बिहार : प्रथम चरण ने बढ़ा दीं भाजपा की मुश्किलें
हर जगह तेजस्वी यादव के रोजगार, जाति जनगणना, सामाजिक न्याय, और सत्रह महीने बनाम सत्रह साल का मुद्दा छाया रहा तो दूसरी तरफ सनातन, राम मंदिर, रामनवमी, नवरात्रि, और कथित गारंटी के अलावा जनता को कुछ और सुनने को था ही नहीं।

लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण के लिए आज 21 राज्यों की 102 सीटों पर मतदान संपन्न हो गया और किरन रिजिजू, नितिन गडकरी समेत आठ केंद्रीय मंत्रियों समेत 1625 प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला जनता ने स्ट्रॉन्ग रूम में रखे जाने वाले ईवीएम मशीनों में क़ैद कर दिया है। बिहार में पहले चरण की चार सीटों औरंगाबाद, गया, नवादा और जमुई में 38 प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला जनता ने कर दिया है।
बिहार में पहले चरण की सभी चारों लोकसभा सीटों पर मतदान का समय समाप्त हो गया है। चुनाव आयोग के अनुसार बिहार में शाम पांच बजे तक सामान्य सीट औरंगाबाद में 49.95 प्रतिशत मतदान हुआ। वहीं नवादा में सबसे कम 40.20 प्रतिशत मतदान हुआ है। इधर, गया सुरक्षित सीट पर 48.54 प्रतिशत और जमुई सुरक्षित सीट पर 47.09 प्रतिशत पर मतदान हुआ। चार सीटों को मिलाकर कुल 46.32 प्रतिशत वोटिंग हुई है। शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कम वोटिंग हुई।
बिहार की इन चारों सीटों पर चर्चा को आगे बढ़ाएं इससे पहले सभी सीटों की एक हल्की से तस्वीर देख लेते हैं।
औरंगाबाद
बिहार का चित्तौड़गढ़ कही जाने वालीं औरंगाबाद लोकसभा सीट (Aurangabad Lok Sabha seat, also known as Chittorgarh of Bihar) पर यूं तो विगत पांच दशकों से दो परिवारों का ही कब्जा रहा है जिनमें एक सत्येंद्र नारायण सिंह हैं और दूसरे रामनरेश सिंह उर्फ़ लूटन सिंह हैं। एन डी ए की तरफ़ से भाजपा ने मौजूदा सांसद सुशील कुमार सिंह को एक बार फिर अपना उम्मीदवार बनाया है जो रामनरेश सिंह उर्फ़ लूटन सिंह के सुपुत्र हैं ।
सुशील कुमार सिंह ने 2009 का लोकसभा चुनाव जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर औरंगाबाद लोकसभा सीट से जीता था। वह 2014 में जनता दल यूनाइटेड छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और 2014 और 2019 दोनों लोकसभा चुनावों में अपनी लोकसभा सीट बरकरार रखने में कामयाब रहे।
इंडिया गठबंधन की तरफ़ से राष्ट्रीय जनता दल के सिंबल पर अभय कुशवाहा मैदान में हैं। अभय कुशवाहा जनता दल यूनाइटेड के पूर्व विधायक हैं। वो औरंगाबाद लोकसभा के अंतर्गत आने वाली टेकारी सीट से 2015 में जदयू के विधायक बने लेकिन 2020 के चुनाव में जदयू ने उन्हें गया लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली बेलागंज सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था जहां वो हार गए थे। अभी महीने भर पहले वो राजद में शामिल हुए और राजद ने औरंगाबाद सीट से उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया है।
औरंगाबाद सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां राजपूत वोटर सबसे ज्यादा तकरीबन 18 प्रतिशत हैं। उसके बाद यादव मतदाताओं की संख्या लगभग 10 प्रतिशत, कुशवाहा 8.5 प्रतिशत, मुस्लिम भी तकरीबन 8.5 प्रतिशत, दलित महादलित वोटर्स लगभग 20 प्रतिशत और भूमिहार + ब्राह्मण वोट लगभग 8 प्रतिशत हैं। यानी सवर्ण वोटरों की संख्या लगभग 26 प्रतिशत तक है।
विगत लोकसभा चुनाव 2019 में औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के मौजूदा प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह ने 431541 वोटों के साथ जीत दर्ज की थी और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के उम्मीदवार उपेंद्र प्रसाद 358934 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। ज्ञात रहे कि पिछले चुनाव में जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा महागठबंधन के साथ थी।।
