बसपा-सपा : क्या यूपी में नई राजनीति की शुरूआत हो गई है

अमलेन्दु उपाध्याय

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए प्रतिष्ठापूर्ण गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव (By-elections on Gorakhpur and Phulpur Lok Sabha seats) में बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती (Bahujan Samaj Party Supremo Mayawati) द्वारा समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के प्रत्याशियों को समर्थन देने को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या यूपी में नई राजनीति की शुरूआत (new politics in UP) हो गई है और आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी में कोई महागठबंधन देखने को मिल सकता है। ऐसी सदिच्छाएं पालना कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन असल सवाल यह है कि क्या वास्तव में यूपी में नई राजनीति की शुरूआत हो गई है ? ईमानदार उत्तर है कि ऐसी कोई भी भविष्यवाणी करना अभी बहुत जल्दबाजी है खासकर सपा-बसपा दोनों के हाईकमान का अभी तक का राजनीतिक आचरण देखकर।

फिर सवाल है कि बुआजी ने बबुआ को समर्थन क्यों दे दिया ? इस सवाल का उत्तर पाने के लिए हमें कुछ बातों पर गौर करना होगा।

पहली बात तो यह है कि भाजपा भी नहीं चाहती कि यूपी में कांग्रेस आगे बढ़े,लेकिन उतना ही कटु सत्य यह भी है कि सपा और बसपा भी नहीं चाहते कि कांग्रेस यूपी में बढ़े। उसका कारण साफ है अगर कांग्रेस यूपी में आगे बढ़ती है तो भाजपा की बेचैनी इसलिए बढ़ जाती है कि सबसे बड़े प्रदेश से उसे कांग्रेस से टक्कर मिलने लगेगी। लेकिन सपा-बसपा की बेचैनी का सबब यह है कि कांग्रेस जितना बढ़ेगी उतना ही ये दोनों दल सिमटेंगे। अतीत बताता है कि सपा-बसपा दोनों ही कांग्रेस के मजार पर खड़े होकर पले बढ़े हैं। जाहिर है कांगेस गुजरात जैसे प्रदेश में जब भाजपा को कड़ी चुनौती दे रही है तब यूपी में उसकी सक्रियता सपा-बसपा के लिए भी माथे पर शिकन पैदा करने वाली है। इसलिए बुआ का बबुआ के प्रति अचानक जागे प्रेम को इस एंगल से भी देखने की कोशिश करें। और इस प्रेम को पीएम मोदी का भी आशीर्वाद प्राप्त है भले ही दोनों ही सीटें हार जाएं, बल्कि हार ही जाएं तो बेहतर। इस हार से पीएम एक तीर से कई शिकार कर लेंगे। पहला तो उनके घर में ही उनका विकल्प बनकर उभर रहे योगी जी को सबक सिखा दिया जाएगा, दूसरा केशव मौर्या को भी सरकार गठन के समय दिखाए गए बागी तेवर के लिए दंडित करने का अच्छा अवसर हाथ जाएगा।... और कांग्रेस को सपा-बसपा से झटका दिलवाकर अपने हाथ मजबूत कर लिए जाएंगे। बुआ-बबुआ को सेंटर में रखने के लिए सीबीआई काफी है।

इसी एंगल का थोड़ा विस्तार करें तो बुआ का बबुआ के प्रति अचानक जागे प्रेम का एक कारण बसपा से निष्कासित नसीमुद्दीन सिद्दीकी हैं। नसीमुद्दीन सिद्दीकी हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हैं। बहन जी ने कांग्रेस को संदेश देने की कोशिश की है कि उनके बागी को साथ लेकर कोई बात नहीं होगी।

एक अन्य कारण आगामी राज्यसभा चुनाव है। यह चर्चा जोरों पर है बुआ ने बबुआ को समर्थन के एवज में अपने भाई आनन्द के लिए राज्यसभा सीट मांग ली है।

कांग्रेस को झटका देने के पीछे एक और कारण भी है। बहनजी चाहती हैं कि लोकसभा चुनाव में किसी महागठबंधन पर चर्चा से पहले कांग्रेस उनसे मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी समझौता करें। मध्यप्रदेश में बसपा तीसरी ताकत है, जाहिर है कि वह अकेले तो कोई कमाल करने की स्थिति में नहीं है, लेकिन कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने और मिलकर फायदा पहुंचाने की स्थिति में तो है ही। इसी तरह राजस्थान में भी कुछ सीमित क्षेत्रों में उसका प्रभाव है। बहनजी चाहती हैं कि महागठबंधन पर जब बात हो तो राजस्थान और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव और लोकसभा में भी उन्हें इन राज्यों में भी हिस्सेदारी मिले।

इसलिए यह कहना कि यूपी में नई राजनीति की शुरूआत हो गई है, बहुत जल्दबाजी है।

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