बेहद खर्चीली जीवनशैली स्त्री आखेट का अमोघ हथियार है
बेहद खर्चीली जीवनशैली स्त्री आखेट का अमोघ हथियार है
स्त्री आखेट का डिजिटल फंडा
सबिता बिश्वास
पितृसत्ता के निर्मम मनुस्मृति अनुशासन के कारण सामाजिक जेलखाने में कैद स्त्री के लिए डिजिटल पंख खुले हुए आसमान की तरह है।
उस आजाद आसमान में अनंत उड़ान की आकांक्षा की परिणति पारिवारिक सामाजिक स्त्रीविरोधी पर्यावरण से जनमी वर्जनाओं की वजह से मुक्ति की छटफटाहट में रंग बिरंगे जोखिम उठाने की वजह से अक्सर भयंकर त्रासदी में बदल जाती है।
बांकुड़ा में बैंक के चीफ मैनेजर की बेटी आकांक्षा शर्मा की अनंत मुक्ति आकांक्षा की परिणति भी कुछ ऐसी ही हुई है।
फेसबुक मित्रता के आधार पर अमेरिका में यूनिसेफ में नौकरी का बहाना बनाकर प्रेमी के साथ भोपाल जाकर हमेशा के लिए सीमेंट की ममी में तब्दील होकर रह गयी आकांक्षा।
ऐसे युवा प्रेमी को आकांक्षा ने फेसबुक प्रोफाइल से चुना, जो क्रिमिनल पर्सनलिटी डिसआर्डर का शिकार है, महीनों तक जो पानी नहीं पीता और उसकी जगह शराब पीते रहकर नहाता भी नहीं है।
आकांक्षा ने ऐसे प्रेमी के साथ महीनों रहकर अपने मां बाप को लगातार धोखा दिया।
सोशल मीडिया के मार्फत स्त्री आखेट का अनंत सिलसिला है।
फेसबुक ही नहीं, मोबाइल जी समूह के मार्फत जो आजादी का नया आसमान खुला है, उससे इसी तरह बिन मेघ जब तब बिजलियां गिरकर सब कुछ राख बना देती हैं।
समाज और परिवार में पितृसत्ता के वर्चस्व की वजह से पढ़ी लिखी युवा लड़कियों में फेसबुक या मोबाइल की नई दुनिया में जीने की लत पड़ गयी है।
अक्सर इनके फेसबुक पेज पर निजी अलबम सेल्फी के अलावा कुछ होता नहीं है।
इन तस्वीरों का भी नानाविध इस्तेमाल होता है और इन तस्वीरों के जरिये भी वे रंग बिरंगे दुश्चक्र में आसानी से फंस जाती हैं, जहां वे अंततः अकेली निहत्था मर कर निजात पाने या अपनी पसंद का नर्क जीने के लिए नियतिबद्ध हो जाती हैं।
स्त्री शिक्षा को अभूतपूर्व प्रोत्साहन के नये परिवेश से बड़े पैमाने पर लड़कियां पढ़कर काबिल बन रही हैं। लेकिन पितृसत्ता की वजह से शिक्षित होने के बावजूद वे निजी जिंदगी के बारे में फैसला करने को आजाद नहीं हैं।
नतीजतन परिवार और समाज के बंधनों में कैद होकर उन्हीं के तय दायरे में जिंदगी गुजर बसर करने के लिए वे मजबूर हैं।
दूसरी ओर, डिजिटल इंडिया में तकनीक ने भूगोल के सामाजिक पारिवारिक सांस्कृतिक दायरे तहस नहस कर दिये हैं और तकनीक मार्फत बेशकीमती आजादी के लिए अतृप्त कुंठित हो गयी लड़कियों के लिए चुतर सुजान स्मार्ट शिकारियों के जाल में फंसने का खुल्ला राजमार्ग है।
फर्ज करें कि आकांक्षा की हत्या नहीं हुई होती और वह अब भी जी रही होती तो वह जिंदगी कैसी होती। महीनों अमेरिका में नौकरी करने वाली बेटी से व्हाट्सअप संपर्क से ही परिवार वाले बिना किसी पता ठिकाना, बिना किसी पुकार, कुशल क्षेम के संतुष्ट रहे हैं।
इसी तरह न जाने कितने वक्त और वह भोपाल में अमेरिका जी रही होती आपराधिक मानसिकता के शिकार एक अपराधी की तरह, जहां उसे परिवार या समाज की कोई मदद यकीनन नहीं मिलती।
