बुआ-बबुआ के इस गठबंधन में क्या दलितों के लिए भी जगह है?
बुआ-बबुआ के इस गठबंधन में क्या दलितों के लिए भी जगह है?
सवाल गठबंधन alliance का नहीं है। सवाल ये है कि इस गठबंधन में दलितों (Dalits in coalition) के लिए कितनी जगह होगी ? क्या ताकतवर जातियों के अंदर दलितों के लिए इतनी जल्दी या रातों रात स्वीकार्यता आ जाएगी कि वो एक दलित कार्यकर्ता कल अपने साथ, अपने बगल में बैठने देंगे ?
मायावती Mayawati, जी की पूर्व की सरकारों के दौरान ये बात मुझे लगातार दिखाई देता रही कि बहन जी सवर्ण वोट Upper caste vote, लेने और दलितों को भक्त बनाने की इतनी जल्दी में रहीं कि उत्तर प्रदेश में सामाजिक न्याय एक मजाक मात्र बनकर रह गया। वो विधायक जो करोड़ों देकर और उसकी निकासी के लिए अपने क्षेत्र में धन का बड़ा हिस्सा चुनाव जीतने में लगाए, उन्होंने उन दलितों को जो उनके घर पर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से ताल्लुकात रखते हुए सवालों, परेशानियों को लेकर जब भी वो गए तो उनको बाहुबली ठाकुर, ब्राह्मणों ने उनका काम तो दूर की बात तो दूर उन्होंने उन्हें मानव मानने से भी इंकार कर दिया।
जिलों में तैनात जिलाधिकारियों एवं अन्य अधिकारियों के संदर्भ में जब ये शिगूफा छोड़ा जा रहा था कि अब अधिकारी अपने समय से आते हैं, अब कोई अधिकारी पैसे नहीं मांगते हैं, ये सब बातें उनके लिए एक मजाक भर रह गया था।
समाजवादी पार्टी की सरकार जब उत्तर प्रदेश में थी तो उसने दलितों के साथ जातिगत भेदभाव को बढ़ाने में और मदद की और उसमें भी प्रधानमंत्री का वो जवाब कि आज अखबार में एक खबर थी कि एक दलित को b.m.w कार ने टक्कर मार दी जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी, भला इससे जाति का क्या लेना देना?
प्रधानमंत्री का ये बयान इन तमाम भेदभावों को स्वीकार्यता ही प्रदान कर रहा था।
अब जब कि इस गठबंधन के लिए ये प्रचार किया जा रहा है कि ये गठबंधन वक्त की माँग है। तब अखिलेश यादव और मायावती का हाल ही में सामान्य वर्ग को दिये जाने वाले आरक्षण को लेकर बयान क्या सामाजिक न्याय की हत्या करने के लिए मूक संहमति थी?
सवाल ये भी है कि जब उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में दलितों को एक बोर्ड लगाये जाने के चलते ("the great chamaar") पीटा गया और उनके साथ जब जातिगत आधार पर भेदभाव किया गया तब उसके प्रतिरोध में दलितों की तरफ से बनाए गए संगठन भीम आर्मी के संस्थापक को मायावती जी ने भाजपा की बी इकाई कहा और उसे भाजपा का प्रोडक्ट घोषित कर वहाँ के बाहुबली सवर्ण जातियों के पक्ष में बयान देकर क्या उन्होंने खुद को भाजपा की बी इकाई होने का दावा उतनी ही मजबूती से नहीं किया था।
अब जब लोकतंत्र, संविधान, और उसके लोगों को ध्यान में रखकर लिया जाने वाला फैसला कहा जा रहा है तब उनसे सामाजिक न्याय के मूल में जो विचार मौजूद है जो कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मूल में है ("we the people of india") के सवाल को प्रमुखता से क्यों न पूछा जाये ?
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What is the place for Dalits in this coalition of Bua-Bubua?


