बिहार का सफेदपोश आतंकवाद
बिहार का सफेदपोश आतंकवाद
बिहार में जदयू के मोकामा के विधायक अनंत सिंह(छोटा सरकार) का 24.06.2015 को सरकारी आवास पटना में पुटूस यादव की हत्या में साजिश के कारण उनका गिरफ्तारी पूरे चार घंटे की मशक्कत करने के बाद सफल हुई। अनंत सिंह बिहार में छोटा सरकार के रूप में प्रसिद्धि हासिल कर चुके हैं। जिसके डर से तमाम पार्टियां उसके विरोध में कुछ बोलने से कतराती रही हैं। पुटूस यादव की हत्या के बाद उनके पिता ने साहस करके इस जुर्म के खिलाफ आवाज उठाई। आश्चर्य यह होता है कि छोटा सरकार के सरकारी आवास में एक तरफ पालतू जानवर हाथी आकर्षण का केन्द्र बना रहा वहीं दूसरी तरफ पीड़ित परिवार का दर्द? जब पूरे सर्च अभियान में छोटा सरकार के सरकारी आवास से खून से सने हुए कपड़े और बूलेटप्रूफ जैकेट बरामद हुआ, वहीं बागवान से एके 47और एके 56 की 6 मैगजीन बरामद की गईं। साक्ष्य के रूप में प्रशासन के लिये यह काफी है।
ध्यान देने की बात यह है कि अगर यही मैगजीन किसी मुस्लिम परिवार के घर से बरामद होती तो उसे सरकारी मिशनरी और मीडिया आतंकवाद घोषित कर देता और उस पर देशद्रोह का मुकदमा चलता या फर्जी मुठभेड़ का शिकार होता। दूसरी तरफ अपने जीवन से जुड़े हुए सवाल पर गरीब, मजदूर, दलित और आदिवासी अपने हक अधिकार की मांग करता है तो उसे एक कागज के टुकड़े भी साथ में साक्ष्य के रूप में लगाकर उस पर नकसली या माओवादी का ठप्पा लगा दिया जाता है और उस पर देशद्रोह की धारा लगाकर उसे जेल के अंदर डाल दिया जाता है। उसके बाद देश के चारों स्तम्भ उसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं।
सत्ता के द्वारा तैयार किये गये अपराधी का मनोबल सबसे ऊंचा रहता है। उसे किसी भी चीज का डर नहीं लगता, वो तब ही प्रशासन के हत्थे चढ़ता है जब उसे ये लगता है कि जिस सांप को हमने दूध पिलाया वह खुद मुझे डंस लेगा। जिस प्रकार छोटा सरकार का आतंक पूरा मोकामा से लेकर पटना तक था। जब तक उसे सत्ता का संरक्षण नहीं था, तो वो कैसे सरकारी आवास में एके47 और एके56 रखते थे। यह तो पूरे सिस्टम के लिये चुनौती है। अभी तक कोई भी पार्टी यह कहने से डर रही है कि इस पर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। जब बिहार के मुखिया ही उसे प्रणाम करते हो तो आम जनता को उससे कितना भय होगा। जब बिहार भ्रमण में बिहार के मुखिया घूम रहे थे, तो उसके कार्यक्रम में जो भी महिला या पुरूष प्रवेश करते थे तो उसका काला कपड़ा उतारने के बाद ही प्रवेश करने की इजाजत दिया जाता था। उस समय नीतीश बाबू को काली चीज से डर लगने लगा था। जब पूरे बिहार का भ्रमण कर पटना के गांधी मैदान में रैली कर रहे थे तो उस समय मंच पर छोटा सरकार का पदार्पण काला कपड़ा, काली टोपी और काले चश्मे के साथ हुआ और इसके नये रूप को देखते ही बिहार का मुखिया नतमस्तक हो गये, आखिर क्या दर्शाना चाह रहे थे? इससे साफ जाहिर होता है कि छोटा सरकार का मनोबल बढ़ाने में खुद बिहार के मुखिया का योगदान था।
जब राजद के शासन काल में बिहार में नरसंहार का दौड़ चल रहा था, तो सभी दक्षिणपंथी पार्टियां मुखौटा बनकर देख रही थीं और गरीब, दलित, मजदूर का नरसंहार हो रहा था। जिसका नेतृत्व सामंती सोच रखने वाले सवर्ण जाति के बह्मेश्वर मुखिया रणवीर सेना बनाकर कर रहे थे और पूरे बिहार के अंदर उसका मनोबल बढ़ता जा रहा था। इसके खिलाफ जब गरीब, दलित, मजदूर, कुछ वामपंथी पार्टियां और कुछ सामाजिक संगठनों के आंदोलन के दबाव में जब गरीब दास आयोग का गठन हुआ। उसके बाद जैसे ही जदयू-भाजपा की सरकार बिहार में आयी तो सबसे पहले गरीब दास आयोग को खत्म किया। धीरे-धीरे सभी नरसंहार के आरोपियों को रिहा कर दिया गया। अब तक ये पता नहीं चल पाया है कि आखिर उस नरसंहार के दोषी कौन? जब रणवीर सेना के मुखिया बह्मेश्वर रिहा हो गये तो खुद आपसी बर्चस्व को लेकर मुखिया की हत्या हो गई तो पूरे राजधानी में फिर एक बार सर्वण ताकत नंगा-नाच किया और पूरा सिस्टम मुखौटा बनकर देखता रहा।
ऐसे भी बिहार में सफेद पोशों का आंतक एक लम्बे दौर से चला आ रहा है। इसके पीछे दक्षिण पंथी संगठन समय-समय पर नया चेहरा खड़ा करते रहे हैं। एक शायर ने सच ही कहा था-
"बर्बाद-ए-गुलिस्तां करने को एक ही उल्लू काफी है
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा!"
अंजनी विशु