कानून और व्यवस्था इस डिजिटल तकनीकी स्त्री आखेट के मामले में एफआईआर दर्ज होने तक धर्मनिरपेक्ष है और अक्सर वे आगे कार्रवाई के लिए परिजनों की हैसियत के मुताबिक फैसला करते हैं।
पितृसत्ता में स्त्री की दासी शूद्र दशा के नतीजतन ही देस दुनिया में हजारों साल से देह की मंडिया शुरु होती है और इन देहमंडियों को हम रेड लाइट एरिया या प्राचीन भाषा के मुताबिक वेश्यालय कहते हैं।
अब इन देहमंडियों का भूगोल सर्वव्यापी हो गया है।
रेड लाइट एरिया किसी नगर महानगर में ठीक कहां से शुरु होता है, कहना बेहद मुश्किल है। क्रयशक्ति के निर्णायक हो जाने और गैरजरुरी जरुरतें और सेवाएं अनिवार्य हो जाने से क्रयशक्ति के प्रदर्शन से आजाद और मौज मस्ती के जीवन के भूलभुलैय्या में बड़े पैमान पर देश के हर हिस्से में अबाध स्त्री आखेट निरकुंश है।
स्त्री शिक्षा के लिए जितने सुधार हुए है, उस तुलना में प्रेम और विवाह की स्वतंत्रता पितृसत्ता ने उच्च शिक्षित ओहदेदार लड़कियों तक को अभीतक नहीं दी। दहेज, घरेलू हिंसा की बेलगाम वारदातें और बलात्कार सुनामी इसके नतीजे हैं।
दूसरी ओर, रोजगार के सिलसिले में, पेशे में, कार्यस्थलों मे प्रवेशाधिकार अब भी अबाध नहीं है। वहां गोरी त्वचा और पारिवारिक हैसियत के साथ क्रयशक्ति निर्णायक हैं।
जिस पैमाने पर देश भर में जाति धर्म नस्ल क्षेत्र निर्विशेष लड़कियां पढ़ लिख रही है, विभिनन्न क्षेत्रों में नेतृत्वकारी महिलाओं की आंशिक उपस्थिति के बावजूद इन तमाम लड़कियों के लिए उनकी पसंद का रोजगार मिलना सुनिश्चित नहीं है।
कुल मिलाकर रोजगार सृजन पढ़े लिखे युवाओं की कुल जनसंख्या के अनुपात में बेहद कम है। पढ़ने लिखने के बावजूद इन लड़कियों या स्त्रियों को जब रोजगार न मिले और जवानी पार करते करते विवाह के जरिये संतोष जनक क्रयशक्ति संपन्न आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित न होने की स्थिति में अतृप्त महात्वाकांक्षा और पितृसत्ता की बदौलत नानाविध वर्जनाओं की शिकार ऐसी स्त्रियां डिजिटल आखेट की सबसे आसान शिकार हो जाती हैं। इसका प्रतिरोध लगभग असंभव है। बुजुर्ग महिलाओं का आखेट भी आम हैय़
कुल मिलाकर यही आकांक्षा और उसकी जैसी असंख्य युवा स्त्री की कथा है।
सोशल मीडिया के जरिये उदयन की पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा की आकांक्षा शर्मा से दोस्ती हुई थी।
आकांक्षा का मामला कोई आपराधिक वारदात नहीं है और यह मुक्त बाजार की तकनीकी क्रांति की नई संस्कृति है, जिनसे बचने के लिए स्त्री को उनकी योग्यता के मुताबिक रोजगार और प्रेम विवाह जैसे निजी जिंदगी के मसलों में आजादी देने के बारे में जब तक हम सोचने को तैयार नहीं होते , इन वारदातों से अपनी बेटियों को बचाने की कोई गारंटी नहीं है।
आकांक्षा की परिणति इतनी दुःखद है कि आकांक्षा के शव की हालत ठीक न होने के कारण उसका पार्थिव शरीर जो नरकंकाल के सीमेट ममी में तब्दील हो गया है, को बांकुड़ा के मां बाप के घर न लाने का फैसला किया गया । लिहाजा दुःखी परिजनों ने उसका अंतिम संस्कार भोपाल में ही कर दिया।