नवादा
नवादा में एन डी ए गठबंधन की तरफ़ से भाजपा के वरिष्ट नेता सी पी ठाकुर के पुत्र और भाजपा से राज्यसभा सांसद विवेक ठाकुर मैदान में हैं तो इंडिया ब्लॉक की तरफ़ से सरवन कुशवाहा राजद के उम्मीदवार हैं। नवादा सीट 2009 से पहले ये सीट सुरक्षित थी लेकिन नए परिसीमन के बाद से इसे सामान्य कोटे की सीट कर दिया गया जहां पिछले तीन चुनाव से एन डी ए का कब्ज़ा है। 2009 में भाजपा से भोला सिंह, 2014 में भाजपा से गिरिराज सिंह और 2019 में भाजपा के सहयोगी दल लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर यहां से चंदन सिंह सांसद बने।
2019 में नवादा लोकसभा क्षेत्र से एन डी ए के सहयोगी दल के रूप में लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर बाहुबली सूरजभान सिंह के भाई चंदन सिंह ने जीत दर्ज की थी और उन्हें 495684 वोट मिले थे जब कि महागठबंधन की तरफ से राजद ने बाहुबली राजबल्लभ यादव की पत्नी विभा देवी को मैदान में उतारा था जिन्हें 347612 प्राप्त हुए थे।
इस बार 2024 में ये सीट भाजपा ने अपने पास रखी और यहां से विवेक ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है।
इस लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां यादव और भूमिहार वोटर्स सबसे ज्यादा हैं। इस सीट पर भूमिहार लगभग 30 प्रतिशत और यादव लगभग 25 प्रतिशत हैं। इसके अलावा एससी-एसटी समुदाय के 15 प्रतिशत वोटर्स भी निर्णायक भूमिका में रहते हैं। इस सीट पर वैश्य मतदाता 8 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता 8 प्रतिशत और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के वोटर लगभग 15 प्रतिशत हैं।
नवादा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत छह विधानसभा सीटें बरबीघा, रजौली, हिसुआ, नवादा, गोबिंदपुर और वारिसलीगंज हैं जिनमे से चार रजौली, हिसुआ, गोविंदपुर, और नवादा सदर पर महागठबंधन का कब्जा है और दो विधानसभा सीटें बरबीघा और वारसलीगंज एंडीए के पास हैं।
गया
गया सीट से इस बार एन डी ए गठबंधन की तरफ़ से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के संस्थापक और औरंगाबाद लोकसभा सीट अंतर्गत आने वाले इमामगंज विधान सभा सीट से विधायक जीतन राम मांझी चुनाव मैदान में हैं, वहीं इंडिया गठबंधन की तरफ़ से राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार के तौर पर कुमार सर्वजीत पासवान मैदान में हैं जो बोधगया सीट से राजद के विधायक भी हैं। वो महागठबंधन की सरकार में मंत्री भी थें। विगत चुनाव 2019 में गया लोकसभा क्षेत्र से एन डी ए प्रत्याशी के तौर पर जेडीयू के विजय मांझी को जीत मिली थी। उन्हें 467007 वोट मिले थे। जब कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के संस्थापक जीतन राम मांझी को 314581 मतों से संतोष करना पड़ा था। पिछला चुनाव जीतन राम मांझी महागठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर लड़े थे। इस बार जीतन राम मांझी एन डी ए के पाले में हैं।
इस सीट पर जातीय समीकरण को अगर देखें तो यहां लगभग तीन दशक से मांझी समुदाय के लोग ही संसद पहुंचे हैं। मांझी समुदाय की आबादी इस सीट पर लगभग तीन लाख है। यादव मतदाताओं की संख्या दो लाख, मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी दो लाख, वैश्य भी दो लाख और सवर्ण समाज से ब्राह्मण और राजपूत वोटरों की संख्या तकरीबन ढाई लाख के आसपास हैं। गया लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली छह विधानसभा सीटों गया टाउन, शेरघाटी, बाराचट्टी, वजीरगंज, बेलागंज, और बोधगया में से तीन शेरघाटी,बेलागंज और बोधगया पर राजद, दो विधानसभा सीट गया टाउन और वजीरगंज पर भाजपा और एक बाराचट्टी पर हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा का कब्ज़ा है।
