बिना इज्जत के लोग : गुलामी की विचारधारा है हिन्दुत्व
बिना इज्जत के लोग : गुलामी की विचारधारा है हिन्दुत्व
आधुनिक युग का महानायक है किसान
जगदीश्वर चतुर्वेदी
आधुनिक युग की पहचान यह है कि मनुष्य की कोई इज्जत नहीं रहती। वह अपनी आँखों के सामने ही अपनी इज्जत खोता है। आमतौर पर आधुनिककाल में त्रासदी के सभी नायकों के साथ यह हुआ है।
आधुनिक युग का महानायक है किसान और व्यक्ति के रूप में, एक वर्ग के रूप में उसकी इज्जत इस युग में जिस तरह नष्ट हुई है, उस पर जितने लांछन और आरोप लगे हैं, उसकी निजी और सामाजिक तौर पर जितनी क्षति हुई है वह अकल्पनीय है। यही हाल मजदूरों का है।
यह एक तरह से मनुष्यता के पीड़ा का युग है।
शिक्षित लोग लगातार जिस तरह का आचरण कर रहे हैं वह अपने आपमें शिक्षा और शिक्षित दोनों को शर्मसार करने के लिए काफी है। पहले कहा गया कि शिक्षा व्यक्ति को मनुष्य बनाती है, बेहतर मनुष्य बनाती है लेकिन व्यवहार में यह देखा गया कि शिक्षितवर्ग के लोग बड़ी संख्या में बर्बरता कर रहे हैं, मसलन्, दहेज हत्या और हत्या के आंकड़े उठाकर देखें तो पाएंगे दहेज के नाम पर लड़कियों की हत्या और उत्पीड़न में शिक्षितों की केन्द्रीय भूमिका है। दहेज हत्या की अधिकतर घटनाएं शिक्षितों में घटी हैं। इनकी तुलना में अशिक्षितों और गरीबों में यह समस्या नहीं के बराबर है। असल में विवाह करने वालों के बीच संपत्ति जितनी होगी, बर्बरता और उत्पीड़न की मात्रा भी उतनी ही ज्यादा होगी। यही हाल अपराध के बाकी क्षेत्रों का है वहां भी शिक्षित अपराधियों की भरमार है।
हमारी शिक्षा ईमानदार नहीं बनाती, दुनियादार बनाती है
यही स्थिति मध्यवर्ग के दूसरे पेशेवर तबकों की है उनमें भ्रष्टाचार इनदिनों चरम पर है, कायदे से शिक्षित को ईमानदार भी होना चाहिए। लेकिन मुसीबत यह है कि हमारी शिक्षा ईमानदार नहीं बनाती, दुनियादार बनाती है। व्यवहारवादी बनाती है। इसके कारण शिक्षितों का एक बड़ा वर्ग पैदा हुआ है जो अपने पेशेवर दायित्वों के प्रति गैर जिम्मेदार है। मसलन्, भ्रष्ट अफसरों के आंकड़े देखेंगे तो आंखें फटी रह जाएंगी, सबसे बेहतरीन नौकरशाह आईएएस-आईपीएस माने जाते हैं लेकिन हालात यह हैं कि इनमें भ्रष्टाचार और घूसखोरी चरम पर है ईमानदार अफसरों की संख्या दिनोंदिन घट रही है। एक जमाना था वे सबसे ईमानदार अफसरों में गिने जाते थे आज स्थिति यह है कि वे सबसे बेईमान हैं।
गिनती के रह गए हैं ईमानदार अफसर
उल्लेखनीय है भ्रष्ट आईएएस-आईपीएस अफसरों की संख्या तेजी से बढ़ी है। ईमानदार अफसर गिनती के रह गए हैं। दिलचस्प बात है जो ईमानदार है वह ईमानदारी के कारण पीड़ित है, सरकार उसके प्रति निर्दयता से पेश आती है, उसे स्थिर होकर काम ही नहीं करने देती।
मैंने कुछ दिन पहले अपने एक आईपीएस मित्र से पूछा कि इतने दिनों से नौकरी कर रहे हो क्या कमा लिया, कितना नगद बैंकों में जमा है तो बोला ज्यादा नहीं मात्र 170 करोड़ रूपये कमा पाया हूं।
मैं मन ही मन सोच रहा था कि प्रोफेसर के नाते उससे पगार मेरी ज्यादा रही है, मैं बमुश्किल कुछ लाख रूपये बैंक में अब तक जमा कर पाया हूँ और इस बंदे ने इसी दौरान 170 करोड़ कमा लिए।
यही हाल और भी बहुत से अमीर दोस्तों का है, सबके सब शिक्षित हैं, बातें ऐसी करेंगे कि आपको निरूत्तर कर दें। लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में वे इस कदर अव्वल हैं कि लगता ही नहीं है उन पर शिक्षा का कोई असर हुआ है।
मैं जब यह कहता हूं कि आधुनिक युग में मनुष्य की कोई इज्जत नहीं रही तो इस दरअसल व्यवस्था के संदर्भ में मनुष्य के भ्रष्ट रूपों को देखकर ही कह रहा हूं। आधुनिककाल के ऐसे क्षण की कल्पना करें , जिसमें हम रह रहे हैं, इसमें कोई बड़ा जनांदोलन नहीं हो रहा, सभी दल निरर्थक होकर रह गए हैं।
इसके समानांतर देखें गुलाम विचारधारा, विजेता बन जाएगी। हिंदुत्व की विचारधारा जो आज विजेता नजर आ रही है उसकी जड़ें आधुनिक समाज के विघटन की प्रक्रिया में निहित हैं। हिंदुत्व की विचारधारा आधुनिककाल में मुक्ति की विचारधारा नहीं है। बल्कि यह गुलामी की विचारधारा है। सामान्य लोग तेजी से गुलाम विचारधारा की गोद में दौड़-दौड़कर जा रहे हैं।
उल्लेखनीय है पुरानी परंपरागत हिंदू विचारधारा हो या नई आरएसएस की हिंदुत्व की विचारधारा हो उसका मानसिक-सामाजिक गुलामी से गहरा संबंध है, इस संबंध की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। यह दौर गुलामी की विचारधारा के उभार का है। अब संविधान की व्याख्याएं हिंदुत्व की संगति में की जा रही हैं, संविधान की वे बातें नहीं मानी जा रहीं जो संविधान निर्माताओं ने कही हैं बल्कि वे बातें मानने पर जोर है जो हिंदुत्व कह रहा है। संविधान और हिंदुत्व के बीच में सह-संबंध बनाने और संविधान की हिंदुत्व सम्मत नई व्याख्याओं पर मुख्य रूप से जोर दिया जा रहा है। यह नए खतरे की घंटी है।