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल पुलिस ने हाल में उदयन को भोपाल में उसकी प्रेमिका आकांक्षा उर्फ श्वेता की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था।
जांच पड़ताल में यह भी पता चला कि उदयन का जीवन यापन बेहद खर्चीला था। रायपुर के अलावा दिल्ली में भी उसके दो फ्लैट हैं। वहां से महीने का 15 हजार रुपये उसे किराया हासिल होता था। इसके अलावा उसका साढ़े आठ लाख रुपये का एक फिक्स्ड डिपोजिट भी है जिससे उसे ब्याज हासिल होता था।
बेहद खर्चीली जीवनशैली स्त्री आखेट का अमोघ हथियार है। क्रयशक्ति के लिए जोखिम उठाने में परहेज न करने का अंजाम कितना भयंकर है, आकांक्षा का कुल किस्सा यही है।
मीडिया की खबरों के मुताबिक बांकुड़ा की आकांक्षा शर्मा की हत्या के मामले में आरोपी उदयन दास ने भोपाल पुलिस के सामने स्वीकार किया है कि उसके साथ लिव-इन रिलेशन में रह रही आकांक्षा की हत्या से पहले उसने अपने माता-पिता की भी हत्या कर उनके शवों को जमीन के नीचे गाड़ दिया था।
पुलिस जांच में पता चला कि आरोपी साकेत नगर में अपने मकान की पहली मंजिल के अपने घर में काफी विलासितापूर्वक रहता था। घर के तीनों कमरों में एलसीडी लगे हैं और उसके पास एक महंगी कार भी थी। लेकिन घर की साफ सफाई के लिये उसने कोई नौकर नहीं रखा था। उसके घर में चारों ओर सिगरेट के टुकड़े और शराब की खाली बोतलें बिखरी पड़ी थीं। पुलिस ने बताया कि पुलिस जब दो फरवरी को उसे गिरफ्तार करने उसके घर में घुसी तो घर में होटल से लाये गये खाने के सड़ने और गंदगी से सारा घर बदबू मार रहा था। पुलिस ने दावा किया कि आरोपी पिछले लगभग तीन माह से पानी की स्थान पर शराब और बीयर पी रहा था और करीब तीन माह से ही उसने नहाया भी नहीं था। अपने शरीर की दुर्गंध दूर करने के लिये वह महंगे परफ्यूम लगाता था। पुलिस सूत्रों ने बताया कि उदयन अक्सर लड़कियों के साथ बाहर घूमने जाता था, यह लड़कियां अपनी अपनी पहचान छुपाने के लिये अमूमन अपने चेहरे पर हिजाब लगाये रहती थीं।
भोपाल के एसएसपी रमन सिंह सिकरबार ने बताया कि जांच के लिए पुलिस की एक टीम को रायपुर भेजा जा रहा है।
खबरों के मुताबिक उदयन दास ने पुलिस को बताया कि वर्ष 2010 में उसने अपने माता-पिता की छत्तीसगढ़ के रायपुर में अपने पैतृक घर में हत्या कर दी थी। घर के सामने ही बाग में उसने अपने माता-पिता के शव को दफना दिया। इसके बाद उसने रायपुर का अपना घर बेच दिया।
हालांकि इससे पहले पुलिस को उदयन ने बताया था कि वर्ष 2010 में उसके पिता पीके दास की मौत दिल का दौरा पड़ने से हो गयी थी। उसने यह भी बताया था कि उसकी मां इंद्राणी दास अमेरिका में रहती हैं.। लेकिन उसके बयान में पुलिस को कई विरोधाभाष मिले तो सख्ती से पूछताछ करने पर उदयन टूट गया और फिर उसने कहा कि उसने ही अपने माता-पिता की हत्या की है।
