बिहार का महाभारत- आखिर भाजपा को बार-बार महाभारत और रामायण की बात याद क्यों आती है। कभी अपने को पाण्डव तो मोदी को कृष्ण विपक्ष को कौरवों की संज्ञा ही क्यों देते हैं? क्या ये देश में फिर से राजसत्ता स्थापित करना चाहते हैं। चलिये इन्हीं के नजरिये से बिहार में कौरवों और पाण्डवों के भविष्य पर सरशरी निगाह दौङाते हैं आखिर, इस महाभारत में पाण्डव जीतेगा या कौरव। क्योंकि महाभारत में कौरवों और पाण्डवों की लङाई में आम जनता का कोई स्थान नहीं था और वे नेपथ्य में थी लेकिन, आज के महाभारत में जनता ही नायक है।
एक तरफ भाजपा के नेता नंद किशोर यादव कहते हैं कौरवों ने अभिमन्यु का वध कर दिया। अगर इनके नजरिये से देखा जाय तो जदयू, राजद और कांग्रेस कौरवों के वंशज हैं और दूसरी तरफ भाजपा, लोजपा और रालोसपा पाण्डवों के वंशज हैं और मांझी को अभिमन्यु बतलाते हैं। तो एक समय कौरवों ने पाण्डव के वंशज को गद्दी सोंपा और वही पाण्डव उसको कौरवों का रिमोट करार दे रहे थे, तो दूसरी तरफ कौरवों के वंशज ये सोच रहे थे कि इसके ही जरिये हम गद्दी अपने पक्ष में रखें। तो ये बात पाण्डवों को नहीं भा रहे थे, तो अभिमन्यु ने अपने वंशज के पक्ष में बोलना शुरु किया तो यह चीज कौरवों को नहीं भायी। तो उसने गद्दी के लिए नाटक शुरू कर दिया और हद तो यहाँ तक हुई कि कौरवों ने कुर्सी पाने के लिए सभी चाल चल दीं और पाण्डवों के वंशज अपने पुत्र के पक्ष में खड़े हो गये। हद तो तब होती है जब नंद किशोर यादव यह कहते हैं कि कौरवों ने अभिमन्यु का वध कर दिया। तो यहाँ पाण्डव अपने पुत्र के पक्ष में खड़े होते हुए भी अपने पुत्र का वध देखते रह गये। जब कि यहाँ उसे डटकर मुकाबला करना चाहिए और फिर एक बार कौरवों से हारता नजर आया।
अब देखना यह है कि अपने पुत्र के वध पर अपने वंशजों को गद्दी पर बैठाने में सफल होते हैं कि नहीं। कौरवों के पक्ष तो साफ बिहार की जनता के सामने स्पष्ट हो गया और पाण्डव भी इस से अछूता नहीं रह सके। अब देखना यह है कि क्या बिहार की जनता दोनों वंशजों के इर्द-गिर्द ही रह जाती है कि नया विकल्प ढूंढती हैं, तत्काल परिस्थिति में ऐसा कुछ बिहार के जनता के सामने कोई विकल्प भी नहीं है। एक ओर कौरवों को पराजित करते हुए जब पाण्डव सेना आगे बढ़ रही थी तो बगावत के रूप में दिल्ली में उसको जबरदस्त पराजय एक आम आदमी पार्टी का नेतृत्व कर्त्ता ने उसके विजय रथ को रोक दिया। उसके बाद पाण्डवों के वंशजों ने छटपटाना शुरु कर दिया, जिसको वह अपना कल तक दुश्मन समझते थे उस से भी हाथ मिलाना शुरु कर दिया और कुछ पाण्डवों के वंशजों के सहयोगी भी उसका साथ छोङना शुरु कर दिया। उसके बाद पाण्डवों ने कौरवों के वंशज के साथ-साथ उसके भी जो सहयोगी थे उसे भी तोङना शुरू कर दिया।
अब आगे उसके सामने बिहार की गद्दी है। अभी हाल में फिर पाण्डवों ने कौरवों को तोड़ने के चक्कर में फिर गिरते नजर आये। हद तो तब हो गयी, जब वह कौरवों के बच्चे को अपने पुत्र का नाम देकर गद्दी पाने के लिए नौटंकी तो की मगर गद्दी उसे हासिल नहीं हो सकी। अब आगे देखना यह है कि पाण्डव बिहार में गद्दी पाने में सफल हो पाता है कि नहीं। अब तो बिहार की गद्दी पाने के लिए कौरवों और पाण्डवों के बीच जो युद्ध की रणनीति बनाई जा रही है, इसमें बिहार की जनता को कितना शहादत देना है। आखिर बिहार की जनता कौरवों और पाण्डवों के शासन के चंगुल में फंस कर ही रह जाते हैं या खुद इन दोनों को उखाड़ फेंकने के लिए खुद दिल्ली के तरह एक अपना भरोसेमंद पार्टी बनाकर संघर्ष करते हैं कि नहीं? यहाँ तो अब यही लगता है कि अब बिहार की जनता कौरवों और पाण्डवों से मुक्ति चाहते हैं और खुद संघर्ष करके गद्दी को अपने कब्जा में लेने के लिए छटपटा रहे हैं। बस इनको एक अच्छे नेतृत्व की जरूरत है जो इसके अच्छे भरोसेमंद साथी होगें उनके साथ वह इन दोनों वंशजों को सफाया करने के लिए तैयार हैं। अभी दोनों वंशज सही से जनता के हित में कुछ करने के लिए तैयार नहीं हैं जैसे ही दोनों वंशज आपस में लङकर जैसे ही गद्दी पाते हैं, वैसे ही जनता का दमन करना शुरू कर देते हैं।
अंतिम में ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि महाभारत में चुनाव के जरिये सत्ता परिवर्त्तन नहीं होता था और आज हमारे देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव के जरिये सत्ता परिवर्त्तन होता है। महाभारत में युद्ध के जरिये सत्ता पर कब्जा होता था, युद्ध आम लोग लङते थे लेकिन उसका नायक राजे-महराजे होते थे। आज भी लोकतंत्र में सत्ता आमलोग बनाती है, लेकिन नायक एक नेता कहलाता है। लेकिन पूरे विश्व के इतिहास ने ये साबित कर दिया है कि किसी भी लङाई का असली नायक आम जनता ही होती है। तो क्या बिहार की जनता अपने भीतर के नायक तत्व को पहचानेगी या महाभारत की गलती ही दोहरायेगी ?
-अंजनी, भागलपुर
अंजनी कुमार