जमुई
जमुई लोकसभा सीट बिहार की छह सुरक्षित लोकसभा सीटों में से एक सीट है जहां से विगत दो चुनावों में लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के सुप्रीमों और मोदी के कथित हनुमान चिराग पासवान सांसद हैं। इस बार ये सीट लोजपा ( आर) के ही खाते में रही परंतु इस बार चुनाव में चिराग पासवान ने अपने जीजा अरुण भारती को यहां से उम्मीदवार बनाया है। विगत चुनाव 2019 में चिराग पासवान इस सीट से तकरीबन ढाई लाख वोटों से चुनाव जीते थे और उन्हें लगभग 528771 मत प्राप्त हुए थे जो कुल मत प्रतिशत का 55.76 प्रतिशत थी। उनके सामने महागठबंधन उम्मीदवार के तौर पर उपेंद्र कुशवाहा के तत्कालीन राजनीतिक दल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर भूदेव चौधरी चुनाव लड़े जिन्हे हार का सामना करना पड़ा था। इस लोकसभा सीट पर इस बार महागठबंधन की तरफ राजद के चुनाव चिन्ह पर अर्चना रविदास चुनाव लड़ रही हैं। अर्चना रविदास युवा राजद के राष्ट्रीय महासचिव एवम मुंगेर विधानसभा से 2020 में राजद प्रत्याशी रहे मुकेश यादव की पत्नी हैं। मुकेश यादव पिछले विधानसभा चुनाव में बहुत कम मतों से भाजपा के प्रणव यादव से मुंगेर में चुनाव हार गए थे।
जमुई लोकसभा सीट में तकरीबन साढ़े तीन लाख यादव मतदाता और ढाई लाख मुस्लिम मतदाता हैं। दलित महादलित वोटों की संख्या ढाई लाख के आसपास है जब कि गैर यादव ओबीसी जातियों की संख्या लगभग चार लाख के आसपास हैं। इस लोकसभा के अंतर्गत छह विधानसभा की सीटों जमुई, तारापुर, शेखपुरा, झाझा, चकाई, और सिकंदरा हैं। इनमे से दो विधानसभा सीटों झाझा और तारापुर में जदयू के विधायक हैं, एक सीट शेखपुरा राजद के पास है, एक चकाई सीट से निर्दलीय विधायक सुमित सिंह हैं जो बिहार सरकार के मंत्री हैं। एक सीट जमुई टाउन भाजपा के पास है और एक सीट सिकंदरा हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के पास हैं। सारांश में पांच सीट एन डी ए गठबंधन के पास और एक सीट इंडिया ब्लॉक के पास है।
गोदी मीडिया की बात करें तो प्रचंड मोदी लहर है और राष्ट्रवाद और हिंदुत्व से ले कर विदेशों में भारत की छवि जनता के सर चढ़ कर बोल रही है। लेकिन हर सीट पर अलग-अलग मुद्दे भारी रहे हैं और मतदाताओं ने उसे प्राथमिकता में रखा है।
अगर हम औरंगाबाद की बात करें तो वहां लड़ाई अगड़ा बनाम पिछड़ा बनाने की जो कवायद लालू यादव ने किया था उस में वो सफल होते दिखाई दिए हैं। गैर सवर्ण जातियों के अंदर इस बात का एहसास जगाया गया कि यहां पांच दशकों से एक ही जाति के सांसद होते रहे हैं और उन्हें दिल्ली पहुंचाने में पिछड़े अति पिछड़े दलितों मुसलमानों की बहुत बड़ी भूमिका होती है तो इस बार बहुजन के बेटे को मौका दिया जाए। भाजपा के प्रत्याशी सुशील सिंह लगातार 17 18 सालों से सांसद हैं और औरंगाबाद की जनता के मौलिक मुद्दे उन्होंने हल करना तो दूर उसपर नजर डालना भी उचित नहीं समझा है। जनता में उनके प्रति काफ़ी गुस्सा भी है और यही कारण है कि औरंगाबाद से कई स्थानों पर ग्रामीणों द्वारा वोटिंग के बहिष्कार की सूचना भी आई है। औरंगाबाद के नेहुटा गांव के बूथ संख्या 97 पर दोपहर 11 बजे तक केवल 3 वोट पड़े थे तो वहीं दूसरी तरफ औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र के गौहरपुर पंचायत के धनछुआ गांव में ग्रामीणों ने 11 बजे तक एक भी वोट नहीं डाला था।।