उदयन ने पुलिस को बताया कि उसने आकांक्षा की हत्या पिछले साल 14 जुलाई को की जबकि पहले उसने पुलिस को बताया था कि उसने दिसंबर में यह हत्या की थी। पुलिस ने बताया कि आरोपी युवक आकांक्षा पर अपना अधिकार रखना चाहता था और उसने आकांक्षा की हत्या इसलिये की, क्योंकि वह मोबाइल फोन पर अपने किसी अन्य पुरुष मित्र से बात करती थी।
बेहद खर्चीली जीवनशैली स्त्री आखेट का अमोघ हथियार है
स्त्री आखेट का डिजिटल फंडा
सबिता बिश्वास
पितृसत्ता के निर्मम मनुस्मृति अनुशासन के कारण सामाजिक जेलखाने में कैद स्त्री के लिए डिजिटल पंख खुले हुए आसमान की तरह है।
उस आजाद आसमान में अनंत उड़ान की आकांक्षा की परिणति पारिवारिक सामाजिक स्त्रीविरोधी पर्यावरण से जनमी वर्जनाओं की वजह से मुक्ति की छटफटाहट में रंग बिरंगे जोखिम उठाने की वजह से अक्सर भयंकर त्रासदी में बदल जाती है।
बांकुड़ा में बैंक के चीफ मैनेजर की बेटी आकांक्षा शर्मा की अनंत मुक्ति आकांक्षा की परिणति भी कुछ ऐसी ही हुई है।
फेसबुक मित्रता के आधार पर अमेरिका में यूनिसेफ में नौकरी का बहाना बनाकर प्रेमी के साथ भोपाल जाकर हमेशा के लिए सीमेंट की ममी में तब्दील होकर रह गयी आकांक्षा।
ऐसे युवा प्रेमी को आकांक्षा ने फेसबुक प्रोफाइल से चुना, जो क्रिमिनल पर्सनलिटी डिसआर्डर का शिकार है, महीनों तक जो पानी नहीं पीता और उसकी जगह शराब पीते रहकर नहाता भी नहीं है।
आकांक्षा ने ऐसे प्रेमी के साथ महीनों रहकर अपने मां बाप को लगातार धोखा दिया।
सोशल मीडिया के मार्फत स्त्री आखेट का अनंत सिलसिला है।
फेसबुक ही नहीं, मोबाइल जी समूह के मार्फत जो आजादी का नया आसमान खुला है, उससे इसी तरह बिन मेघ जब तब बिजलियां गिरकर सब कुछ राख बना देती हैं।
समाज और परिवार में पितृसत्ता के वर्चस्व की वजह से पढ़ी लिखी युवा लड़कियों में फेसबुक या मोबाइल की नई दुनिया में जीने की लत पड़ गयी है।
अक्सर इनके फेसबुक पेज पर निजी अलबम सेल्फी के अलावा कुछ होता नहीं है।
इन तस्वीरों का भी नानाविध इस्तेमाल होता है और इन तस्वीरों के जरिये भी वे रंग बिरंगे दुश्चक्र में आसानी से फंस जाती हैं, जहां वे अंततः अकेली निहत्था मर कर निजात पाने या अपनी पसंद का नर्क जीने के लिए नियतिबद्ध हो जाती हैं।
स्त्री शिक्षा को अभूतपूर्व प्रोत्साहन के नये परिवेश से बड़े पैमाने पर लड़कियां पढ़कर काबिल बन रही हैं। लेकिन पितृसत्ता की वजह से शिक्षित होने के बावजूद वे निजी जिंदगी के बारे में फैसला करने को आजाद नहीं हैं।
नतीजतन परिवार और समाज के बंधनों में कैद होकर उन्हीं के तय दायरे में जिंदगी गुजर बसर करने के लिए वे मजबूर हैं।
दूसरी ओर, डिजिटल इंडिया में तकनीक ने भूगोल के सामाजिक पारिवारिक सांस्कृतिक दायरे तहस नहस कर दिये हैं और तकनीक मार्फत बेशकीमती आजादी के लिए अतृप्त कुंठित हो गयी लड़कियों के लिए चुतर सुजान स्मार्ट शिकारियों के जाल में फंसने का खुल्ला राजमार्ग है।
