BIADA Land Allotments: Latest News

बिहार की बियाडीआई चोंचलेबाजी टेलीविजन के ब्रोकेन न्यूज की शैली में खत्म हो चुकी है। खबर हर कीमत पर का दावा करने वाले अपनी ही चोंचलेबाजी के बहादुर हो कर रह गए हैं। फॉरबिसगंज की सरकारी कड़ाई के पीछे के सच को तो बता नहीं पाए लेकिन बिहार इंडस्ट्रियल एरिया (Bihar Industrial Area Development Act ) - बियाडा में उद्योग लगाने वाले लोग मंत्री - अफसर - विधायक जरूर दिखे। जरा मेहनत कर के बियाडा के वेबसाइट पर मेहनत करते तो कुछ और सच उनके सामने आता।

बड़ी मेहनत की तो ऐसे पटनिया पत्रकार के जमीन आवंटन पर पहुंचे जो पत्रकार कम कारोबारी ज्यादा है। हालांकि पत्रकार का या किसी का भी कारोबारी होना न कोई अच्छी बात है और न ही कोई बुरी बात। ऐसी चोंचलेबाजी से आखिरकार फायदा नीतीश कुमार को ही पहुंचता है।

News on BIADA Land Allotments | BIADA FORBESGANJ

बिहारी एनडीए 1 के काल - 2006- 2010 में ऐसी चोंचलेबाजी लालू प्रसाद – रामबिलास पासवान - ललन सिंह ( जदयू से निष्कासित लोकसभा सदस्य ) ने की थी। नतीजतन आज एनडीए-2 मेरे पास नंबर है, का दावा कर रहा है। इसी दावे के साथ बिहार में लोगों का हौसला इतना बढ़ गया है कि विपक्षी सांसद उमाशंकर सिंह के छपरा के निवास पर शूद्ध माफियाइ शैली में गोलीबारी होती है - और बिहार का राजदीय विपक्ष विधान

सभा से वाकआउट का नाटक भी नहीं करता क्योंकि अब उमाशंकर सिंह, लालू प्रसाद की पार्टी में होते हुए भी लालू प्रसाद के साथ नहीं है। वह इस सच को स्वीकार नहीं करना चाहता कि फॉरबिसगंज में बियाडा की भूमि पर जबरन कब्जा किए लोगों ने वहां के महिला पुलिस अधिकारी को बाल पकड़ कर खींचा था।

उन्हें तो इसमें गुजरात का मुस्लिम दहन दिखता है। वैसा ही जमीन का बंदरबांट उन्हें बियाडा के जमीन आवंटन में दिख रहा है।

किसी को लगता है कि बियाडा के प्लॉट्स का टेंडर होना चाहिए था। किसी को लगता है कि इसकी नीलामी होनी चाहिए थी। किसी को लग रहा है कि शैक्षणिक संस्थानों को बिहार सरकार ने जमीन दे कर शिक्षा को दूषित कर दिया है।

असली मुद्दा जमीन का आवंटन नहीं है। असली मुद्दा यह है कि जिन्हें बियाडा में जमीन मिली है, वहां कोई उद्योग लगा भी है या नहीं। एक बिहारी आईएएस अफसर के के पाठक ने इस सच को 2008 में पकड़ा था। उन्होंने बिहार के सैकड़ों उद्यमियों को आवंटित प्लाट रद्द कर दिया था। रद्दीकरण के पीछे का पाठक का बहैसियत बियाडा प्रबंध निदेशक तर्क यह था कि उद्यमी वहां उद्योग नहीं लगा पाए हैं। पटना हाइकोर्ट ने उनके आदेश को रद्द कर दिया था, क्योंकि प्रबंध निदेशक को उन्हें रद्द करने का अधिकार नहीं था। हालांकि अदालत ने यह माना कि एक निश्चित अवधि तक उद्योग न शुरू करने वालों का आवंटन और उनकी रकम रद्द करने का अधिकार बियाडा का है।

यहां अदालत ने यह भी माना कि "जिन्हें जमीन दी गई है उनके निवेश और कड़ी मेहनत के बावजूद वह अपने उद्यम में सफल नहीं हो पा रहे रहे हैं।"

अब यह बिहार सरकार की जिम्मेदारी है कि बियाडा में जो असफल उद्योग हैं, उनकी मदद करे और जिन्होंने बरसों बरस के बाद भी जमीन ले कर उद्योग शुरू नहीं किया है, उनके आवंटन को रद्द करे। लेकिन बिहार सरकार अपनी नाक बचाने के लिए ऐसा नहीं कर रही है।

क्या है बियाडा की जमीन को ले कर विवाद
| What is the dispute over Biada land

बियाडा की जमीन को ले कर सारा विवाद 2006 से शुरू होता है। इसी समय फिल्मकार प्रकाश झा ने पाटलिपुत्र इंडस्ट्रियल एरिया में अपना माल -मल्टीपलेक्स बनाना तय किया। लोगों को यह बहुत नागवार गुजरा। तब भी सारा प्रकरण हाईकोर्ट से ले कर सुप्रीम कोर्ट तक गया। 2011 में प्रकाश झा का माल - मल्टीप्लेक्स शुरू हो चुका है। फिर भी यह मामला बंदरबांट का नहीं , बल्कि इसका है कि जमीन आवंटित हो जाने के बाद उद्योग शुरू क्यों नहीं हुआ ? अगर नहीं हुआ तो वह जमीन उन्हें आवंटित करनी चाहिए जो सचमुच में कुछ करना चाहते हैं।

जुगनू शारदेय