नवादा में बाहरी और स्थानीय का मुद्दा सबसे प्राथमिकता में रहा है। नवादा में 1951 से अब तक कुल 17 लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें 14 बार नवादा से बाहरी प्रत्याशी ही निर्वाचित हुए हैं और इस बार राजद ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया है। राजद से प्रत्याशी सरवन कुशवाहा स्थानीय हैं जब कि भाजपा प्रत्याशी विवेक ठाकुर पैराशूट उम्मीदवार हैं, ये बात जनता तक पहुंचाने में इंडिया गठबंधन के कार्यकर्ता सफल रहे। दूसरी तरफ दोनों ही गठबंधन के प्रत्याशियों को बागी उम्मीदवारों ने भी परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राजद के बागी नेता विनोद यादव जहां सरवन कुशवाहा के वोटों में सेंधमारी के लिए प्रयासरत रहे तो भोजपुरी गायक और सवर्ण जाति से आने वाले गुंजन सिंह भाजपा के वोटों में Dent लगाने में कितना सफल हो पाए ये तो नतीजे ही बताएंगे।
नवादा में भी अगड़ा बनाम पिछड़ा का खेल जम कर दोनों दलों ने खेला है। एक तरफ जहां सवर्ण स्वाभिमान के नाम पर सवर्ण मतदाता भाजपा के पक्ष में गोलबंद होते दिखे तो वहीं बड़ी संख्या में मुस्लिम यादव के इलावा कुशवाहा, मंडल,धानुक तांती, पासवान, गया में और अन्य दलित पिछड़े सरवन कुशवाहा के पक्ष में खड़े थे।
गया में जीतन राम मांझी से लोग इतने नाराज थे कि उन्हें ग्रामीणों के विरोध का सामना भी करना पड़ा जिसकी वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई। शहरी क्षेत्र के बहुसंख्यक मतदाताओं में जीतन राम मांझी के एन डी ए प्रत्याशी होने के कारण थोड़ा झुकाव अवश्य दिखा लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के मतदाताओं के सामने कुमार सर्वजीत बेहतर विकल्प के तौर पर रहे। कुमार सर्वजीत का युवा होना भी राजद के पक्ष में सकारात्मक रहा। कुमार सर्वजीत से यादव मतदाताओं की नाराज़गी की ख़बर आई थी लेकिन उसके बाद राजद नेता सुरेंद्र यादव के सक्रिय होने से यादव, लालू यादव के नाम पर कुमार सर्वजीत के पक्ष में खड़े होते दिखाई दिए। मांझी को रामायण को काल्पनिक बताने का खमियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।
जमुई लोकसभा सीट सुरक्षित होने के बावजूद वहां का चुनाव हमेशा से ही एम वाई बनाम अन्य रहा है। जमुई में दोनों गठबंधन के प्रत्याशी के लिए ये पॉलिटिक डेब्यू है और दोनों तरफ नए प्रायोंग किए गए हैं। इस बार पूर्व मंत्री और उस इलाके के कद्दावर नेता माने जाने वाले दिवंगत नरेंद्र सिंह के बेटे अजय प्रताप को भाजपा से तोड़ कर राजद मे लाने और भूमिहार एमएलसी अजय सिंह को राजद उम्मीदवार अर्चना रविदास के पक्ष में सक्रिय कर के तेजस्वी के माई समीकरण में राजपूत और भूमिहार जाति का तड़का लगाने की कवायद की गई है। अपने शुरुआती दिनों में एलजेपी उम्मीदवार अरुण भारती स्थानीय नहीं होने और चिराग पासवान के दस वर्षों के कार्यकाल में उनके द्वारा विकास के नाम पर जनता को छले जाने का दंश झेल रहे थे और राजद ने जमुई में भी स्थानीय बनाम बाहरी के मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी ने जमुई लोकसभा से चुनावी रैली कर एलजेपी को मजबूती देने का प्रयास किया और उस रैली में नीतीश कुमार के आने का असर पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग पर भी पड़ने के आसार हैं। जमुई लोकसभा के लिए राजपूत वोट निर्णायक माने जाते रहे हैं और अजय प्रताप के राजद के पक्ष में आने से अर्चना रविदास को मजबूती मिली है।
इन सबसे इतर हर जगह तेजस्वी यादव के रोजगार, जाति जनगणना, सामाजिक न्याय, और सत्रह महीने बनाम सत्रह साल का मुद्दा छाया रहा तो दूसरी तरफ सनातन, राम मंदिर, रामनवमी, नवरात्रि, और कथित गारंटी के अलावा जनता को कुछ और सुनने को था ही नहीं।
हर जगह कांटे की टक्कर है और स्थानीय मुद्दे चुनाव के केंद्र में हैं।
गोदी मिडिया कंडिशनिंग ऑफ माइंड के फॉर्मूले पर भले ही एंडीए के पक्ष में एकतरफा खबरें चलाए लेकिन जमीनी हकीकत यही है।
फर्रह शकेब
स्वतंत्र पत्रकार मुंगेर (बिहार)
First phase increased BJP's problems