फर्ज करें कि आकांक्षा की हत्या नहीं हुई होती और वह अब भी जी रही होती तो वह जिंदगी कैसी होती। महीनों अमेरिका में नौकरी करने वाली बेटी से व्हाट्सअप संपर्क से ही परिवार वाले बिना किसी पता ठिकाना, बिना किसी पुकार, कुशल क्षेम के संतुष्ट रहे हैं।
इसी तरह न जाने कितने वक्त और वह भोपाल में अमेरिका जी रही होती आपराधिक मानसिकता के शिकार एक अपराधी की तरह, जहां उसे परिवार या समाज की कोई मदद यकीनन नहीं मिलती।
कानून और व्यवस्था इस डिजिटल तकनीकी स्त्री आखेट के मामले में एफआईआर दर्ज होने तक धर्मनिरपेक्ष है और अक्सर वे आगे कार्रवाई के लिए परिजनों की हैसियत के मुताबिक फैसला करते हैं।
पितृसत्ता में स्त्री की दासी शूद्र दशा के नतीजतन ही देस दुनिया में हजारों साल से देह की मंडिया शुरु होती है और इन देहमंडियों को हम रेड लाइट एरिया या प्राचीन भाषा के मुताबिक वेश्यालय कहते हैं।
अब इन देहमंडियों का भूगोल सर्वव्यापी हो गया है।
रेड लाइट एरिया किसी नगर महानगर में ठीक कहां से शुरु होता है, कहना बेहद मुश्किल है। क्रयशक्ति के निर्णायक हो जाने और गैरजरुरी जरुरतें और सेवाएं अनिवार्य हो जाने से क्रयशक्ति के प्रदर्शन से आजाद और मौज मस्ती के जीवन के भूलभुलैय्या में बड़े पैमान पर देश के हर हिस्से में अबाध स्त्री आखेट निरकुंश है।
स्त्री शिक्षा के लिए जितने सुधार हुए है, उस तुलना में प्रेम और विवाह की स्वतंत्रता पितृसत्ता ने उच्च शिक्षित ओहदेदार लड़कियों तक को अभीतक नहीं दी। दहेज, घरेलू हिंसा की बेलगाम वारदातें और बलात्कार सुनामी इसके नतीजे हैं।
दूसरी ओर, रोजगार के सिलसिले में, पेशे में, कार्यस्थलों मे प्रवेशाधिकार अब भी अबाध नहीं है। वहां गोरी त्वचा और पारिवारिक हैसियत के साथ क्रयशक्ति निर्णायक हैं।
जिस पैमाने पर देश भर में जाति धर्म नस्ल क्षेत्र निर्विशेष लड़कियां पढ़ लिख रही है, विभिनन्न क्षेत्रों में नेतृत्वकारी महिलाओं की आंशिक उपस्थिति के बावजूद इन तमाम लड़कियों के लिए उनकी पसंद का रोजगार मिलना सुनिश्चित नहीं है।
कुल मिलाकर रोजगार सृजन पढ़े लिखे युवाओं की कुल जनसंख्या के अनुपात में बेहद कम है। पढ़ने लिखने के बावजूद इन लड़कियों या स्त्रियों को जब रोजगार न मिले और जवानी पार करते करते विवाह के जरिये संतोष जनक क्रयशक्ति संपन्न आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित न होने की स्थिति में अतृप्त महात्वाकांक्षा और पितृसत्ता की बदौलत नानाविध वर्जनाओं की शिकार ऐसी स्त्रियां डिजिटल आखेट की सबसे आसान शिकार हो जाती हैं। इसका प्रतिरोध लगभग असंभव है। बुजुर्ग महिलाओं का आखेट भी आम हैय़
कुल मिलाकर यही आकांक्षा और उसकी जैसी असंख्य युवा स्त्री की कथा है।
सोशल मीडिया के जरिये उदयन की पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा की आकांक्षा शर्मा से दोस्ती हुई थी।
आकांक्षा का मामला कोई आपराधिक वारदात नहीं है और यह मुक्त बाजार की तकनीकी क्रांति की नई संस्कृति है, जिनसे बचने के लिए स्त्री को उनकी योग्यता के मुताबिक रोजगार और प्रेम विवाह जैसे निजी जिंदगी के मसलों में


