तो कतई नहीं। शिक्षा धर्म का नहीं समाज का मसला है। धर्म का मसला बनते ही ये खतरनाक नशा बन जाती है जिसमें डुबोने की खूब कोशिश हो रही है आजकल।
जहां तक पगड़ी पहनने से इज़्जत मिलने की बात है, इज़्जत तो कई कारणों से मिल जाती है। घूसखोरी करके ऊंची इमारत खड़ी करने वालों की भी मुहल्ले-पड़ोस में इज़्जत होती है। गलियों के गुंडे शहर के बड़े दादा की इज़्जत करते हैं, जैसे कई देश अमेरिका की करते हैं। लेकिन ये कुंठा या डर से पैदा होने वाली इज़्जत है। पगड़ी पहनने से मिलने वाली इज़्जत को क्या कहा जाए? समिति को कोई यह समझाए कि पगड़ी से इज़्जत तौलने का विचार भी सामंती मूल्यों से निकला एक नशा ही है। ऊंची-ऊंची पगड़ी पहनने वालों ने पंजाब की जमीन को बीज-खाद-कीटनाशक बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले कर दिया। खेती को वैश्विक बाज़ार के लिए खोल दिया। पंजाब में किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं और आप पगड़ी ही संभालते रहिए। ये युवाओं को नशे से बचाना नहीं बल्कि पगड़ी और धर्म के नशे में बेहोश करना चाहते हैं।
भगत सिंह ने भी बाल कटाए थे और पगड़ी से किनारा किया था। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की नजर में शायद भगत सिंह भी पतित होंगे। बल्कि महापतित होंगे क्योंकि भगत सिंह ने तो यह भी घोषणा कर दी थी कि वे नास्तिक हैं। हालांकि मुझे पक्का यकीन है कि अगर पंजाब के लड़के-लड़कियां भगत सिंह की तरह जज़्बा और बहादुरी दिखाते हुए घोषणा कर दे कि वे नास्तिक हैं तो पंजाब में नशे की समस्या तो दूर हो ही जाएगी, गुरुद्वारा प्रबंधक समिति का भी नशा काफ़ूर हो जाएगा। बाल कटाना या न कटाना तो युवाओं के पसंद की बात है। अच्छा लगे तो कटाओ, न लगे तो न कटाओ। बस अच्छा लगने के अहसास को भी अच्छा और खूबसूरत बनाते रहो। नहीं तो “अच्छे दिनों” का नशा भी खतरनाक ही होता है।
लोकेश मालती प्रकाश
भोपाल
लोकेश मालती प्रकाश, लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।
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